पहली शर्त जुदाई है इश्क बड़ा हरजाई है
खवाब करीबी रिश्तेदार लेकिन नींद परायी है
चाँद तरसे सारी उम्र तब कुछ धुप कमाई है
मैं बिखरा हु डाली से दुनिया क्यूँ मुरझाई है
दिल पर किसने दस्तक दी तुम हो या तन्हाई है
सूरज टूट कर बिखरा था रात ने ठोकर खायी है
दरिया दरिया नाप चुके मुठी भर गहरायी है....
Thursday, June 10, 2010
Wednesday, June 9, 2010
चूड़ियाँ
हाथों में रंगीन सपनो सी मुस्काती चूड़ियाँ
खनकती हैं जब कलाईयों में कांच की चूड़ियाँ
धड़कता है दिल धक् से, झुक जाती हैं आँख
शर्म से जब उँगलियाँ उनकी छू लेती है,
इन हाथों की चूड़ियाँ छुड़ा कर जब हाथ,
भागती हैं पैरो की पायल बज उठती हैं
संग में कांच की ये कच्ची चूडियाँ
सिर्फ खनक और साँसों का शोर गूंजता है
चारो ओर भटकता है मन बावरा सा,
निगोड़ी चूड़ियों की ओर अरसे से हाथों को रास नहीं आई
चूड़ियाँ आज कई दिनों बाद भाई है मन को ये चूड़ियाँ
जी चाहे ज़ी भर देख लूँ इनको,
मासूम चूड़ियाँ उनके आने की आहट से खनक उठी हैं चूड़ियाँ
टूट जायेंगी आगोश में उनके, उफ़ ये शर्मीली चूड़ियाँ
मुझे आज कुछ कहना नहीं है
शिकायत करेंगी उनसे चुपचाप चूड़ियाँ
चुभ जाएँगी उनकी उँगलियों में शायद,
तब दर्द से कराहेंगी चूड़ियाँ और जब सजा दे लेंगी
उनको मंद मंद मुस्कएँगी चूड़ियाँ
बहोत कुछ कह जाएँगी कुछ न कह कर भी
चूड़ियाँ ये उन पर है जो समझ गए और
न समझेंगे वो तो खिल खिलाएँगी
खूब तब उनकी नादानी पर,
मेरी समझदार सयानी शरारती चूड़ियाँ
Tuesday, June 8, 2010
कारण......
विवाह के बाद
उन्होंने अक्सर
अपनी रसोई
खुद पकाई है
जाहिर है
अत्यादुनिका
एम.बी.ए बीबी से
शादी रचाई है
उन्होंने अक्सर
अपनी रसोई
खुद पकाई है
जाहिर है
अत्यादुनिका
एम.बी.ए बीबी से
शादी रचाई है
Monday, June 7, 2010
कैसी रस्म बिदाई .........
कैसी रस्म बिदाई .........
थे खुशियों से सराबोर स्वजन ,
बिटिया की सज रही थी डोली ,
तब उमड़ा दुलार बाबुल का ,
और पनियाई सी आँखें बोलीं -
प्यार से मैंने बोया तुझको ,
अपनी इस फुलवारी में,
जा रही अब बिटिया तू ,
भरकर सूनापन क्यारी में,
लगता है मझको अब भी जैसे ,
तू है वही नन्ही सी कली,
पर सच है ये , के बनकर फूल,
अब तू मुझको छोड़ चली ,
बनेगी मेरा संबल बिटिया ,
मीठी-मीठी यादें तेरीं ,
जा तू नया संसार बसा ,
ले कर ये दुआएं मेरी,
दुःख के काँटों से दूर कहीं ,
बिटिया तेरी इक बगिया हो,
सुख के भोंरे हों संगी तेरे ,
तितलियाँ ख़ुशी की ,सखियाँ हों,
इस जीवन-उपवन का बिटिया,
तू है सबसे प्यारा फूल,
प्यार से जिसने तुझको सींचा ,
उस माली को ना जाना भूल |
ऐसा कहकर जब बाबुल की,
आँखों में पानी भर आया ,
गले लगा बूढ़े बाबा को,
बिटिया ने यूँ समझाया -
बाबा फूलों को सहेज सदा ,
माली भी कहाँ रख पता है ,
भाग यही है फूलों का,
पराया चुरा ले जाता है,
मेरा भी है भाग यही,
पराये संग मैं जाउँगी ,
पर अपनेपन की खुशबू से ,
अपना सबको बनाऊंगी |
तुम्हारी ही सौगात है बाबा ,
मेरे जीवन का हर पलछिन ,
तुम्ही कहो क्या भूला सकुंगी ,
बाबा तुमको एक भी दिन,
तुम्हारे दुलार की छाया में ,
जाने कितने मौसम बीते,
आने वाले मौसम तुम बिन,
लगेंगे बाबुल रीते-रीते |
पर , फूल मुझे कहते हो बाबा ,
तो फिर मुझको जाने दो,
खुशियाँ जग में बिखराऊँ मैं ,
ये रीत फूल की निभाने दो ,
पहले जब भी नन्ही बेटी ,
रूठकर आंसू बहाती थी,
बाबा के समझाने पर तब,
झट से चुप हो जाती थी,
हुआ उलट अब बूढ़े बाबा ,
बच्चे से रोते जाते हैं,
आज बिटिया के शब्द जैसे ,
बाबुल को समझाते हैं |
ह्रदय था पुलकित ,आँखें नाम थीं,
बिटिया जब हुई बिदाई ,
जाता देख अपनी लाडो को ,
बरबस फूटी माँ की रुलाई ,
अपनी नन्ही के ब्याह का ,
जो माँ सपना संजोती थी,
आज उसके सच होने पर ,
सिसक -सिसक कर रोती थी ,
कल तक जो गोदी में खेली,
पलभर में है हुई पराई ,
बिटिया से बिछोह की ऐसी ,
जग ने क्यूँ है रीत चलाई ?
थे खुशियों से सराबोर स्वजन ,
बिटिया की सज रही थी डोली ,
तब उमड़ा दुलार बाबुल का ,
और पनियाई सी आँखें बोलीं -
प्यार से मैंने बोया तुझको ,
अपनी इस फुलवारी में,
जा रही अब बिटिया तू ,
भरकर सूनापन क्यारी में,
लगता है मझको अब भी जैसे ,
तू है वही नन्ही सी कली,
पर सच है ये , के बनकर फूल,
अब तू मुझको छोड़ चली ,
बनेगी मेरा संबल बिटिया ,
मीठी-मीठी यादें तेरीं ,
जा तू नया संसार बसा ,
ले कर ये दुआएं मेरी,
दुःख के काँटों से दूर कहीं ,
बिटिया तेरी इक बगिया हो,
सुख के भोंरे हों संगी तेरे ,
तितलियाँ ख़ुशी की ,सखियाँ हों,
इस जीवन-उपवन का बिटिया,
तू है सबसे प्यारा फूल,
प्यार से जिसने तुझको सींचा ,
उस माली को ना जाना भूल |
ऐसा कहकर जब बाबुल की,
आँखों में पानी भर आया ,
गले लगा बूढ़े बाबा को,
बिटिया ने यूँ समझाया -
बाबा फूलों को सहेज सदा ,
माली भी कहाँ रख पता है ,
भाग यही है फूलों का,
पराया चुरा ले जाता है,
मेरा भी है भाग यही,
पराये संग मैं जाउँगी ,
पर अपनेपन की खुशबू से ,
अपना सबको बनाऊंगी |
तुम्हारी ही सौगात है बाबा ,
मेरे जीवन का हर पलछिन ,
तुम्ही कहो क्या भूला सकुंगी ,
बाबा तुमको एक भी दिन,
तुम्हारे दुलार की छाया में ,
जाने कितने मौसम बीते,
आने वाले मौसम तुम बिन,
लगेंगे बाबुल रीते-रीते |
पर , फूल मुझे कहते हो बाबा ,
तो फिर मुझको जाने दो,
खुशियाँ जग में बिखराऊँ मैं ,
ये रीत फूल की निभाने दो ,
पहले जब भी नन्ही बेटी ,
रूठकर आंसू बहाती थी,
बाबा के समझाने पर तब,
झट से चुप हो जाती थी,
हुआ उलट अब बूढ़े बाबा ,
बच्चे से रोते जाते हैं,
आज बिटिया के शब्द जैसे ,
बाबुल को समझाते हैं |
ह्रदय था पुलकित ,आँखें नाम थीं,
बिटिया जब हुई बिदाई ,
जाता देख अपनी लाडो को ,
बरबस फूटी माँ की रुलाई ,
अपनी नन्ही के ब्याह का ,
जो माँ सपना संजोती थी,
आज उसके सच होने पर ,
सिसक -सिसक कर रोती थी ,
कल तक जो गोदी में खेली,
पलभर में है हुई पराई ,
बिटिया से बिछोह की ऐसी ,
जग ने क्यूँ है रीत चलाई ?
Friday, June 4, 2010
"कुछ खास हो तुम"
तरसती नजरो की प्यास हो तुम.....
तड़पते दिल की आस हो तुम....
भुझती जिन्दगी की साँस हो तुम
फिर कैसे ना कहे की
"कुछ खास हो तुम"
तड़पते दिल की आस हो तुम....
भुझती जिन्दगी की साँस हो तुम
फिर कैसे ना कहे की
"कुछ खास हो तुम"
"मेरे पास हो तुम"
अक्सर तुम्हे देखा है........
अक्सर तुम्हे देखा है........
अक्सर तुम्हे देखा है मेरी ओर देखते हुए......
मेरी हर बात धयान से सुनते हुए...
अक्सर तुम्हे देखा है अपनी नजरो से मुझे टटोलते हुए...
दूर रहकर भी मुझपर अपनी हुकूमत चलते हुए....
अक्सर तुम्हे देखा है मेरी फ़िक्र करते हुए....
अक्सर तुम्हे देखा है मुझे सहलाते हुए...
मुझको समझाते हुए........
बस देखता ही रह जाता हू हर खवाब में
मेरे हर ख़यालात में........
Thursday, June 3, 2010
स्पेशल चाय या आंसू
मन में एक चाहत हुयी
औरो की भाति कभी
बाहर जाकर खड़े -खड़े
चाय पीने का लुफ्त उठाऊ
सो निकल पड़ा-
सड़क के किनारे
एक नामी चाय की गुमटी
लोगो की जमात
हाथों में संभाले
चाय,पान,बिस्कुट
खड़े बैठे
चुस्की,चबाते,खाते लोग
बगल में चाय के उबलते
खोलते रंग बदलते पानी
इधर हाथ में फद्फरते
अखबार के पन्ने
उधर तूफान की तरह गुजरते सड़क पर
मोटर करे...
जल्दी जल्दी भागते नौकरिपेसा लोग
साईकल के पैदल मारते कुछ तेज मारते
लड़के लड़कियां
स्कूल पहुचने की हड़बड़ी !
तैयार चाय सर्व करते करते
इधर एक दुबले पतले लड़के के
हाथों से फिसलता ग्लास
फ़र्स पर बिखरा
गुमटी मालिक का जोरदार थपड...
तिलमिलाया बेचारा......
एक गूंगी चीख...
संधे गले के भीतर
गुदमुड़ाने लगा
खुलकर आंसू भी
बाहर आ ना सके....
वैसे शायद यहाँ
शख्त हिदायत होगी
खुलकर रोने से
ग्राहक टिक नहीं पाएंगे
सिसकते हुए भी हँसना मगर
लोगो को स्पेशल चाय पिलायेंगे
अनुशासित अस्भ्सयत बेचारा!
सिसकियों के सहारे
अब खुद आंसू पीने लगा
ग्राहकों को चाय थमाते आगे बढ़ने लगा!!!!
औरो की भाति कभी
बाहर जाकर खड़े -खड़े
चाय पीने का लुफ्त उठाऊ
सो निकल पड़ा-
सड़क के किनारे
एक नामी चाय की गुमटी
लोगो की जमात
हाथों में संभाले
चाय,पान,बिस्कुट
खड़े बैठे
चुस्की,चबाते,खाते लोग
बगल में चाय के उबलते
खोलते रंग बदलते पानी
इधर हाथ में फद्फरते
अखबार के पन्ने
उधर तूफान की तरह गुजरते सड़क पर
मोटर करे...
जल्दी जल्दी भागते नौकरिपेसा लोग
साईकल के पैदल मारते कुछ तेज मारते
लड़के लड़कियां
स्कूल पहुचने की हड़बड़ी !
तैयार चाय सर्व करते करते
इधर एक दुबले पतले लड़के के
हाथों से फिसलता ग्लास
फ़र्स पर बिखरा
गुमटी मालिक का जोरदार थपड...
तिलमिलाया बेचारा......
एक गूंगी चीख...
संधे गले के भीतर
गुदमुड़ाने लगा
खुलकर आंसू भी
बाहर आ ना सके....
वैसे शायद यहाँ
शख्त हिदायत होगी
खुलकर रोने से
ग्राहक टिक नहीं पाएंगे
सिसकते हुए भी हँसना मगर
लोगो को स्पेशल चाय पिलायेंगे
अनुशासित अस्भ्सयत बेचारा!
सिसकियों के सहारे
अब खुद आंसू पीने लगा
ग्राहकों को चाय थमाते आगे बढ़ने लगा!!!!
Wednesday, June 2, 2010
चाँद के आंसू!!!!!!!!
भावनाए
जो मृत हो चुकी है!
वो चेहरे
जो बदल गए है
वो ईमारत
जो मात्र एक ईट पर टिकी है
मुझे भरम है की
क्या कभी पोछ सकेंगे
ये चाँद के आंसू
अब जरुरत है
नयी चेतना,नयी प्रेरणा,नयी जाग्रति की
जो समाज की झूटी परम्परा से
टकरा सके
और
नए विचार ,नया समाज
उत्पन कर सके
और पोछ सके
ये चाँद के आंसू!!!!!!!!
जो मृत हो चुकी है!
वो चेहरे
जो बदल गए है
वो ईमारत
जो मात्र एक ईट पर टिकी है
मुझे भरम है की
क्या कभी पोछ सकेंगे
ये चाँद के आंसू
अब जरुरत है
नयी चेतना,नयी प्रेरणा,नयी जाग्रति की
जो समाज की झूटी परम्परा से
टकरा सके
और
नए विचार ,नया समाज
उत्पन कर सके
और पोछ सके
ये चाँद के आंसू!!!!!!!!
कपटी नकाब हटती !!
खुद में खुदा जो होता तो हम खुशनसीब होते !
भ्रम से भ्रमण ना होता तो हम सभी ना रोते !!
सब खुशनसीब होते ,तनहा सभी की कट जाती
मिट जाती दूरियां सब आपस में सबकी पटती
नहीं भेदभाव रहता नहीं कुछ अभाव रहता
जबकि मनुसयता से कपटी नकाब हटती
सुख स्वर्ग का सभी को मिलता वसुंधरा पर !
दर्पण में रहती चितवन चलती ना अप्सरा पर
घटता ना कुछ किसी का नहीं देह कोई कटती !
जब की मनुष्यता से कपटी नकाब हटती !!
हस लेती सत्यता जब किस्मत कभी ना रोती
बंदा से हो इबादत खुशिया खुदा को होती
वाव्हिचार जब ना होता,अपहरण मरण घट जाती !
जबकि मनुसयता से कपटी नकाब हटती
बंदा से बदनसीबी कही दूर जा कर कटती !
खुशिया करीब आकर आपही सिमटती !!
खुद में खुदा जो होता हर रैन चैन से कटती!
जबकि मनुसयता से कपटी नकाब हटती !!
भ्रम से भ्रमण ना होता तो हम सभी ना रोते !!
सब खुशनसीब होते ,तनहा सभी की कट जाती
मिट जाती दूरियां सब आपस में सबकी पटती
नहीं भेदभाव रहता नहीं कुछ अभाव रहता
जबकि मनुसयता से कपटी नकाब हटती
सुख स्वर्ग का सभी को मिलता वसुंधरा पर !
दर्पण में रहती चितवन चलती ना अप्सरा पर
घटता ना कुछ किसी का नहीं देह कोई कटती !
जब की मनुष्यता से कपटी नकाब हटती !!
हस लेती सत्यता जब किस्मत कभी ना रोती
बंदा से हो इबादत खुशिया खुदा को होती
वाव्हिचार जब ना होता,अपहरण मरण घट जाती !
जबकि मनुसयता से कपटी नकाब हटती
बंदा से बदनसीबी कही दूर जा कर कटती !
खुशिया करीब आकर आपही सिमटती !!
खुद में खुदा जो होता हर रैन चैन से कटती!
जबकि मनुसयता से कपटी नकाब हटती !!
गुमशुदा की तलाश
एक दुबली पतली सी लड़की
जिसकी उम्र हजारो साल है
जो सचाई की बेदाग़ साछी
और पहने हुए है संकृति की निर्मल परिधान
नवयुग के मेले में विश्व के बाजार में लापता हो गयी है !!!!!!
कहते है सभ्तया की सड़क पर
अनेकिता के वहां पर स्वर कुछ भौतिकवादी अपराधी
उससे भगा कर ले गए है!
पुलिश देखती रह गयी
आप सब से प्राथना है
जो उससे पाए घर पहुंचा दे
राह खर्च के अलावे इनाम भी दिया जायेगा
लड़की का नाम है "मानवता "
Tuesday, June 1, 2010
क्यूँ है हमसे ये बेरुखी.....
क्यूँ है हमसे ये बेरुखी.....
जब भी बात करना चाहा
निगाहे उठी उनकी रुखी रुखी
कभी दिल हमारा भी होता है
हाले दिल सुनाने को !!!
कभी हाले दिल सुनने को!!!
जब भी चाही उनसे गुफ्गु करनी
कभी इधर तो कभी उधर
मसरूफ होने की बात कही!
क्या हम जिन्दगी के उस मक़ाम पे पहुंचे है?
जहा हम पसंदगी का सवाल है!
अगर उनकी निगाह में यही सच है
तो जीना हमारा बेकार है!!!
Subscribe to:
Posts (Atom)