धुप देर से आई
जल्दी चल गयी!
किसे पता,जादूगरनी
किस गली चल गयी!
हवा बड़ी मुहजोर
किसी की एक नहीं सुनती है
बागो की हरियाली
बैठे स्वेटर बुनती है
पारदर्शी परदे
पानीदार पड़े
जरा झलक दिखलाई
भीतर चली गयी!
फौजी कम्बल ओढ़े
सिक्रुड़े बैठे टीले है
केश सुबह के देखो
अब तक पूरे गिले है !
दूर -दूर तक पगडण्डी पर
बुँदे बिखरी है
किसी नदी में भोर
नहा कर चली गयी!
सनाटा है ,शोर
बर्फ सा कैसा जमा हुआ
रोम रोम में सबके जैसे
जाड़ा रमा हुआ
सबको घर जाने की
कितनी जल्दी है
खुश्बू आई,
आँख बचा कर चली गयी !!!
जल्दी चल गयी!
किसे पता,जादूगरनी
किस गली चल गयी!
हवा बड़ी मुहजोर
किसी की एक नहीं सुनती है
बागो की हरियाली
बैठे स्वेटर बुनती है
पारदर्शी परदे
पानीदार पड़े
जरा झलक दिखलाई
भीतर चली गयी!
फौजी कम्बल ओढ़े
सिक्रुड़े बैठे टीले है
केश सुबह के देखो
अब तक पूरे गिले है !
दूर -दूर तक पगडण्डी पर
बुँदे बिखरी है
किसी नदी में भोर
नहा कर चली गयी!
सनाटा है ,शोर
बर्फ सा कैसा जमा हुआ
रोम रोम में सबके जैसे
जाड़ा रमा हुआ
सबको घर जाने की
कितनी जल्दी है
खुश्बू आई,
आँख बचा कर चली गयी !!!
जाड़े की मौसम का अच्छा वर्णन किया है आपने ..
ReplyDeleteबहुत खूब सर!
ReplyDeleteसादर
आज हर भोर को प्रतीक्षा रहती है, धूप से नहा लेने की।
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