एक दिन मैंने देखा
की ट्रेन में झाड़ू देने वाला बच्चा बेहद खुश था
फर्श बुहार रहा था
और तन्मयता से एक गीत भी गा रहा था
मुझे उसपर बहुत प्यार आया
जब पूरी सफाई कर
हाथ पसारे मेरे पास आया
मैंने एक सिक्का देते हुए नाम पूछा
उसने कहा 'नहीं मालूम'
मैंने उसके घर के बारे में पूछा
उसने कहा 'नहीं मालूम'
मैंने उसके पिता का नाम पूछा
उसने कहा 'नहीं मालूम'
मैं पा गया उसके खुश रहने का कारण
मुझे सब कुछ मालूम था
मुझे हो आया अपना दुःख स्मरण!
उपाधियों में छिपा हमारा भविष्य।
ReplyDeleteना मालूम मे ही सारा सुख समाहित है।
ReplyDeleteman ko chu lene vali baat hai . na jaanane ka sukh .................
ReplyDeleteकभी कभी कितना बौना हो जाता है इंसान ऐसी मस्ती देख कर अपने दुःख का एहसास होता है ...
ReplyDeleteमार्मिक सत्य की अनुभूति कविता की विशेषता है!
ReplyDeleteसुन्दर!