Sunday, February 26, 2012

ढाई आखर फागुन में

लगी तुम्हारी  याद सताने फागुन में
बांस लगे बासुरी बजाने फागुन में

नाच उठी छवि आँखों में
सिवानो की
सुधिया हुयी सयानी 
घर खलिहानों की

साँझ लगी घूँघट सरकाने फागुन में

अलसाई -सी दिखे
नदी अब रेतो में
बजे रात भर हसिया कंगन
खेतो में
लगी चांदनी नेह चुराने फागुन में

दवरी करके अन्न ओसाना 
गोरी का
आँचल में आँखे उलझाना
गोरी का

ढाई आखर लगी लुटाने फागुन में !!!

Friday, February 24, 2012

ढाबे में लड़का


ढाबे में लड़का            

मेज बजाकर 

मैंने पानी के लिए पुकारा 

ढाबे के एक कोने से दुसरे कोने तक 

दौढ़ते थके-थके से उदास लडको में से एक ने    

पानी भरा गिलास मेज पर पटका  

मेरा धयान गिलास थामे उसकी अँगुलियों पर गया 

इन नन्ही अंगुलियाँ में तो एक रंगीन पेंसिल होनी चहिये 

और फिर बहुत सारे बच्चे हुडदंग मचाते 

पृथ्वी के नक़्शे में रंग भरते मुझे दिखे 

और बेहताशा मुझे अपना बेटा याद आगया 

रुलाई की हद्द तक !



फिर मुझे रुका ना गया वह 

पीछे से कोई चिलाया 

"साला !कर दिया ना ग्राहक ख़राब!

लड़के पर हाथ उठाता मालिक चीख रहा था 

मैं शर्मिंदा था 

मेरी भावना उस  बच्चे के लिए महँगी पड़ी!   


Sunday, February 19, 2012

महफूज

वो जरा सी बात पर पे बरसो के याराने गए !
लेकिन इतना तो हुआ कुछ लोग पहचाने गए!!

मैं इसे शोहरत कहू या अपनी रुसवाई कहू !
मुझसे पहले उस गली में मेरे अफसाने गए !!

वहशते कुछ इस कदर अपना मुकदर हो गयी !
हम जहा पहुंचे हमारे साथ वीराने गए !!

यूँ तो वो मेरी रगे-ए-जा से भी थे नजदीक तर !
आंसुओं की धुंध में लेकिन न पहचाने गए  !!

अब भी उन यादों की खुशबू जेहन में महफूज है !
बारह हम जिनसे गुलजारों को महकाने गए !!

Wednesday, February 15, 2012

प्रेम पत्र

प्रेम पत्रों में रौशनी होती है
और एक गहन अँधेरा भी
चमकती हुयी पीड़ा होती है
तो पपड़ाये होठो पर राखी
मुस्कान भी.......




अठखेलियों होती है कही
तो उबशियाँ लेती है गहन उदासी भी
सहराओ में साहिलों की तलाश
होती है प्रेम पत्र में......




और चाँद तारो को ठुकरा देने की
चाह भी कम नहीं होती.........

पडोसी की बातें खूब विस्तार से
सहेली के प्रेम का जुगराफिया
और उसका विश्लेषण पूरा
हां!बस अपना ही किस्सा अधुरा....





लिखी होती है देर रात बिल्लियों की
रोती हुयी
आवाजो में लिपटी दुखद
आगत की आशंका
साथ ही देश के हालत की चिंता भी

नयी दुनिया बनाने का सपना होता है

तो खवाब

किसी की दुनिया बन जाने का भी



वो जो खबर थी ना अखबार में
प्रेमियों की हत्या वाली

उससे दहल भी गया है प्रेम पत्र
ताकीद है पढ़ कर फाड़ देने की

वादा एक-दुसरे का नाम भी ना लेने का
हिदायत अपना ख्याल रखने की

और भूल जाने की उन आखों को
जिन्हें देखे एक जमाना हुआ.....





दूर देश के मौसम को टटोलते हुए
खीच कर उसे ओढ़ लेने की हसरत
नहीं लिखी है प्रेम पत्र में
बचपन के किस्सों में ना जाने कब

जुड़ गया था तुम्हारा भी हिस्सा
रह गया था यह जिक्र आते -आते




आँखों में ना जाने क्यूँ
सीलन सी रहती है इन दिनों

बड़े दिन हुए मन की मरमत कराये
लिखते लिखते रुक गए थे हाथ




कापते हाथों नें बस
इतना लिखा था
वो लगाया था ना जो पौधा
पिछले महीने
तुम्हे लिखा था,जिसके बारे में
आज फूल आया है उसमें



लिखा है प्रेम पत्र में की
इनदिनों कलेजा छलनी नहीं होता
किसी तलवार से ना जाने कैसे छुट गया
लिखना की
मेरे दुःख को मत छुना
वरना कट जायेगा तुम्हारा हाथ

प्रेम पत्र में लिखा होता है सब कुछ
बस नहीं लिखा होता है प्रेम
क्यूंकि प्रेम लिखने से पहले
एक मौन नदी गुजरती है
और बहा ले जाती है समूचा पत्र
लौट आते है प्रेमी अपनी ही दुनिया से
जुट जाते है कोशिश में
खुद के खांचे में फिट होने की.....
अधूरे ही रह जाते है प्रेम पत्र अक्सर

जैसे अधूरी रह जाती है प्रेम की दास्तानें...

Monday, February 6, 2012

मौसम की ख़ामोशी

समंदर से उठे है या नहीं बादल ये रब जाने !
नजूमी बाढ़ का मंजर लगे खेतों को दिखलाने !!

नमक से अब भी सूखी रोटियां मजदूर खाते है !
भले "सिद्धार्थ"ने लिखे हो इनके अफ़साने !!

रईसी देखनी है मुल्क की तो क्यूँ भटकते हो!
सियासत्दा का घर देखो या फिर मंदिर के तहखाने  !!

मुसाफिर छोड़ दो  चलना ये रास्ते है तबाही के !
यहाँ हर मोड़ पर मिलते है साकी और मयखाने !!

चलो जंगल से पूछे या फिर पढ़े मौसम की ख़ामोशी !
परिंदे उड़ तो सकते है मगर गाते नहीं गाने !!

ये वो बस्ती है जिसमें सूर्य की किरण नहीं पहुंची !
करोगे जानकर भी क्या ये सूरज-चाँद के माने !!

सफ़र में साथ चलकर हो गए हम और भी तन्हा !
ना उनको हम कभी जाने ना वो हमको ही पहचाने!!

Friday, February 3, 2012

परित्यक्ता (लघुकथा )



बूढी  औरत ने दोनों हाथ फैला दिए,
"बेटा कुछ दे दो!"
एक यात्री ने पूछा ,"बुढिया तेरे कितने बेटे है?"
बूढी औरत नें अपनी छाती फुला कर कहा
 "मेरे चार बेटे है!"
"तब तो तू आठ हाथोवाली बेटो की माँ है",यात्री ने
हिसाब लगाते हुए कहा!
बूढी औरत के फैले हुए हाथ जरा नीचे झुक गए !
उसने कहा ,"हां रे,एकदम!"
यात्री ने जानना चाहा ,"वे सभी मिलकर खूब कमाते भी होंगे!"
एस बार बूढी औरत की नजर भी झुक गयी !
फिर आवाज में तल्खी भरते हुए बोली,"हां,हां,वे खूब पैसा बनाते है!"
"वे तुझे साथ भी रखते होंगे और शायद
तुझे पलकों पर बैठा कर रखते भी"......यात्री बोलते बोलते चुप हो गया था !!!!

कबाड़ बीननेवाली

देखा मैंने एक कबाड़ बीननेवाली को
दिसम्बर की शीत-दोपहरी में
एक रिक्शे पर एक मासूम बच्चे के साथ
अधलेटी पट्टी पर पर रिक्शे की
और कबाड़ की बड़ी गठरी सीट पर
भावहीन दो आँखें घूरती दाये-बाये 
किया अनुभव मैंने जिन्दगी ऐसी भी होती है
हर सुबह संगर्ष 
हर रात एक अनबुझ पहेली होती है
जीना सिखाती है ऐसी माँ बच्चे को बिना सहारे
यहाँ जरुरी होता है दो वक़्त का खाना
सपनो की यहाँ जरुरत नहीं
सपने तो आते ही नहीं
नींद आती है थकान के लिए!!!!