Saturday, March 5, 2011

हम ना रहते !!


कहा तक जफा हुस्नवालो की सहते !

जवानी जो रहती तो फिर हम ना रहते !!

वफ़ा भी ना होती तो अच्छा था वादा!

घडी दो घडी तो कभी शाद रहते !!

नशेमन ना जलता निशानी तो रहती!

हमारा था क्या ठीक रहते ना रहते !!

बताते है आंसू की अब दिल नहीं है !

जो पानी ना होता तो दरिया ना बहते !!

जमाना बड़े शौक से सुन रहा था !


हमी सो गए दास्ताँ कहते कहते !!

कोई नक्श और कोई दीवार समझा !

जमाना हुआ मुझको चुप रहते रहते !!

मेरी नाव इस गम के दरिया में "सिद्धार्थ"!

किनारे पर आ लगी बहते बहते!!

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