Sunday, December 11, 2011

पत्थर बोलते नहीं चुप रहते है !!!!!

वे गूंगे है वे बोल नहीं सकते है
जो बोल सकते है वे चुप है



वे अंधे है वे देख नहीं सकते है
जो देख सकते है उनकी आँखें बंद है



वे बहरे है वे सुन नहीं सकते है
जो सुन सकते है
लेकिन सुनना नहीं चाहते है



वे सब खामोश है
क्यूंकि वे ख़ामोशी चाहते है



वे हाड-मांस के पुतले है
फिर भी खामोश है


वे नहीं चाहते है ,सुनना ,बोलना,देखना
अब वे पत्थर हो चुके है

पत्थर बोलते नहीं चुप रहते है !!!!!

5 comments:

  1. बेहतरीन अभिव्‍यक्ति ।

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  2. यार्थार्थ को दर्शाती अभिवयक्ति.....

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  3. वाह वाह...............बहुत बहुत अच्छी कविता..
    एक दम सरल मगर बहुत सार्थक ..
    बधाई...

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  4. सबको अपना काम मिला था,
    उनको बस आराम जिखा था।

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  5. Sidharthji,aapne to pathar ko jeevit hi kar diya...bahut khub lekhan...!
    http://isangam.blogspot.com/
    http://sangamkarmyogi.blogspot.com/

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