सड़क पर कोई आया तो नहीं,
शायद आया?कब आया?
क्यों आया?किधर देखता है?
किसे देखता है?क्यों देखता है?
क्या बोला?नहीं बोला नहीं,
बस फुसफुसाया,पर क्यों?
दिल धड़कने लगा है मेरा,पर क्यों?
नहीं, ऐसा कुछ नहीं है,वो तो पढ़ रही है,
परीक्षा की तयारी कर रही है,खिड़की भी बंद है,
कौन था वो,जरा देखूं तो,अरे कोरियर वाला,
चला भी गया,मैं भी नाहक, परेशां,
फिर क्यों धड़कने लगता है मेरा दिल,
कुछ भी खटपट से चोंक जाता हूँ मैं?
करूं भी तो और क्या?
बिटिया सयानी हो गयी है,
हर पल यही चिंता सताती है....
बस ऊंच नीच के डर की..
sundar ehsaason ko piroti kavita..
ReplyDeleteबिटिया सयानी हो गयी है,
ReplyDelete........क्या बात है
बहुत सुंदर रचना...आजकल जिनकी बेटियां हैं उनकी नींदें यूं ही उड़ी हैं..बेटी होने की वजह से नहीं उनकी सुरक्षा को लेकर....बहुत अच्छा लिखा है...सुंदर भाव
ReplyDeleteSanjay bhai aur veena ji aapne pasand kiya aur main jo kehna cha raha hu wo samajh gaye mere liye itna hi kafi hai.......
ReplyDeletebetee ke sayane hote hee ye dur peecha nahee chodta hai....par hume ubharna hogaa...aur betiyo me bhee aatm vishvas jagana hoga.......
ReplyDeleteaap ise soch se ubharenge tabhee na betee me vishvas ke ankur ankurit honge........
acche sacche bhavo kee pyaree kavita........ Aabhar
यही तो सच्चाई भी है बहुत खूब
ReplyDeleteAap dono mahilao ko pasand aaya likhna safal hua...
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