वे गूंगे है वे बोल नहीं सकते है
जो बोल सकते है वे चुप है
वे अंधे है वे देख नहीं सकते है
जो देख सकते है उनकी आँखें बंद है
वे बहरे है वे सुन नहीं सकते है
जो सुन सकते है
लेकिन सुनना नहीं चाहते है
वे सब खामोश है
क्यूंकि वे ख़ामोशी चाहते है
वे हाड-मांस के पुतले है
फिर भी खामोश है
वे नहीं चाहते है ,सुनना ,बोलना,देखना
अब वे पत्थर हो चुके है
पत्थर बोलते नहीं चुप रहते है !!!!!
बेहतरीन अभिव्यक्ति ।
ReplyDeleteयार्थार्थ को दर्शाती अभिवयक्ति.....
ReplyDeleteवाह वाह...............बहुत बहुत अच्छी कविता..
ReplyDeleteएक दम सरल मगर बहुत सार्थक ..
बधाई...
सबको अपना काम मिला था,
ReplyDeleteउनको बस आराम जिखा था।
Sidharthji,aapne to pathar ko jeevit hi kar diya...bahut khub lekhan...!
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