Friday, December 24, 2010
स्वेटर
जाने कितनी सर्दिया
समां गयी होंगी
उस स्वेटर में
बरसो पहले बनाया था
उसने कभी मेरे लिए
जाने कितनी बार
फंदों में उन के
उलझी होंगी अंगुलियाँ
भूले- बिसरे दिनों की
यादो को समेटे हुए
अतीत के पन्नो पर
वर्तमान ने कुछ लिखा
आज फिर शायद
चलचित्र की भांति
द्र्य्श मचलने लगे
वीरान पड़ी आँखों में
बस यही तो एक
रह गयी है उसकी
निशानी पास मेरे,
उम्र के तकाजे ने
उड़ा दिया है रंग
मेरी तरह उसका भी
फिर भी रखा है
संभाल कर उसको
आने वाली सर्दियों के लिए!!!!
Saturday, December 18, 2010
ऐ भगवान तू कहाँ है
ये वीरान गलियां, ये टूटे आशियाँ
ये हैवान भवरें,ये फूल बनती कलियाँ
देख ले अपनी जमीं पर कैसा ये शमां है
शैतान बन गए इंसा ऐ भगवान तू कहाँ है
ये मासूस चेहरे,ये आसुओं का सागर
रात बनी है ज़िंदगी,ना जाने कब होगी सहर
आते है बेटे और,उनके बाप भी
यहाँ ये सहमी हुयी नादान लुट गयी जिनकी दुनिया
ये नकली मुखौटे, ये सुर्ख सजावटे
ये रोते हुए दिल मे खुशी की मिलावटे
जरा झुक के देख ले,तेरा करिश्मा यहाँ जमा है
शैतान बन गए इंसा ऐ भगवान तू कहाँ है
ये हिन्दोस्तां के सपने,ये भारत की बेटियाँ
ये आदर्श हमारे,मनाते ये रंगरेलियाँ
नेता ये कल के,ये देश के पालनहार
देश को सजा रहे जो लूट कर देश का श्रृंगार
ये नोटों के अम्बार, ये कदमो की रफ़्तार
लाल रोशनी मे डूबा, ये नकली संसार
नाज़ है जिन पर हमे,आज सारे वो यहाँ है
शैतान बन गए इंसा ऐ भगवान तू कहाँ है
अपने उस भगवान को टू जमीं पर बुलाओ
ये संसार उसका जरा उसी को दिखाओ
कोई रूप धर कर अब क्यों नही आता यहाँ है
शैतान बन गए इंसा ऐ भगवान तू कहाँ है
Friday, December 3, 2010
अधुरा चाँद
अधुरा चाँद भी कितना उदास लगता है !!
ये वस्ल का लम्हा है इसे राएगा ना समझ !
के इसके बाद वोही दूरियों का सहरा है !!
कुछ और देर ना झड़ता उदासियों का शजर !
किसे खबर तेरे साये में कौन बैठा है !!
ये रख रखाव मुहोब्बत सीखा गयी उसको !
वो रूठ कर भी मुझे मुस्कुरा कर मिलता है !!
मैं किस तरह तुझे देखू नजर झिझकती है !
तेरा बदन है की आईना का दरिया है !!!
Saturday, November 27, 2010
घायल छातियों में अब लहू का इंतज़ार है !!
किसी को खुद सर्द रातों का इंतज़ार है !!
सीमाओं से निकल के तुम भी आ जाओ,
मुझे भी सरहदों को टूटने का इंतज़ार है !!
तेरा मेरा,काला गोरा;मिट जाए भेद सभी,
मुझ रिंद को ऐसे प्यारे हिंद का इंतज़ार है !!
सियासत की बिसात पे होगा फैसला कब,
बच्चों को भी अब मंदिर मस्जिद का इंतज़ार है !!
बेरहम दुनिया में जीना है बहुत मुश्किल,
जवां बेटी के हाथों में हल्दी का इंतज़ार है !!
हम देखते हैं ग़र्क और लाचार वतन जब,
मुल्क को अब तो बापू-नेहरु का इंतज़ार है !!
जीते थे हम और तुम,हम सबके लिए कभी,
क्यों इंसान को इंसान बनने का इंतज़ार है !!
घोल रखा है जहर मुल्क के हुक्मरानों ने,
हर घर में आज फिर शिव का इंतज़ार है !!
चढ़ रहे है ऊँचाई पर आज भी द्रोण यहाँ,
अंगूठा नही अब एकलव्य का इंतज़ार है !!
नन्हे बच्चे भी झुलस रहे हैं दूध की धार में,
घायल छातियों में अब लहू का इंतज़ार है !!
इतिहास के पन्नो में खो जाएँ हम भी कहीं,
माँ भारती से अब इस आशीष का इंतज़ार है !!
Sunday, November 21, 2010
चिलमन
प्यार सच्चा था,महकता रहा चन्दन की तरह !!
तुझको पहचान लिया है तुझे पा भी लूँगा
इस जनम और मिले गर इसी जीवन की तरह !!
जब कोई कैसे,पहुँच पायेगा तेरे गम तक ,
मुस्कराहट की रिदा (चादर) डाल दी चिलमन की तरह !!
कोई तहरीर नहीं है जिसे पढ़ ले कोई
जिन्दगी हो गयी है बेदम सी उलझन की तरह !!
जैसे धरती की किसी शेह से तावालुक ही नहीं
हो गया है प्यार मुकदस (पवित्र) तेरे दामन की तरह !!
शाम जब रात की महफ़िल में कदम रखती है
भरती है मांग में सिंदूर किसी सुहागन की तरह !!
मुस्कुराते हो मगर सोच लो इतना ऐ " दोस्तों"
सूद लेती है म्सरत्त(ख़ुशी) भी महाजन की तरह !!!
Friday, November 12, 2010
अम्मा की चिट्ठी
गाँवों की पगडण्डी जैसे
टेढ़े अक्षर डोल रहे हैं
अम्मा की ही है यह चिट्ठी
एक-एक कर बोल रहे हैं
अड़तालीस घंटे से छोटी
अब तो कोई रात नहीं है
पर आगे लिखती है अम्मा
घबराने की बात नहीं है
दीया बत्ती माचिस सब है
बस थोड़ा सा तेल नहीं है
मुखिया जी कहते इस जुग में
दिया जलाना खेल नहीं है
गाँव देश का हाल लिखूँ क्या
ऐसा तो कुछ खास नहीं है
चारों ओर खिली है सरसों
पर जाने क्यों वास नहीं है
केवल धड़कन ही गायब है
बाकी सारा गाँव वही है
नोन तेल सब कुछ महंगा है
इन्सानों का भाव वही है
रिश्तों की गर्माहट गायब
जलता हुआ अलाव वही है
शीतलता ही नहीं मिलेगी
आम नीम की छाँव वही है
टूट गया पुल गंगा जी का
लेकिन अभी बहाव वही है
मल्लाहा तो बदल गया पर
छेदों वाली नाव वही है
बेटा सुना शहर में तेरे
मार-काट का दौर चल रहा
कैसे लिखूँ यहाँ आ जाओ
उसी आग में गाँव जल रहा
कर्फ्यू यहाँ नहीं लगता पर
कर्फ्यू जैसा लग जाता है
रामू का वह जिगरी जुम्मन
मिलने से अब कतराता है
चौराहों पर वहाँ, यहाँ
रिश्तों पर कर्फ्यू लगा हुआ है
इसकी नज़रों से बच जाओ
यही प्रार्थना, यही दुआ है
पूजा-पाठ बंद है सब कुछ
तेरी माला जपती हूँ
तेरे सारे पत्र पुराने
रामायण सा पढ़ती हूँ
तेरे पास चाहती आना पर
न छूटती है यह मिटटी
आगे कुछ भी लिखा न जाए
जल्दी से तुम देना चिट्ठी।
हवा चली है !
मत भूल वह जिन्दगी सड़क और मन एक गली है !!
जद्जोजेहद कर चलते गए पर अब तक ठिकाना ना मिला !
फिर क्यूँ लगता है ऐसा पता उसने सही बताई है !!
इन तंग कपड़ो में देख नजरे खुद ब खुद झूक जाती है !
सोचता हुचलो उन्हें ना शर्म किसी को तो आई है !!
सुबह से शाम शाम से सहर हर पल चिल पौ मची है !
कहते है शहर सोता नहीं,मगर नींद से आँख ललचाई है !!
कदम -दर - कदम जेब कतरे मिलेंगे इल्म ना था "सिद्धार्थ" !
शुक्र है खुदा का तन पर मेरे कमीज तो बची है!!
जल-जुलुस,जमीन और जोरू यही शक्ल है शहर की!
भला है ग़ाव जहा दरो-दिवार में इंसानियत की परछाई है !!!!
Tuesday, October 26, 2010
जिन्दगी जीने की है कला
जिन्दगी को पूरी तरह से
जीने की कला भला किसे आती है ?
कही ना कही जिन्दगी में हर किसी के
कोई ना कोई कमी तो रह जाती है ?
प्यार का गीत गुनगुनाता है हर कोई
दिल की आवाजो का तराना सुनता है हर कोई ,
आसमान पर बने इन रिश्तो को निभाता है हर कोई ,
फिर भी हर चेहरे पर वो ख़ुशी क्यूँ नहीं नजर आती है!
पूरा प्यार पाने में कुछ तो कमी रह जाती है .....
हर किसी की जिन्दगी में
कही ना कही कुछ तो कमी रह जाती है !
दिल से जब निकलती है कविता
पूरी ही नजर आती है ,
पर कागजो पर बिछते ही वो क्यूँ अधूरी सी हो जाती है ,
शब्दों के जाल में भावनाए उलझ सी जाती है ,
प्यार,किस्से,कविता सिर्फ दिलो को बहलाते है
अपनी बात समझने में कुछ तो कमी रह जाती है !
हर किसी की निगाहे,मुझे क्यूँ किसी
नयी चीजो को तलाशती नजर आती है,
सब कुछ पा कर भी एक प्यास सी आखिर क्यूँ रह जाती है !
जिन्दगी में कही ना कही कुछ तो कमी रह जाती है ....
सम्पूर्ण जीवन जीने की कला भला किसे आती है ?????
Monday, October 25, 2010
मन ना माने!!!!!!!!
धीर चुकता जा रहा है
आस टूटी फिर बंधी है
समय हँसता जा रहा है
आँख फिर भी पथ निहारे
मन ना माने.........
सुरमुई से खवाब सारे रात में
गहरे उतर कर उस गली को ढूंढते है...
जिसमें रहते है सितारे
मन ना माने
कुछ पलो की याद है
कुछ गंध सांसो की बची है
कुछ उसी में डूबता सा सोचता
जीवन गुजरे अधखुले से होठ
ये कर रहे बातें अधूरी
बंद आँख देखती है फिर पलट कर
वो नज़ारे
मन ना माने!!!!!!!!
Sunday, October 24, 2010
उस दिन......
अंतिम छोर पर
सूरज डूबता होगा
और दूर तलक रेत ही रेत होगी
जब कोई नहीं होगा आसपास
जब आसमान में कही कही
धुनकी रुई की तरह
सफ़ेद बादल होंगे
छितराए हुए
जब हौले से चलती हवा
हर तरफ फैली
हलके से छुकर
ख़ामोशी का एहसास कराएगी
जब मन में यूँ ही
कुछ गुनगुनाने का ख्याल आएगा
और फिर भी हम चुप रहेंगे
चुप कर मुस्कुराएंगे
जब पुरे जिस्म
में एक अजीब सी हरासत होगी
और मन यूँ ही मचल मचल जायेगा
जब तुम्हारी अंगुलियाँ की छुवन
तुम्हरे पास होने का एहसास कराएगी
हमारी आँखें बंद होगी
और हमारे सपने एक हो जायेंगे
उस दिन......
तुम्हारे लिए नया सवेरा होगा!!!!!
Friday, October 22, 2010
पहली बूंद!
मासूम फूलो से
पहले चटकी कलियों ने देखा
फिजा में बारिश की पहली बूंद!
रुई के कोमल फाहे सी
फिर अनगिनत
बूंद
इधर उधर अटकी पड़ी थी
लेकिन
उस पहली बूंद
के लिए ही
तृषित होठ
सुर्ख कलियों
के
विहस- लरज उठे थे
पहले बूंद ने
चुपके से उसके करीब
आकर कहा था
जगह दो मुझे
अपने प्रतिशारत होटों पर
मेरे पीछे आ रही है दौड़ी
वर्षा की अनगिनत बुँदे
तुम्हारी शरण में तोड़कर
कैद बादल की
काले सजीलेपन की
तब कलियों के
होठ लगे थे खुलने!!!
Sunday, October 17, 2010
गौरवान्वित है आज हर भारतीय
चार चाँद लग गए हमारी शान मे
कामन वेअलथ खेलों का सफल आयोजन
कर दिखलाया मेरे हिंदुस्तान ने .............
हर पदक के साथ जब
लहराया मेरा तिरंगा शान से
रोम रोम पुलकित हो उठा
गर्व से थिरक उठा हृदय
सारा वातावरण गूँज उठा जब
मेरे कर्र्ण प्रिय राष्ट्र गान से ..................
खेलों की महाशक्ति बनकर
उभर रहा मेरा हिंदुस्तान है
एक -एक पदक के खातिर तरसना हुआ ख़तम
हो गई एक नए युग की शुरुआत है ..................
बेटों संग बेटिओं ने भी खूब नाम कमाया है
कुश्ती के बने सरताज हम
बोक्सिंग मे लोहा मनवाया हमने
अर्जुन से मेरे शूर वीरों ने दिखलाया
हम नहीं हैं किसी से कम ...........
कामन वेअलथ मे जीते हम
अब ओलंपिक की बारी है
पश्चिम को बता देंगे हम
बीसवीं सदी बेशक थी उनकी
इक्कसवीं सदी हमारी है ..............
शुरूआती और समापन समारोह मे
मेरे हिंद की रंग बिरंगी छठा बिखेरी है
दिखला दिया हमने दुनिया को
भारत महज़ जमीं का एक टुकड़ा नहीं
प्रतिभाओं और कितने ही रंगों को समेटे
अपने आप मे ही एक दुर्लभ संसार है...............
संसार के कोने कोने से आने वाले
आप सब लोगों का हार्दिक आभार है
प्यार का कारवां यूं ही चलता रहेगा
मेरे देश मे आना फिर ओल्य्म्पिक मे
हमे आपका इंतज़ार है
हमे आपका इंतज़ार है ........................
Sunday, October 10, 2010
मशहूर शायरों की शायरी....
कुछ दिन तो बसो मेरी आँखों में
फिर ख्वाब अगर हो जाओ तो क्या
कोई रंग तो दो मेरे चेहरे को
फिर ज़ख्म अगर महकाओ तो क्या
जब हम ही न महके फिर साहब
तुम बाद-ए-सबा कहलाओ तो क्या
एक आईना था, सो टूट गया
अब खुद से अगर शरमाओ तो क्या
दुनिया भी वही और तुम भी वही
फिर तुमसे आस लगाओ तो क्या
मैं तनहा था, मैं तनहा हूँ
तुम आओ तो क्या, न आओ तो क्या
जब देखने वाला कोई नहीं
बुझ जाओ तो क्या, गहनाओ तो क्या
एक वहम है ये दुनिया इसमें
कुछ खो'ओ तो क्या और पा'ओ तो क्या
है यूं भी ज़ियाँ और यूं भी ज़ियाँ
जी जाओ तो क्या मर जाओ तो क्या
------- उबैदुल्लाह अलीम-----
2.
तेरे इश्क़ की इन्तेहा चाहता हूँ
मेरी सादगी देख, क्या चाहता हूँ
सितम हो कि हो वादा-ए-बे-हिजाबी
कोई बात सब्र-आजमा चाहता हूँ
यह जन्नत मुबारक रहे जाहिदों को
कि मैं आपका सामना चाहता हूँ
सारा सा तो दिल हूँ मगर शोख इतना
वही लनतरानी सुना चाहता हूँ
कोई दम का मेहमान हूँ, ए अहल-ए-महफिल
चिराग-ए-सहर हूँ, बुझा चाहता हूँ
भरी बज़्म में राज़ की बात कह दी
बड़ा बे-अदब हूँ, सज़ा चाहता हूँ
(अल्लामा इकबाल)
Saturday, October 9, 2010
पर मैंने ऐसा नहीं किया!!!!!!
मैंने सोचा आप मेरी तरफ देखेंगी,पर आपने ऐसा नहीं किया!
मैंने कहा 'मैं आपसे प्यार करता हू"
और इन्तजार किया की आप भी यही कहेंगे.....
मैंने सोचा आप मेरी बात सुन लेंगे,पर आपने ऐसा नहीं किया!!!
मैंने आपसे कहा की बाहर आकर मेरे साथ बैट-बाल खेले
मैंने सोचा की आप मेरे पीछे पीछे आयेंगे ,पर आपने ऐसा नहीं किया!
मैंने एक तस्वीर बनायीं,सिर्फ आपको दिखाने के लिए....
मैंने सोचा आप इससे संभाल कर रखेंगे
पर आपने ऐसा नहीं किया !!!
मुझे कुछ बातें करने के लिए विचार बताने की जरुरत थी.....
मैंने सोचा आप सुनना चाहेंगे,पर आपने ऐसा नहीं किया!
मैंने पुरे किशोरावस्था में आपके करीब आने की कोशिश की....
मैंने सोचा आप भी करीब आना चाहेंगे,पर आपने ऐसा नहीं किया!!!
मैं युद्ध में देश की तरफ से लड़ने गया,आपने मुझे सुरषित घर लौटने
को कहा
पर मैंने ऐसा नहीं किया!!!!!!
Thursday, October 7, 2010
मेरी जान तुम्ही हो
आन -बान ,शान और मेरा ईमान तुम्ही हो
चल कर मंजिले सफ़र में बेमुकाम ठहर गये
जिसका था इन्तजार वो मेहमान तुम्ही हो
न मंदिर पे सजदा न मस्जिद को दी सलामी
पूजा है जिसे दिल से वो दिले नादान तुम्ही हो
जब सबने ठुकराया तब तुमने दिया सहारा
भूलूंगा नही उम्र भर वो एहसान तुम्ही हो
मील के पत्थरों ने तो खूब भटकाया हमे
अब् तो आखरी मंजिले निशान तुम्ही हो
लोग अक्सर पूंछते हें मेरा मुझसे ठिकाना
अरे मेरा पता और मेरी तो पहचान तुम्ही हो
Sunday, October 3, 2010
आदते हमारा चरित्र बनती है!!!!
जिन्दगी को तबाह करना पड़ा !!!!!
जिन्दगी से निबाह करना पड़ा
इसलिए ही गुनाह करना पड़ा
वक़्त ऐसा भी हम पर गुजरा जब
आह भर भर कर वाह करना पड़ा
उनकी महफ़िल में रोशनी के लिए
कितनो को आत्मदाह करना पड़ा
अर्थ -वेदी पर भावनाओ को
आंसुओं से विवाह करना पड़ा
चंद गीतों की जिन्दगी के लिए
जिन्दगी को तबाह करना पड़ा !!!!!
Friday, October 1, 2010
किसी की आखिरी निशानी
मेरी जिन्दगी एक किस्सा एक कहानी है !!!!
मिटा देते इस दर्द को दिल से
पर ये दर्द तो किसी की आखिरी निशानी है !!!!!
शीशा
सारे अरमान मेरे टूट गए........
नफरत का ढोंग उन्होंने ऐसा रचाया
की वो पत्थर बनकर जीने लगे,
और हम शीशा बनकर टूट गए.....
Tuesday, September 28, 2010
हर राज़ खोलती हैं
क्या क्या छुपा है दिल में हर राज़ खोलती हैं
आँखों में बसे अश्क भी आज़ाद हो गए
हम तो संभल संभल कर बर्बाद हो गए
आहों से भरी साँसे भी कुछ बात बोलती हैं
क्या क्या छुपा है दिल में हर राज़ खोलती हैं
हमने कभी जो चाहा किस्मत से वो णा पाया
महफ़िल के दौर में भी तनहा ही खुद को पाया
तन्हाईयाँ भी सांसों में कुछ दर्द घोलती हैं
क्या क्या छुपा है दिल में हर राज़ खोलती हैं
तुम तो थे मेरे अपने तुम ही न जान पाए
हाल - ए- दिल को मेरे पहचान ही न पाए
बिन मांझी के जिंदगी कि नैया ये डोलती है
क्या क्या छुपा है दिल में हर राज़ खोलती हैं..
हर राज़ खोलती हैं......
Monday, September 27, 2010
बिटिया सयानी हो गयी है
सड़क पर कोई आया तो नहीं,
शायद आया?कब आया?
क्यों आया?किधर देखता है?
किसे देखता है?क्यों देखता है?
क्या बोला?नहीं बोला नहीं,
बस फुसफुसाया,पर क्यों?
दिल धड़कने लगा है मेरा,पर क्यों?
नहीं, ऐसा कुछ नहीं है,वो तो पढ़ रही है,
परीक्षा की तयारी कर रही है,खिड़की भी बंद है,
कौन था वो,जरा देखूं तो,अरे कोरियर वाला,
चला भी गया,मैं भी नाहक, परेशां,
फिर क्यों धड़कने लगता है मेरा दिल,
कुछ भी खटपट से चोंक जाता हूँ मैं?
करूं भी तो और क्या?
बिटिया सयानी हो गयी है,
हर पल यही चिंता सताती है....
बस ऊंच नीच के डर की..
बिटिया सयानी हो गयी है
सड़क पर कोई आया तो नहीं,
शायद आया?कब आया?
क्यों आया?किधर देखता है?
किसे देखता है?क्यों देखता है?
क्या बोला?नहीं बोला नहीं,
बस फुसफुसाया,पर क्यों?
दिल धड़कने लगा है मेरा,पर क्यों?
नहीं, ऐसा कुछ नहीं है,वो तो पढ़ रही है,
परीक्षा की तयारी कर रही है,खिड़की भी बंद है,
कौन था वो,जरा देखूं तो,अरे कोरियर वाला,
चला भी गया,मैं भी नाहक, परेशां,
फिर क्यों धड़कने लगता है मेरा दिल,
कुछ भी खटपट से चोंक जाता हूँ मैं?
करूं भी तो और क्या?
बिटिया सयानी हो गयी है,
हर पल यही चिंता सताती है....
बस ऊंच नीच के डर की..
Saturday, September 25, 2010
सल्तनत के नाम एक बयान
आज शायर,ये तमाशा देख कर हैरान है
खाश सड़क बंद है तब से मरमत के लिए
ये हमारे वक़्त की की सबसे सही पहचान है
एक बुढा आदमी है मुल्क में या यूँ कहो
इस अँधेरी कोठेरी में एक रोशनदान है
मर्सल्हत आमेजे होते है सियासत के कदम
तू न समझेगा सियासत तू अभी इंसान है
इस कदर पाबन्दी-ए-महजब की सदके आपके
जब से आजादी मिली है मुल्क में रमजान है
मुझमें रहते है करोडो लोग चुप कैसे रहू
हर गजल अब सल्तनत के नाम एक बयान है!!!
Wednesday, September 22, 2010
दीवार हुआ चाँद..
तारों की तरह टूट के दो चार हुआ चाँद..
आँखें भी जलीं, दिल भी जला, मैं पिघल गया
ख्वाबों की झुलस नें कहा अंगार हुआ चाँद..
राहों में तुम्ही तुम थे, बदलता रहा सफर
थक हार गये, डूबे, मझधार हुआ चाँद..
वादे भी नहीं याद, इरादों में धुंध सी
मतलब के यार मेरे, सरकार हुआ चाँद..
मैं मुझसे मिल के रूठा “सिद्धार्थ” तुम न आये
तुम हो तुम्हें मुबारक, दीवार हुआ चाँद..
Monday, September 20, 2010
इस ठिठुरती ठंड में
मेरा ग़म क्यों नहीं ज़रा जम जाता
पिघल-पिघल कर बार-बार आखों से क्यों है निकल आता ।
घने से इस कोहरे में
हाथों से अपने चेहरे को नहीं हुँ ढुँढ पाता
फिर कैसे उसका चेहरा बार-बार नज़रों के सामने है आ जाता ।
बर्फीली इन रातों में
अलाव में ज़लकर कई लम्हें धुँआ बनकर है उड़ जाते
बस कुछ पुरानी यादें राख बनकर है कालिख छोड़ जाते ।
अब दिन इतने है छोटे की सुबह होते ही शाम चौखट पर नज़र आती है,
शाम से अब डर नहीं लगता
सर्दी तो वही पुरानी सी है
पर पहले बस ठंड थी
अब पुरानी यादें भी दिल को चीर कर जाती है ।
कौन हूँ मैं?
मेरे मन में उठता है
कौन हूँ में?
क्या अस्तित्व है मेरा?
कोई मुझे पहचानता नहीं
क्या हम सभी में समानता नहीं?
सब मौन क्यूँ हैं?
कौन हूँ मैं?
क्या में हवा हूँ?
तो में स्थिर क्यूँ हूँ?
या 'पत्थर' से टकराकर
बेबस हुआ हूँ
में दिखता नहीं हूँ
या अन्देखा किया है
जो तू देखा किया तो
में हवा भी नहीं हूँ
कौन हूँ मैं?
क्या मैं जल हूँ?
आज था, या कल हूँ
वेग प्रबल है
मन विह्वल है
क्या बर्फ से पिघला
ये खारा आँखों का पानी
जहां से है गुज़रा
सब बंज़र हुए
क्यों तुम्हे चोट पहुँची
क्या खंजर हुए?
पानी तेरी आँखों में
मेरी आँखों में
मैं जल भी नहीं हूँ
कौन हूँ मैं?
क्या मैं आग हूँ?
या अपनी ही राख हूँ
क्या तुझको ये आग जलाती है?
या मैं खुद ही इसमें जलता हूँ
सूरज को तरह तपता हूँ
मेरी आग में रौशनी क्यूँ नहीं
क्यूँ तेरे लिए मैं शबनम हुआ
मेरी आग भी मेरी आँखों का पानी
सुखाती नहीं
मैं आग भी नहीं हूँ
कौन हूँ मैं?
क्या मैं मिटटी हूँ?
बंजर या रेतीली
उगी हैं खर पतवार
या फिर झाडें कटीली
बिखरी है कण कण में
ये रेत है या मिटटी
तपती हुई रेत पर
सुलगती है मेरी ज़मीं
कहीं पानी ज्यादा है
और सूखा है कहीं
रेत में उगता है
तिनका महीन
मेरी जिंदगी में तिनका भी नहीं
मिटटी और रेत
कभी एक
नहीं होते
नहीं मैं मिटटी नहीं हूँ
कौन हूँ मैं?
क्या मैं आकाश हूँ?
उचाईयों में अकेला
या नियति का खेला
क्यों उचक कर तुने
ना चाहा छूना मुझे
क्यों तुझमे मुझमे है
अब ये दूरी
मैं कहाँ हूँ तेरे बिन
तू मेरे बिन अधूरी
गर आकाश होता
तो आजाद होता
यादों में तेरी
मैं तो बंधा हूँ
नहीं मैं आकाश नहीं हूँ
कौन हूँ मैं?
न मैं हवा हूँ ना आकाश
ना मिटटी आग पानी
कोई तो बतलाये
क्या है मेरी कहानी
पांच तत्वों से बनता है जीवन
इनसे विरक्त मेरा ये मन
न जीवित न मृत
मैं हूँ जड़ चेतन !!
Saturday, September 18, 2010
झील के किनारे
तन्हा बैठे हुए
यादो में किसी की
खोया हुआ था..
की अचानक एक गुलाब
गिरा पानी पर
कुछ तरंगे बन गयी
हिलते हुए पानी में..
एक तस्वीर नज़र आई थी
सुर्ख़ गुलाबी तेरी ही थी..
अबकी बार कुर्ता गुलाबी था
बिल्कुल तेरे होटो की तरह..
जिन्हे छूने को
मेरे लब बेकरार रहते थे..
उंगलिया मचलने लगी
पानी में उतरने को..
सोचा एक बार तेरे
गालो को छ्हू लिया जाए..
लेकिन इतनी मासूम सी
तुम लगी थी पानी में...
की आँखो ने कसम देकर
रोक लिया मुझे..
धड़कनो ने दी आवाज़
वो मचलने लगी थी..
इतनी सुंदर कैसे हो तुम
तितलिया भी तुमसे जलने लगी थी
शाम हो चली थी
मगर दीवाना सूरज..
पहाड़ी के पीछे से
अब भी झाँक रहा था..
अंगूर की बेल,
किनारे पर थी.
कैसे लटक कर
पानी पर आ गयी थी..
तुम कितनी ख़ूबसूरत हो
मुझे ये एहसास हुआ था..
अचानक किसी के आने का
आभास हुआ था..
रात बेदर्दी जलने लगी
अंधेरे में तुम नज़र ना आई
जुगनुओ ने मगर
मेरा साथ निभाया था..
सुबह हो चुकी है
पंछी चहकने लगे...
डाली पर फिर एक
गुलाब खिल आया है
हवाओ का मन किया है
तुझे देखने को..
फिर से पानी में एक
गुलाब गिराया है....
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Friday, September 17, 2010
फिर एक नयी चिता जला रहा हू
अपनी जली रूह की राख उड़ा कर
रुख हवाओ का दिखा रहा हू
फिर एक नयी चिता जला रहा हू
आज कुछ खुवाब बोए है कागज़ पर
कोशिश है नज्मो को बा - तरतीब करने की
किये जा रहा हू
फिर एक नयी चिता जला रहा हू
कुछ रह गया जो साथ न गया तुम्हारे
दिल की दराजों को फिर से खंगाल कर
आज वोह सामान निकाल रहा हू
फिर एक नयी चिता जला रहा हू
कुछ लम्हे टंगे है मेरे कमरे की दीवार पर
वक़्त की धूल सी जम गई है उन पर
उन्हे उतार रहा हू
फिर एक नयी चिता जला रहा हू
थोड़ी सी खताए रखी है अलमारी के ऊपर
सजाए पता नहीं कब तक आयेगी
एक ज़माने से इंतजार कर रहा हू
फिर एक नयी चिता जला रहा हू
Monday, September 6, 2010
खुलने लगी दुकाने!!!!
लिखने पढने के
अब सारे पैमाने
बारहखड़ी रटे बिन बच्चे
होते आज सयाने !!!
नयी सदी है
नए विषय है
नयी नयी सब बातें
गए वक़्त की
चीजे लगती
खड़िया,कलम,दवाते
सब्द वोही है
पर सब्दो के
बदल गए सब माने!!!
अपने ताई
सीखते है अब
सबक सभी दुनियावी
बच्चो को
मंजूर नहीं वे
कीड़ा बने किताबे ;
स्कूल पर भारी दीखते
कोर्ट काचेहरी थाने!
ताल किनारे
बना मदरसा
उसी ताल में डूबा
रोज कागजी नाक्सो से
टीचेर बेचारा उबा
बांस बेहया के झुरमुट
अब दिन में लगे डराने !
आने वाले कल की
दिखती
धुंधली बहुत ईमारत
बिना नीव के
खड़ी हो रही
इतनी बड़ी ईमारत
जब से गली गली
खुलने लगी दुकाने!!!!
मेरा बचपन
हाथ आकर लगा गया कोई
मेरा छप्पर उठा गया कोई....
लग गया एक मशीन में मैं भी
शहर में लेकर आगया कोई
मैं खड़ा था की पीठ पर मेरी
इतिहार इक लगा गया कोई
ये सदी धुप को तरसती है
जैसे सूरज को खा गया कोई
ऐसी महंगाई है की चेहरा भी
बेच कर अपना खा गया कोई
अब वो अरमान है ना वो सपने
सब कबूतर उड़ा गया कोई
मेरा बचपन भी साथ ले आया
गाव से जब भी आ गया कोई.........
Sunday, September 5, 2010
जामुन का पेड़
जामुन का जो पौधा
लगाया था पिता ने
अब वो मुकामल पेड़ बन गया है
घना,छायादार,फलदार
बिलकुल पिता की तरह
जेठ का फनफनाता सूरज
जब फटकारता है कोड़े
जामुन का पेड़ की नंगी पीठ पर
तब खमोशी से सहता है ये कठोर यातना
ताकि उपलब्ध हो सके हमें
चाव का एक अदद टुकड़ा पिता भी जामुन की पेड़ की तरह है
जब भी घिरे हम
उलझन के चक्र में
या डूबने वाले थे दुखो के बाढ़ में
पिता ढाल बन कर खड़े हो गए
हमारे और संकट के बीच
जामुन का ये छोटा सा पेड़
हमारी छोटी बड़ी कामयाबी पर
ख़ुशी से झूमता है ऐसे
की थर्थारने लगती है खिड़कियाँ घरो की
लेकिन ऐसे अवसर पर
दिखाई देती है पिता के चेहरे पर
गर्व की पतली सी लकीर बस........
हमारी खातिर
अपना सब कुछ नौचावार करने को
आतुर रहता है ये जामुन का पेड़......
जैसे पिता हो हमारा.....
पहेली बनी हुयी है
हमारे लिए ये बात
की पिता जामुन के पेड़ की तरह है
या जामुन का पेड़ पिता की तरह!!!!
शिक्षक
जो मानव मन में ज्ञान का दीपक जलाता है,
अज्ञान का तम मन मंदिर से दूर भगाता है!
मानव रचना का शिल्पी कहलाता है,यही मनुज रूपी देवता शिक्षक कहलाता है!
रण के बीच में जब अर्जुन दुर्बल पड़े
,यह सोच बैठे सामने मेरी स्वजन खड़े!
तब श्री कृष्ण ने गुर का आसन लिया,
बीच रण के ही अर्जुन को गीता का ज्ञान दिया!
ज्यूँ ही श्री कृष्ण ने गीता का ज्ञान था बांटा,
उखाड़ फैंका अर्जुन के मन में फंसा हुआ मोह का काँटा!
जो भूले हुए को उसका कर्त्तव्य याद दिलाता है,
यही मनुज रूपी देवता शिक्षक कहलाता है!
जब मेंढ़ टूटी खेत की गुरु ने आरुणि को,
कैसे भी हो शिष्य रोकना है इस खेत से छूटते पानी को!
न होगा जो पानी तो फ़सल बर्बाद होगी,
इस विद्यालय के शिष्यों की कैसे फिर क्षुधा शांत होगी?
आरुणि चल दिए और आये न कई घंटों बाद भी,
चिंता हुई गुरु को आया चेहरे पर विषाद भी!
जाकर देखा तो पानी है रुका हुआ,
शिष्य उनका है टूटी मेंध की जगह लेटा हुआ!
और जाकर उन्होंने उसको उठा लिया,
अपने इस शिष्य को सीने लगा लिया!
वो जो गिरते हो को भी सीने लगाता है,
यही मनुज रूपी देवता शिक्षक कहलाता है!
और क्या कहूं में शिक्षक की महत्ता के बारे में,
वो ही होता है किरण अज्ञान के अंधियारे में!
आपको निस्वार्थ भाव से ज्ञान वो देता है,
उत्थान हो आपका यही ख्वाइश वो रखता है!
देख आपकी प्रगति को जो मन ही मन हर्षाता है,
यही मनुज रूपी देवता शिक्षक कहलाता है!
शिक्षक दिवस की हार्दिक शुभकामनाये!!!!!
Thursday, September 2, 2010
आप मुझे अच्छी लगती हो ............
आप मुझे अच्छी लगती हो
कुछ चंचल सी,कुछ चुप सी
थोड़ी पागल लगती हो
आप मुझे अच्छी लगती हो
...
है चाहने वाले बहुत
पर आप मै बात है कुछ अलग
आप अपनी सी लगती हो
वो कहते कहते रुक जाना
बैठे बैठे कही खो जाना
कुछ उलझन मे रहती हो ............
आप मुझे अच्छी लगती हो ............
आप मुझे अच्छी लगती हो ............
आप मुझे अच्छी लगती हो
कुछ चंचल सी,कुछ चुप सी
थोड़ी पागल लगती हो
आप मुझे अच्छी लगती हो
...
है चाहने वाले बहुत
पर आप मै बात है कुछ अलग
आप अपनी सी लगती हो
वो कहते कहते रुक जाना
बैठे बैठे कही खो जाना
कुछ उलझन मे रहती हो ............
आप मुझे अच्छी लगती हो ............
Monday, August 30, 2010
प्रभु मुझे क्यूँ छोड़ा अकेला????
उसने देखा की वो सागर तट पर प्रभु के साथ चल रहा है
गगन में चमक उठे उसके जीवन प्रसंग
और हर प्रसंग में उसने देखे
रेट पर पदचिन्ह के दो युगल
एक उसका अपना और दूसरा था प्रभु सवर्सक्तिमान का!
जब उसकी आँखों के सामने से अंतिम दृश्य गुजरा
तो उसने पाया अनेक बार के प्रसंगों में रेत पर अंकित है
केवल एक जोड़ी पदचिन्ह ,
और यही वो प्रसंग थे जब उसके जीवन में सबसे जयादा उद्दासी थी
सबसे ज्यादा था दुःख!!!!
उसने प्रभु से पूछा,प्रभू
तुमे तो सदा मेरे साथ चलने का वादा किया था
फिर संकट के हर समय रेत पर पदचिन्ह का एक जोड़ा क्यूँ है?
जब मुझको तुम्हारी सबसे जयादा जरुरत थी
तब ही तुमने छोड़ दिया मुझे अकेला???
प्रभू ने उतर दिया,मेरे प्यारे -प्यारे बेटे
मैं तो तुम्हे इतना प्यार करता हु
कभी भी चोदुंगा नहीं अकेला !
जब तुम कस्ट और संकट के समय में थे,
तब रेत पर पर पदचिन्ह का
का एक ही जोड़ा इसलिए अंकित हुआ
क्यूंकि मैं तुमको गोद में उठाये हुए था!!!!!!!!!
Saturday, August 28, 2010
पहला प्यार रेलगाड़ी में
पहली पहली बार, किया इन्तजार, रेलगाड़ी में
वो आये नज़रे मिलाये, लड़खडाए और शर्माए
उनकी इसी अदा पर, मिटा मैं यार, रेलगाड़ी में
भीड़ में एक मुझको, मुस्कुराकर जब देखा
मिला दिल को तब, बहुत करार, रेलगाड़ी में
उनका छूना, टकराना, सिमटना और मचलना
इस खेल ने कर दिया, बेकरार, रेलगाड़ी में
काटी किसी और ने चिकोटी, मिली सजा मुझे
बिना कुछ किये ही, बना गुनहगार, रेलगाड़ी में
ये खेल मोहब्बत के यूँ ही संग संग चलते रहे
यूँ ही ख़त्म हुआ, सफ़र खुशगवार, रेलगाड़ी में
Friday, August 27, 2010
अब मैं सूरज को डूबने नहीं दूंगा
अब मैं सूरज को डूबने नहीं दूंगा
देखो,मैंने कंधे चौड़े कर लिए है !!
मुठिया मजबूत कर ली है!
और ढलान पर एड़ियाँ जमाकर
खड़े होना मैंने सीख लिया है !
घबराओ मत मैं छीतिज पर जा रहा हु!
सूरज ठीक जब पहाड़ी से लुदकने लगेगा !
मैं कंधे अड़ा दूंगा ! देखना वो वोही ठहरा होगा!
अब मैं सूरज को डूबने नहीं दूंगा!!!
मैंने सुना है उसके रथ में तुम हो
तुम्हे में उतार लाना चाहता हू
तुम जो स्वाधीनता की प्रतिमा हो
तुम जो साहस की मूर्ति हो
तुम जो धरती का सुख हो
तुम जो कालातीत प्यार हो
तुम जो मेरी धमनियों का प्रवाह हो
तुम जो मेरी चेतना का विस्तार हो
तुम्हे में उस रथ पर उतार लाना चाहता हू !!!
रथ के घोड़े,आग उगलते रहे
अब पहिये तस से मस नहीं होंगे !
मैंने अपने कंधे चौड़े कर लिए है !
कौन रोकेगा तुम्हे? मैंने धरती बड़ी कर ली है
अन्न की सुनहरी बालियों से मैं तुम्हे सजाऊंगा
मैंने सीना खोल लिया है
प्यार के गीतों में मैं तुमको गाऊंगा
मैंने दृष्टी बड़ी कर ली है
हर आँखों में तुम्हे सपनो सा लाऊंगा!
सूरज जायेगा भी तो कहा ?
उसे यही रहना होगा यही
हमारी सांसो में हमारे रगों में
हमारे संकल्प में
तुम उदास मत होवो
अब मैं किसी भी सूरज को डूबने नहीं दूंगा !!!!!!!