Friday, December 7, 2012

छत पर खड़ी हुयी लडकियाँ

छत पर खड़ी हुयी लडकियाँ 
 इंतजार करती है मौसम के बदलने का 
ताकि  वक़्त  के  चेहरे पर मल सके गुलाल 
और अपने लिए सिलवा सकें 
छिट का नया ब्लाउज !

छत्त पर खड़ी हुयी लडकियाँ 
सपने बुनती है अपना घोंसला 
अंडे सेने के लिये !!

छत पर खड़ी हुयी लडकियाँ 
अपनी आँखों  भर लेना चाहती  है 
अनंत आकाश 
और  रखना चाहती है 
अपनी सांस में धरती की सोंधी गंध !

छत पर खड़ी हुयी लडकियाँ 
दूर तक देखती है 
कतार में उड़कर जाते  हुए  बगुले  को 
और सोचती है -कैसा  लगता होगा 
जब नील समुन्द्र में पडती  होगी 
  डूबते  सूरज की लाल  परछाई !!

 सुबह से  पहने 
धुवे के लिबास को 
 साँझ अलगनी पर  टांग कर 
   खुली हवा में बतियाती हुयी 
अच्छी लगती है 
छत पर खड़ी हुयी लडकियाँ !!!!

Monday, November 19, 2012

सपने में आना तुम !!!!

बरसे जब 

रात भर 


सपनो में आना तुम !

रह-रह यादों की 



झील जब उमड़ 



पलकों पर लाज का 





पहरा जब पड़ जाए 



चुपके से 



दबे पाँव गुमसुम 



सपनो में आना तुम!






नेह के उपवन में 



महके जब पारिजात 



शरमा के पूनम का 



चाँद जब तमाम रात 



बदलो की ओट में हो जाए गुम 



सपनो में आना तुम!






चांदनी सिमट जाए 



शबनम की बाहों में 



भोर जब बिछा जाए 



बीथियों में,राहो में 




रश्मियों के 



लल्चोह्ये बिदुम 



सपने में आना तुम !!!!

Sunday, November 18, 2012

सपने सच नहीं होते !!!!

पिता की  कमर 
नहीं थी झुकी 
और उनके चौड़े  कन्धे पर 
खेल रहा था मैं 
गिलहरी की तरह 

मैं जा रहा था स्कूल 
पीठ पर लादे  बक्सा 
और खेल रही थी  बहिन 
मैदान में निर्भय ......
खोदी जा रही थी नीव 
 खूब गहरी ....
 एक  मकान के लिए 
ज्योंकि पिता का सपना था 
पिता के पिता का भी 
और
मजदूर  तैयार कर रहे थे गारा 
माँ पका रही थी 
धीमी आंच पर सोंधी रोटी 
उनके लिए .......
माँ खुश थी 
पिता से अधिक 
पिता खुश थे 
माँ से अधिक 
अचानक झटके से टूटी  नींद 
मैं देख रहा था सपना 
सपने में खुश थी माँ ,पिता और मैं भी 
भयभीत  हू  मैं 
सुना है ------
पिता की  कमर 
नहीं थी झुकी 
और उनके चौड़े  कन्धे पर 
खेल रहा था मैं 
गिलहरी की तरह 

मैं जा रहा था स्कूल 
पीठ पर लादे  बक्सा 
और खेल रही थी  बहिन 
मैदान में निर्भय ......
खोदी जा रही थी नीव 
 खूब गहरी ....
 एक  मकान के लिए 
ज्योंकि पिता का सपना था 
पिता के पिता का भी 
और
मजदूर  तैयार कर रहे थे गारा 
माँ पका रही थी 
धीमी आंच पर सोंधी रोटी 
उनके लिए .......
माँ खुश थी 
पिता से अधिक 
पिता खुश थे 
माँ से अधिक 
अचानक झटके से टूटी  नींद 
मैं देख रहा था सपना 
सपने में खुश थी माँ ,पिता और मैं भी 
भयभीत  हू  मैं 
सुना है ------
सपने सच नहीं होते !!!!
     सिद्धार्थ सिन्हा ,राँची 

Wednesday, October 31, 2012

आदमी सड़क का

वो रोज पाँच रुपया के चार गोलगप्पे खिलाता था  
आज उसने पाँच रुपया के तीन दिए 
मैंने पूछा दाम क्यूँ ज्यादा   कर दिए 
वो बोला"सर,पेट्रोल के इंटरनेशनल कीमतों और 
रुपया-डालर के मूल्यों के आधार पर 
मैं गोल गप्पे के दाम तय करता हु
पानी फ्री है 
क्यूंकि पास की नदी से भरता हू
आपको कोई आपति है 
तो कही और जा कर खाइए 
ज्यादा  बहस करनी हो तो संसद में जाइये 
वह बहस में ऐसे ही मुद्दे आते है 
गोल गोल पेट वाले 
गप्पे लगा कर 
कैंटीन में सस्ते 
गोल गप्पे खाते  है 
मैं बोला,सब ठीक है भैया 
पर पेट्रोल की कीमतों का 
गोल गप्पे से क्या है नाता ? 
क्या तू,गोल गप्पो के साथ पेट्रोल है पिलाता 
वो बोला,
गोल गप्पे बेचने पेट्रोल की कार से आता हू 
वो देखो सामने खड़ी  है 
कितनी बड़ी है ?
गोल गप्पो से भरी पड़ी है 
मेरी पास ऐसी चार गाड़ियाँ है 
पत्नी के पास हजार साड़ियाँ है 
बेटा कंपनी में सी इ ओ है 
बहू बैंक में पीओ है 
फिर भी,सड़क पर खड़े हो कर  
मैं गोल गप्पे बेचता हू
क्यूंकि,मैं आदमी सड़क का हू
आदमी सड़क का हू!!!!! 

Saturday, October 13, 2012

रिश्ते छायावादी


दोस्तों बहुत  दिनों  के बाद  फिर  से एक कविता लिखी है आपके असीरवाद के लिए पेश कर रहा हु:) 


धुप चढ़ी तो उतर गयी
क्या रेशम क्या कड़ी 
बरगद  के  नीचे सारे 
रिश्ते   छायावादी 

गाज गिरी छप्पर पर 
टूटे पुस्तैनी ताले 
आपस में समधी है 
पाँव सभी छाले वाले 

अंधकार में एक जात है 
पूरी आबादी 

सबको सुर में बांध रहा है 
संकट हीरामन
घूम रहा कुंडली मिलाता 
दुःख नाई बाह्मण


लाचारी की बलिहारी है 
जोड़ी जुड़वाँ दी 

मन मिलाकर मीनार हुए थे 
फाकामस्ती  में 
चार टका   आते ही पड़ी 
दरार गिरिस्थी  में 

भोज हुआ तो छुट गयी 
पूजा परसादी 
  





Tuesday, September 25, 2012

प्रयास

कल रात मेरे मन में एक विचार कौधा उसको मैंने शब्द दे दिए और देखा तो कविता जैसा 
कुछ का निर्माण हो गया....आप मित्रो से निवेदन है इसको पढ़े और बताये क्या ये कविता है?है तो 
कैसा है .......आपका मैं सदा आभारी रहूँगा...............

           प्रयास 

जनता बहुत उदास है ,
कोई नेता आसपास है !

यहाँ बड़े बड़े पुजारी है 
मंदिरों में उगी घास है !

हसने का राज बस इतना सा 
पडोसी जरा उदास है !

कल दोस्त के घर जश्न  था, 
आज मेरे घर उपवास है !

देव उतरे धरती पर 
स्वर्ग में उलास है !

आदमियों के बाजार में ,
मुझे बिकने का अभ्यास है !

सच ने ठगा हमेशा से ,
अब झूट का प्रयास है !

एक एहसास

एक घुटन

जो समय के साथ साथ 

बढती जा रही है 

नित नए कडवे अनुभव 

अपने अन्दर समेटे हुए 

ये मन न जाने कब तक 

दिन ब दिन 

इसके बढ़ने को सहता जायेगा 

एक तालाब की तरह शांत सा 

ऊपर से दिखने में 

जिसमें कभी लहरें नहीं उठती 

कभी तूफान नहीं आता 

किसी के शरारत का कंकर 

थोड़ी देर के लिए हिला गया 

बैचैन कर गया 

और 

इन बैचेनियों का दर्द सहते हुए 

फिर भी शांत 

बहुत चुभती है इसकी शान्ति 

घुटन भरी शांति 

न जाने कब लहरें उठेंगी 

इन तालाब में 

और बाहर आएगा इसका दर्द 

इसकी घुटन 

जो दे इनको वास्तविक शांति 

लहरों 

मत बनो सागर की बपोती 

जानो 

की इन्तजार में है तुम्हारे 

एक तालाब भी !!!




Saturday, September 15, 2012

मैं कवि नहीं

मैं कवि नहीं 
न ही कविता लिखना मेरा पेशा  है 
फिर भी लिखता हु कभी कभी 
लिखता हू  
जब अपनी पीड़ा को 
सबके सामने बया नहीं कर पता 
लिखता हू
जब अपने आत्मसमान को 
तिल तिल मरते देखता हू  
जब हर काम के लिए मुझे 
बाबुओं की जी हजुरी करनी पड़ती है 
लिखता हू 
जब सरकारी विभाग  में 
मेरे अक्सर झगडे हो जाते है 
अपने काम करवाने के लिए 
ऐसा नहीं ,की मैं बतामिज नहीं 
बल्कि इसलिए 
की उन्हें ही नहीं एहसास 
उनके पद से जुड़े कर्त्तव्य का 
फिर भी मैं लिखता हू
पर मैं कवि नहीं 
दरअसल मैं विद्रोही हु 
और मुझे अभी अभी एहसास हुआ है 
अपनी नयी पहचान का 
यह देख कर 
की बेईमान लोग अब 
मुझसे खौफ्फ़  खाने  लगे है 
और मुझ जैसे विद्रोही की 
संख्या बढ़ने लगी है 

Tuesday, September 11, 2012

रेत की सहेली


                         

हाथ से फिसलती रेत से
पूछा मैंने एक बार- 
कौन है तेरी सहेली?

मुस्कुराकर रेत ने कहा ,
वोही जो संग तुम्हारे गाती है 
उलझा कर तुम्हे गीतों में 
धीरे  से फिसल जाती है !"

मुझमें उसमें फर्क है इतना 
मैं हकीकत वो एक सपना !
मेरी फिसलन दिखती है  
महसूस भी हो जाती है !"

'....पर वो निगोड़ी देकर एहसास ,
सफ़र के साथ 
फिसलन हाथो से 
न जाने कहा खो जाती है ,
मत पूछ उसका नाम 
"जिन्दगी" कहलाती है !!!!!'


Monday, July 30, 2012

चुप भी रहते है तो.........

चुप भी रहते है तो एक तर्ज-ए -बया रखते है ,
हम वो कतरा है जो दरिया की जुबा रखते है !

लोग होते है वोही दुनिया में साहसी 
साथ अपने जो चिरागों का धुआ रखते है !  

सब से छुटा है तेरा साथ ,तेरे दीवाने 
मोम के शहर में धागों की दुकान रखते है !

इश्क की जंग में सब हारे हुए शहजादे  
चांदनी,धुल,हवा ,उजड़े मका रखते है !

दोस्तों,आग का,पानी से पता देते है 
सिर्फ आंसू है जो दर्द का पता रखते है !

कितने बेदर्द है इस शहर के रहने वाले 
दर्द होता है जहा हाथ वहा रखते है !

हमको सीने से लगा ले हमें मायूस न कर 
जिन्दगी हम जो तेरा बहमो-गुमान रखते है !

पार कर देते है जो लोग दुःख का दरिया 
वक़्त की रेत पर गजलो के निशा रखते है !!!

Tuesday, July 24, 2012

मगर तुम नहीं थे....!!!

दरख्तों के दरमियाँ  
सूरज की आहट हुयी 
और फैलती चली गयी 
धुप की एक विशाल चादर 
कलियों से शरमाकर 
अपनी घूँघट 
उतार फैका 
धुप की तपिश  
अपने शबाब पर थी 
माथे पर पसीने की बुँदे 
दरवाजे और खिडकियों पर 
खस के परदे 
आँखों पर धुप का चश्मा 
सभी कुछ था 
मगर तुम नहीं थे....!!!

सावन की दबिश  के साथ 
पहली फुहारों में 
नदी -नाले उफान पर थे 
मौसम के साथ ही 
अन्तेर्मन भींग चुका था 
सड़के सुनसान 
और गलियों की जवानी 
नदारत थी 
आसमान पर अलसाये बादल थे 
प्याले में रखी चाय 
अभी तक गर्म थी 
पुराणी यादों को तजा करती 
ऍफ़. एम् बंद की स्वरलहरियां थी 
मगर तुम नहीं थे......!!!

सदियों के ख़त आये 
सूरज के गुलाबी होते ही 
धुप की चादर
कही खो गयी 
अलसाये बादलो का 
फिर पता नहीं चला 
कहा गए
लोग तरसते रहे 
अंजुरी भर धुप के लिए 
और धुप थी की 
ठन्डे बादलो से 
छन  कर आ रही थी 
पैरो में उनी मौजे थे 
हाथो में ग्लास था 
कार्डिगन ,गलाबंद 
और दस्ताने 
सभी कुछ था 
मगर तुम नहीं थे....!!!

Thursday, July 19, 2012

प्रेम की नजर


तुमने डाली है प्रेम की ऐसी नजर ,


की मेरा गीत निखरने लगा है !


भवन जीवन का बन गया था खंडहर 


की तेरे इशारे से फिर सवरने लगा है !


सब दिशाओं में मच रहा था बवंडर 


तेरी हूक से सब कुछ ठहरने लगा है !


मैं गिर गया था घोर तमस में 


तेरी वाणी से पथ जिलमिलाने लगा है !


चल दिया था मैं भी बनने सिकंदर 


भीतर प्रेम का ज्योत जलने लाना है !


मेरा दिल बन गया उदासी का समंदर 


तुने गुदगुदाया तो रोम रोम महकने लगा है !


दुखो ने बनाया था मौत का तलबगार इस कदर 


बने जो नील कंठ तुम,दिल फिर जीने को मचल रहा है !!!

Tuesday, July 17, 2012

नदी नहाती है !

हुयी सुख  कर जो कांटा थी 
अब अधियाती है 
बड़ी किरपा  की अरे राम जी 
नदी नहाती है !

गीले हुए रेत के कपडे 
सजल हुए तटबंद 
छल-छल करके हरे हो गए 
कल के सब सम्बन्ध 
अपना सुख -दुख लहर लहर से
बनते जाती है !
बड़ी किरपा की अरे राम जी 
नदी नहाती है !

शुरू हो गयी वोही कहानी 
होठ लगे हिलने 
अपनी गागर ले कर चल दी 
सागर से मिलने !
सुनती नहीं किसी की 
बात बनाती है !
बड़ी किरपा की अरे राम जी 
नदी नहाती है !

खूब सताया सूखे जेठ ने 
तरस नहीं आया 
तब इस पर क्या गुजरी 
सागर जान नहीं पाया 
कोई शिकवा नहीं ,प्यार का 
धर्म निभाती है!!!
बड़ी किरपा की अरे राम जी 
नदी नहाती है !!!!!
          

Thursday, July 12, 2012

छाता और महकता हुआ गुलाब


बहुत  दिनों से इच्छा थी 
की  तुम्हारे लिए     
खरीद  दू 
एक कामचलाऊ  मगर  
सस्ता सा छाता           
चिल्चाती धुप के बीच 
तुम्हे आना जाना पड़ता है 
जिसकी वजह से 
पसीने से भींग कर 
कुम्हला जाता है  
तुम्हारा गुलाबी चेहरा 














































आज दोपहर में जब 
तुम स्टैंड पर खड़ी थी 
कर रही थी इन्तजार 
बस का 
और सूरज नोच रहा था 
तुम्हारा बदन 
तब मैं यही सब सोच रहा था 
की अचानक एक काली बदली 
भटकती हुयी सी आई जाने कहा से 
और छाता बनकर तन गयी 
तुम्हारे उपर 
मैं बहुत खुश था 
की मेरी इच्छा पूरी हो गयी 
तुम भी तो खुश थी बहुत 
जैसे महक उठा हो 
गुलाब कोई !!!!!

Friday, July 6, 2012

पहचान

वो गाव  की पगडण्डी                                   
वो पछियों का कलरव 
वो चहलकदमी करते घर आँगन में नन्हे -से-मेमने 
खुले आसमान में सितारों के बीच 
तन्हा चाँद आज भी उदास सा है जब से मैंने देखा है उसे  गाव में 
घर के चबूतरे  पर पर खड़े होकर ........
गाव की सोंधी खुशबु का एहसास...... 
पता नहीं,कहा...खो -सा गया?

सब कुछ पीछे छुट -सा गया है....आज 
गाव का एहसास दम तोड़ने लगा है अब,
गाव की पक्की सड़के ...पक्के मकान ,
मोबाइल के गगनचुम्बी टावर 
मोटरसाइकिल के   धुओं से अब ,
गाव की पहचान ही बदल सी गयी है आज......! 

Thursday, June 28, 2012

मंजिल की जानिब हर एक राह नहीं जाती!

जख्म तो भर जाते  है,दिल से आह नहीं जाती ,
उम्र गुजर जाती है,जीने की चाह नहीं जाती !

दुसरो के ऐब तो इंसा को खूब दीखते है ,
अपनी खामियों पर कभी निगाह नहीं जाती !

नफरत को कभी दिल में बसने नहीं देना,
हर शख्स को घर में पनाह नहीं दी जाती ! 

बहुत सोच समझ कर सफ़र में पाँव रखना .
मंजिल की जानिब हर एक राह नहीं जाती!

याद रहे हर किसी से दर्द बांटा नहीं जाता 
और हर किसी से ली सलाह नहीं जाती !!!