बदल गए
लिखने पढने के
अब सारे पैमाने
बारहखड़ी रटे बिन बच्चे
होते आज सयाने !!!
नयी सदी है
नए विषय है
नयी नयी सब बातें
गए वक़्त की
चीजे लगती
खड़िया,कलम,दवाते
सब्द वोही है
पर सब्दो के
बदल गए सब माने!!!
अपने ताई
सीखते है अब
सबक सभी दुनियावी
बच्चो को
मंजूर नहीं वे
कीड़ा बने किताबे ;
स्कूल पर भारी दीखते
कोर्ट काचेहरी थाने!
ताल किनारे
बना मदरसा
उसी ताल में डूबा
रोज कागजी नाक्सो से
टीचेर बेचारा उबा
बांस बेहया के झुरमुट
अब दिन में लगे डराने !
आने वाले कल की
दिखती
धुंधली बहुत ईमारत
बिना नीव के
खड़ी हो रही
इतनी बड़ी ईमारत
जब से गली गली
खुलने लगी दुकाने!!!!
बहुत प्रहवाहपूर्ण रचना
ReplyDeleteहिन्दी का प्रचार राष्ट्रीयता का प्रचार है।
हिंदी और अर्थव्यवस्था, राजभाषा हिन्दी पर, पधारें
अच्छी रचना ..
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