Tuesday, April 6, 2010

"चल दिए तुम"

छोड़ कर नेह का आँचल "चल दिए तुम"
सुरमुई सी शाम थी प्रातः सुनहरी
ओस भींगी रात चंदा सी रुपहली
छोड़ कर भींगे हुए बादल "चल दिए तुम"
तोड़ कर बंधन ,बसाया अंतरंग में
साँस के संग संग चले थे साजन संग में पोछ कर
सिंगार का काजल "चल दिए तुम"
बिन तुम्हारे अनमनी सी है हवा
अब नहीं मदहोश लगती ये फिजा
छीन कर खुशियों के वे सब पल
"चल दिए तुम"

No comments:

Post a Comment