Saturday, April 13, 2013

वो रोज पाँच रुपया के चार गोलगप्पे खिलाता था  
आज उसने पाँच रुपया के तीन दिए 
मैंने पूछा दाम क्यूँ ज्यादा   कर दिए 
वो बोला"सर,पेट्रोल के इंटरनेशनल कीमतों और 
रुपया-डालर के मूल्यों के आधार पर 
मैं गोल गप्पे के दाम तय करता हु
पानी फ्री है 
क्यूंकि पास की नदी से भरता हू
आपको कोई आपति है 
तो कही और जा कर खाइए 
ज्यादा  बहस करनी हो तो संसद में जाइये 
वह बहस में ऐसे ही मुद्दे आते है 
गोल गोल पेट वाले 
गप्पे लगा कर 
कैंटीन में सस्ते 
गोल गप्पे खाते  है 
मैं बोला,सब ठीक है भैया 
पर पेट्रोल की कीमतों का 
गोल गप्पे से क्या है नाता ? 
क्या तू,गोल गप्पो के साथ पेट्रोल है पिलाता 
वो बोला,
गोल गप्पे बेचने पेट्रोल की कार से आता हू 
वो देखो सामने खड़ी  है 
कितनी बड़ी है ?
गोल गप्पो से भरी पड़ी है 
मेरी पास ऐसी चार गाड़ियाँ है 
पत्नी के पास हजार साड़ियाँ है 
बेटा कंपनी में सी इ ओ है 
बहू बैंक में पीओ है 
फिर भी,सड़क पर खड़े हो कर  
मैं गोल गप्पे बेचता हू
क्यूंकि,मैं आदमी सड़क का हू
आदमी सड़क का हू!!!!! 
          siddharth सिन्हा,रांची 31 /10 /2012 

Tuesday, January 8, 2013

इक स्वप्न का सफ़र

इक स्वप्न का सफ़र        हम तय कर ही आये  अतियथार्थ की वादी में आओ,हम दोनों मुड़ आये अब इस घर की हवा और है                  आओ हम दोनों मिलकर                    नए सिरे से                    इस घर को एक बार सजाएँ पुतवा दे कालिख घर की दीवारों पर एक सुलगती सिगरेट मैटेलपिस पर  रख कर और उसके ऊपर "ऐश -ट्रे "को  रख दे और जलाये  मोमबत्तियां --                       छ त के नीचे को लटकाए बीचोबीच फर्श पर  अपने   गंदे कपडे  भींगे सूखने डाले   जिस शीशे का  मर  उस्सी को कमरे में लटकाए  अपने  चेहरे निखरे - परखे  फिर  हम एक दूजे को        हसे  और शरमाये !!!!!

Friday, December 7, 2012

छत पर खड़ी हुयी लडकियाँ

छत पर खड़ी हुयी लडकियाँ 
 इंतजार करती है मौसम के बदलने का 
ताकि  वक़्त  के  चेहरे पर मल सके गुलाल 
और अपने लिए सिलवा सकें 
छिट का नया ब्लाउज !

छत्त पर खड़ी हुयी लडकियाँ 
सपने बुनती है अपना घोंसला 
अंडे सेने के लिये !!

छत पर खड़ी हुयी लडकियाँ 
अपनी आँखों  भर लेना चाहती  है 
अनंत आकाश 
और  रखना चाहती है 
अपनी सांस में धरती की सोंधी गंध !

छत पर खड़ी हुयी लडकियाँ 
दूर तक देखती है 
कतार में उड़कर जाते  हुए  बगुले  को 
और सोचती है -कैसा  लगता होगा 
जब नील समुन्द्र में पडती  होगी 
  डूबते  सूरज की लाल  परछाई !!

 सुबह से  पहने 
धुवे के लिबास को 
 साँझ अलगनी पर  टांग कर 
   खुली हवा में बतियाती हुयी 
अच्छी लगती है 
छत पर खड़ी हुयी लडकियाँ !!!!

Monday, November 19, 2012

सपने में आना तुम !!!!

बरसे जब 

रात भर 


सपनो में आना तुम !

रह-रह यादों की 



झील जब उमड़ 



पलकों पर लाज का 





पहरा जब पड़ जाए 



चुपके से 



दबे पाँव गुमसुम 



सपनो में आना तुम!






नेह के उपवन में 



महके जब पारिजात 



शरमा के पूनम का 



चाँद जब तमाम रात 



बदलो की ओट में हो जाए गुम 



सपनो में आना तुम!






चांदनी सिमट जाए 



शबनम की बाहों में 



भोर जब बिछा जाए 



बीथियों में,राहो में 




रश्मियों के 



लल्चोह्ये बिदुम 



सपने में आना तुम !!!!

Sunday, November 18, 2012

सपने सच नहीं होते !!!!

पिता की  कमर 
नहीं थी झुकी 
और उनके चौड़े  कन्धे पर 
खेल रहा था मैं 
गिलहरी की तरह 

मैं जा रहा था स्कूल 
पीठ पर लादे  बक्सा 
और खेल रही थी  बहिन 
मैदान में निर्भय ......
खोदी जा रही थी नीव 
 खूब गहरी ....
 एक  मकान के लिए 
ज्योंकि पिता का सपना था 
पिता के पिता का भी 
और
मजदूर  तैयार कर रहे थे गारा 
माँ पका रही थी 
धीमी आंच पर सोंधी रोटी 
उनके लिए .......
माँ खुश थी 
पिता से अधिक 
पिता खुश थे 
माँ से अधिक 
अचानक झटके से टूटी  नींद 
मैं देख रहा था सपना 
सपने में खुश थी माँ ,पिता और मैं भी 
भयभीत  हू  मैं 
सुना है ------
पिता की  कमर 
नहीं थी झुकी 
और उनके चौड़े  कन्धे पर 
खेल रहा था मैं 
गिलहरी की तरह 

मैं जा रहा था स्कूल 
पीठ पर लादे  बक्सा 
और खेल रही थी  बहिन 
मैदान में निर्भय ......
खोदी जा रही थी नीव 
 खूब गहरी ....
 एक  मकान के लिए 
ज्योंकि पिता का सपना था 
पिता के पिता का भी 
और
मजदूर  तैयार कर रहे थे गारा 
माँ पका रही थी 
धीमी आंच पर सोंधी रोटी 
उनके लिए .......
माँ खुश थी 
पिता से अधिक 
पिता खुश थे 
माँ से अधिक 
अचानक झटके से टूटी  नींद 
मैं देख रहा था सपना 
सपने में खुश थी माँ ,पिता और मैं भी 
भयभीत  हू  मैं 
सुना है ------
सपने सच नहीं होते !!!!
     सिद्धार्थ सिन्हा ,राँची 

Wednesday, October 31, 2012

आदमी सड़क का

वो रोज पाँच रुपया के चार गोलगप्पे खिलाता था  
आज उसने पाँच रुपया के तीन दिए 
मैंने पूछा दाम क्यूँ ज्यादा   कर दिए 
वो बोला"सर,पेट्रोल के इंटरनेशनल कीमतों और 
रुपया-डालर के मूल्यों के आधार पर 
मैं गोल गप्पे के दाम तय करता हु
पानी फ्री है 
क्यूंकि पास की नदी से भरता हू
आपको कोई आपति है 
तो कही और जा कर खाइए 
ज्यादा  बहस करनी हो तो संसद में जाइये 
वह बहस में ऐसे ही मुद्दे आते है 
गोल गोल पेट वाले 
गप्पे लगा कर 
कैंटीन में सस्ते 
गोल गप्पे खाते  है 
मैं बोला,सब ठीक है भैया 
पर पेट्रोल की कीमतों का 
गोल गप्पे से क्या है नाता ? 
क्या तू,गोल गप्पो के साथ पेट्रोल है पिलाता 
वो बोला,
गोल गप्पे बेचने पेट्रोल की कार से आता हू 
वो देखो सामने खड़ी  है 
कितनी बड़ी है ?
गोल गप्पो से भरी पड़ी है 
मेरी पास ऐसी चार गाड़ियाँ है 
पत्नी के पास हजार साड़ियाँ है 
बेटा कंपनी में सी इ ओ है 
बहू बैंक में पीओ है 
फिर भी,सड़क पर खड़े हो कर  
मैं गोल गप्पे बेचता हू
क्यूंकि,मैं आदमी सड़क का हू
आदमी सड़क का हू!!!!! 

Saturday, October 13, 2012

रिश्ते छायावादी


दोस्तों बहुत  दिनों  के बाद  फिर  से एक कविता लिखी है आपके असीरवाद के लिए पेश कर रहा हु:) 


धुप चढ़ी तो उतर गयी
क्या रेशम क्या कड़ी 
बरगद  के  नीचे सारे 
रिश्ते   छायावादी 

गाज गिरी छप्पर पर 
टूटे पुस्तैनी ताले 
आपस में समधी है 
पाँव सभी छाले वाले 

अंधकार में एक जात है 
पूरी आबादी 

सबको सुर में बांध रहा है 
संकट हीरामन
घूम रहा कुंडली मिलाता 
दुःख नाई बाह्मण


लाचारी की बलिहारी है 
जोड़ी जुड़वाँ दी 

मन मिलाकर मीनार हुए थे 
फाकामस्ती  में 
चार टका   आते ही पड़ी 
दरार गिरिस्थी  में 

भोज हुआ तो छुट गयी 
पूजा परसादी