अब अपनी रूह के छालो का कुछ "हिसाब" करू !
 मैं चाहता था चरागों को आफताब करू !!
बुतों से मुझको इजाजत अगर कभी मिल जाये !
तो शहर भर के खुदाओ को बेनकाब करू !!
मैं करवटों के नए जाएके लिखू शब् भर !
ये इश्क है तो कहा जिन्दगी अजाब करू !!
 है मेरे चारो तरफ भीड़ गुंगो बहरो की !
किसे खातिब बनाऊँ किसे ख़िताब करू !!
 उस आदमी को बस एक धुन सवार रहती  है !
 बहुत हासिल है ये दुनिया इससे ख़राब करू !!
ये जिन्दगी जो मुझे कर्ज़दार करती रही !
कही अकेले में मिल जाये तो हिसाब करू!!!!!
 
हर शब्द में गहराई, बहुत ही बेहतरीन प्रस्तुति ।
ReplyDeleteबहुत बढ़िया सर।
ReplyDeletevery nice....
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