Saturday, October 13, 2012

रिश्ते छायावादी


दोस्तों बहुत  दिनों  के बाद  फिर  से एक कविता लिखी है आपके असीरवाद के लिए पेश कर रहा हु:) 


धुप चढ़ी तो उतर गयी
क्या रेशम क्या कड़ी 
बरगद  के  नीचे सारे 
रिश्ते   छायावादी 

गाज गिरी छप्पर पर 
टूटे पुस्तैनी ताले 
आपस में समधी है 
पाँव सभी छाले वाले 

अंधकार में एक जात है 
पूरी आबादी 

सबको सुर में बांध रहा है 
संकट हीरामन
घूम रहा कुंडली मिलाता 
दुःख नाई बाह्मण


लाचारी की बलिहारी है 
जोड़ी जुड़वाँ दी 

मन मिलाकर मीनार हुए थे 
फाकामस्ती  में 
चार टका   आते ही पड़ी 
दरार गिरिस्थी  में 

भोज हुआ तो छुट गयी 
पूजा परसादी 
  





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