खंडहर बचे हुए है, इमारत नहीं रही !
अच्छा हुआ की सर पर कोई छत नहीं रही!!
कैसी मशाले लेकर चले तीरगी में आप !
जो रौशनी थी वो भी सलामत नहीं रही !!
हमने तमाम उम्र अकेले सफ़र किया !
हम पर किसी खुदा की इनायत नहीं रही!!
मेरे चमन में कोई नशेमन नहीं रहा !
या यूँ कहो की बर्क(बिजली) की दहशत नहीं रही !!
हिम्मत से सच कहो तो बुरा मानते है लोग !
रो रो कर बात कहने की आदत नहीं रही !!
सीने में जिन्दगी के अलामत(चिन्ह्ह) है अभी !
गो जिन्दगी की कोई जरुरत नहीं रही !!
है तुम्हारे मन मे जो आशा, समझता हूँ
मै तुम्हारे प्रेम की भाषा समझता हूँ
चाहती हो तुम, चलें नदिया किनारे हम
हाथ रखकर हाथ मे बातें करें मन की
चाहती हो तुम कि बैठें वृक्ष – छाँवों में
हम गढें नूतन कहानी दिल के सावन की
मै मिलन की घोर अभिलाषा समझता हूँ
मै तुम्हारे प्रेम की भाषा समझता हूँ
तुम बिताना चाहती हर पल, मिरे अन्दर
क्योकि मुझको अपने अन्दर रख चुकी हो तुम
पाके मुझसे बून्द भर की एक आशा में
दिल मे इक गहरा समन्दर रख चुकी हो तुम
क्यो है इक निस्वार्थ मन प्यासा, समझता हूँ
मै तुम्हारे प्रेम की भाषा समझता हूँ
चाहती हो तुम कि हम दोनो की नज़रों में
सिर्फ हम दोनों की सूरत ही नज़र आये
चाहती हो तुम कि जब दर्पण तुम्हे देखे
हर अदा मेरे लिये सिंगार कर आये
प्यार की गहरी है जिज्ञासा, समझता हूँ
मै तुम्हारे प्रेम की भाषा समझता हूँ
है तुम्हारा मन भी मिलने के लिये ब्याकुल
हाँ, मगर लज़्ज़ा के कारण कह नही पाती
तुम मुझे ही देखने छ्त पर टहलती हो
बिन मुझे देखे तुम्हें भी नींद कब आती
कौन है कितना यहाँ प्यासा, समझता हूँ
मै तुम्हारे प्रेम की भाषा समझता हूँ
एक नए शहर मेंजिसे अभी आपकी जान पहचान भी ठीक से ना हुयी हो मर जाने का ख्याल बहुत अजीब लगता है शायद ए ,बी रोड पर किसी गाडी के नीचे आकर फिर अपने कमरे में ही करेंट से
ऐसा भी हो सकता है की बीमारी से लड़ता हुआ चल बसे कोइ
हो सकता है संयोग ऐसा हो अगले कुछ दिन
तक
कोई संपर्क भी ना करे
माँ के मोबाइल में बैलेंस ना हो और वो करती रहेफ़ोन का इन्तजार दूर देश में बैठी आपकी प्रेमिका /पत्नी मसरूफ हो किसी जरुरी
काम में या फिर वो फ़ोन करे और उसका जवाबही ना मिले दफ्तर में अचानक लोगो को ख्याल आएगा की उनके बीच एक आदमी कम है ऐसा भी हो सकता है की लोग आपको ढूँढना चाहें
लेकिन उनके पास आपका पता ही ना हो........
कहा तक जफा हुस्नवालो की सहते !
जवानी जो रहती तो फिर हम ना रहते !!
वफ़ा भी ना होती तो अच्छा था वादा!
घडी दो घडी तो कभी शाद रहते !!
नशेमन ना जलता निशानी तो रहती!
हमारा था क्या ठीक रहते ना रहते !!
बताते है आंसू की अब दिल नहीं है !
जो पानी ना होता तो दरिया ना बहते !!
जमाना बड़े शौक से सुन रहा था !
हमी सो गए दास्ताँ कहते कहते !!
कोई नक्श और कोई दीवार समझा !
जमाना हुआ मुझको चुप रहते रहते !!
मेरी नाव इस गम के दरिया में "सिद्धार्थ"!
किनारे पर आ लगी बहते बहते!!
मेरे शहर की हवा अच्छी है !
हर मर्ज की दवाए अच्छी है !!
सबके बच्चे लौटते है महफूज घर !
तमाम माओं की दुवाए अच्छी है !!
दिल की गिरह रखते है खोलकर,!
हर शख्स की अदाए अच्छी है !!
बड़े सुकून से गुजरता है वक़्त !
हमारी जुबा की सदाए अच्छी है !!
सांस लेते है सब एक माहोल में !
मेरे आँगन की फिजाये अच्छी है !!
खौफ नहीं मुझे खुदा की फजल से!
मेरे सफ़र की राहें अच्छी है!!!