ढाबे में लड़का
मेज बजाकर
मैंने पानी के लिए पुकारा
ढाबे के एक कोने से दुसरे कोने तक
दौढ़ते थके-थके से उदास लडको में से एक ने
पानी भरा गिलास मेज पर पटका
मेरा धयान गिलास थामे उसकी अँगुलियों पर गया
इन नन्ही अंगुलियाँ में तो एक रंगीन पेंसिल होनी चहिये
और फिर बहुत सारे बच्चे हुडदंग मचाते
पृथ्वी के नक़्शे में रंग भरते मुझे दिखे
और बेहताशा मुझे अपना बेटा याद आगया
रुलाई की हद्द तक !
फिर मुझे रुका ना गया वह
पीछे से कोई चिलाया
"साला !कर दिया ना ग्राहक ख़राब!
लड़के पर हाथ उठाता मालिक चीख रहा था
मैं शर्मिंदा था
मेरी भावना उस बच्चे के लिए महँगी पड़ी!
कल शनिवार 25/02/2012 को आपकी यह पोस्ट नयी पुरानी हलचल पर लिंक की जा रही हैं.आपके सुझावों का स्वागत है .
ReplyDeleteधन्यवाद!
बहुत ही मार्मिक कविता।
ReplyDeleteसादर
कोमल भावो की और मर्मस्पर्शी.. अभिवयक्ति .......
ReplyDeleteकाश बच्चों को उनका जीवन मिले..
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