Wednesday, October 31, 2012

आदमी सड़क का

वो रोज पाँच रुपया के चार गोलगप्पे खिलाता था  
आज उसने पाँच रुपया के तीन दिए 
मैंने पूछा दाम क्यूँ ज्यादा   कर दिए 
वो बोला"सर,पेट्रोल के इंटरनेशनल कीमतों और 
रुपया-डालर के मूल्यों के आधार पर 
मैं गोल गप्पे के दाम तय करता हु
पानी फ्री है 
क्यूंकि पास की नदी से भरता हू
आपको कोई आपति है 
तो कही और जा कर खाइए 
ज्यादा  बहस करनी हो तो संसद में जाइये 
वह बहस में ऐसे ही मुद्दे आते है 
गोल गोल पेट वाले 
गप्पे लगा कर 
कैंटीन में सस्ते 
गोल गप्पे खाते  है 
मैं बोला,सब ठीक है भैया 
पर पेट्रोल की कीमतों का 
गोल गप्पे से क्या है नाता ? 
क्या तू,गोल गप्पो के साथ पेट्रोल है पिलाता 
वो बोला,
गोल गप्पे बेचने पेट्रोल की कार से आता हू 
वो देखो सामने खड़ी  है 
कितनी बड़ी है ?
गोल गप्पो से भरी पड़ी है 
मेरी पास ऐसी चार गाड़ियाँ है 
पत्नी के पास हजार साड़ियाँ है 
बेटा कंपनी में सी इ ओ है 
बहू बैंक में पीओ है 
फिर भी,सड़क पर खड़े हो कर  
मैं गोल गप्पे बेचता हू
क्यूंकि,मैं आदमी सड़क का हू
आदमी सड़क का हू!!!!! 

Saturday, October 13, 2012

रिश्ते छायावादी


दोस्तों बहुत  दिनों  के बाद  फिर  से एक कविता लिखी है आपके असीरवाद के लिए पेश कर रहा हु:) 


धुप चढ़ी तो उतर गयी
क्या रेशम क्या कड़ी 
बरगद  के  नीचे सारे 
रिश्ते   छायावादी 

गाज गिरी छप्पर पर 
टूटे पुस्तैनी ताले 
आपस में समधी है 
पाँव सभी छाले वाले 

अंधकार में एक जात है 
पूरी आबादी 

सबको सुर में बांध रहा है 
संकट हीरामन
घूम रहा कुंडली मिलाता 
दुःख नाई बाह्मण


लाचारी की बलिहारी है 
जोड़ी जुड़वाँ दी 

मन मिलाकर मीनार हुए थे 
फाकामस्ती  में 
चार टका   आते ही पड़ी 
दरार गिरिस्थी  में 

भोज हुआ तो छुट गयी 
पूजा परसादी