Monday, October 31, 2011

ये शहर कैसा है??

किसके काटे का बताये की असर कैसा है ?
कोई कैसा है जहर,कोई जहर कैसा है ??



अपनी अपनी है शाम,अपनी अपनी है सहर
कोई जाने ना किसी को, ये शहर कैसा है??



बस गए है कुछ नए अमीर अब इस बस्ती में
दीन -ईमान नहीं इनका,मगर पैसा है



शोर-गुल,भीड़- भाड़,और धुवा भी कितना
सांस लेता हुआ इनमें ,ये शजर कैसा है ??



तेज रफ़्तार बनी है ये जिन्दगी कितनी ?
हर तरफ जाम लगा है ये सफ़र कैसा है ??



हो गयी कार भी बेकार जाम में "सिद्धार्थ"
उतर कर भाग रहा है जो,बशर कैसा है ?

Saturday, October 29, 2011

खवाब


ना कोई खवाब हमारे है ना ताबीरे है !
हम तो पानी पर बनायीं हुयी तस्वीरे है!!


लुट गए मुफ्त में दोनों ,तेरी दौलत मेरा दिल !

ए दोस्त !तेरी मेरी एक सी तकदीरे है !!

कोई अफवाह गला कट ना डाले अपना !


ये जुबाने है की चलती हुयी शमशीरे है !!


हम तो नक्वादा (अनपढ़)नहीं है तो चलो आओ पढ़े !


वो जो दिवार पर लिखी हुयी तहरीरे है !!



हो ना हो ये कोई सच बोलने वाला है "सिद्धार्थ"!


जिसके हाथों में कलम पाँव में जंजीरे है !!

Tuesday, October 25, 2011

कैसे कहूं दीवाली है

आज की रात ये रौशन है
कल फिर सुबह काली है
झूठी होती इस दुनिया में
... सच का दिया जो खाली है
कैसे कहूं दीवाली है !

टूटी अब हर रिश्तों की डाली है
रिश्ता भी अब एक गाली है
प्यार की बगिया जो खाली है
रोया हर एक माली है
कैसे कहूं दीवाली है !

तिनका तिनका बिखरा भारत अब
घुट घुट कर रोती भारत माता अब
देशप्रेम का उपवन अब ये खाली है
जिसकी भारत माँ ही माली है
कैसे कहूं दीवाली है !

भ्रष्टाचार की गहरी रात ये काली है
नेता करते देश की बिकवाली है
फैला हर ओर धोखा है दलाली है
बेचारी जनता, नेता अत्याचारी है
कैसे कहूं दीवाली है !

देश भक्ति का दिया जो खाली है
देश प्रेम की गर्म रक्त से
सुलग रहे हर देश भक्त से
नयी क्रांति आने वाली है
कैसे कहूं दीवाली है !

जलो तुम स्वरक्त से दिया भर
भारत माँ तुम्हे जगाने वाली हैं
भारत की जगमग ज्योति से
दुनिया हुयी उजाली है
दूर नहीं अब नव भारत की
कुछ ही दूर दीवाली है
पर कैसे कहूं दीवाली है !

दीपावली

नेह-प्रेम,विस्वास- आस के नव उजियार भरे!


अलग -अलग भावो के मैंने अनगिनत दीप धरे!


दीप एक विस्वास का बाला तुलसी के आगे!

जोड़ रहा है दीया द्वार का मन के टूटते धागे!

जले आस्थाओ के दीपक घर,आँगन,कमरे!

रख आया में दीप प्रेम का विश्वासों के तट पर !

और नेह का दीप जलाया हर सुनी चौखट पर !

गीत कई गूंजे सुधियों में फिर भूले बिसरे !

सपनो के रंगों-सी झिलमिल ये बल्बों की लड़िया !

नहा रही है आज रौशनी से घर आँगन गलियां !

फुलझरियों -सी हँसती खुशियाँ झर-झर ज्योति झरे !


आप सभी मित्रो को दीपावली की हार्दिक शुभकामनाये!!!!!