Saturday, June 23, 2012

वफ़ा नहीं मिलती है !

आइना वो ही है रो शक्ल क्यूँ बदलती है !
जीवन की गठरी खोलो तो सांस क्यूँ उखरती है !!



दिलों के दरवाजे छोटे क्यूँ है !
इन्हें धुप -हवा भी नहीं लगती है !!



चेहरों के फूल क्यूँ मुरझा गए है !
इन्हें चांदनी रातों की दस्तक नहीं मिलती है !!



शीशे पर झुरियां क्यूँ पड़ती है !



निशा को सहर मिलती है ,सहर को सदा  !!
क्यूँ किसी को को वफ़ा नहीं मिलती है !!!!!!!

4 comments:

  1. बहुत खूब, लाजबाब !
    नई पोस्ट .....मैं लिखता हूँ पर आपका स्वगत है

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  2. आज आपके ब्लॉग पर बहुत दिनों बाद आना हुआ अल्प कालीन व्यस्तता के चलते मैं चाह कर भी आपकी रचनाएँ नहीं पढ़ पाया. व्यस्तता अभी बनी हुई है लेकिन मात्रा कम हो गयी है...:-)

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  3. बेहतरीन अभिव्यक्ति..

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