Sunday, February 26, 2012

ढाई आखर फागुन में

लगी तुम्हारी  याद सताने फागुन में
बांस लगे बासुरी बजाने फागुन में

नाच उठी छवि आँखों में
सिवानो की
सुधिया हुयी सयानी 
घर खलिहानों की

साँझ लगी घूँघट सरकाने फागुन में

अलसाई -सी दिखे
नदी अब रेतो में
बजे रात भर हसिया कंगन
खेतो में
लगी चांदनी नेह चुराने फागुन में

दवरी करके अन्न ओसाना 
गोरी का
आँचल में आँखे उलझाना
गोरी का

ढाई आखर लगी लुटाने फागुन में !!!

1 comment:

  1. बेहतरीन..आपका फागुन ऐसे ही महकता हुये बीते..

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