Friday, April 30, 2010

आग नफरत की


कभी भटकन आये सही रास्ता दिखा देना
रहू वाकिफ जहा भर की निगाहों से दुआ देना
अगर कही आये कही से भी हवाए बेमुरवत की
कभी भूल कर उनको किसी घर का पता देना
लगी है आग नफरत की अगर दिल में किसी के भी
कसम ईमान की तुमको न तू उसको हवा देना
कही ऐसा न हो जाये खुदा खुद को समझ बैठू
दिखा कर आईना मुझको मुझे मुझसे मिला देना!!!!!!!

Thursday, April 29, 2010

ख्वाब


पुरे सफ़र में हम साथ थे
चांदनी लपेटे हुवे तुम
और मै तुम्हे पुकारता हुवा ..अपनी बाहों में ..!
वो खुबसूरत सा चेहरा ..वो निखार..
गालो की लाली
वो पाजेब की छनकती आवाज
वो फूलो के कंगन
होटो पर मेरा नाम
वो एक दुसरे पर न्योछावर होती नजरे ..!

वो चाँद भी हम पर हसने लगा था ..
होश ..आहोश का वो खोना
देर तक बस तेरे चेहरे में गूम हो जाना
बाते ..बाते...बस तेरी बाते
और मेरा वो तुम्हे बस सुनते रहना..

क्या बताऊ जानम ...क्या ख्वाब था ..!!!
अब जाकर समझ में
आ रहा है
के कितने फासले है हम दोनों में ..

काश मै इस ख्वाब से नहीं जाग पाता ...
ख्वाब को ख्वाब हि रहने देता..

चुपके चुपके.....


पहले जो रहते थे सवालो में आज वोही सामने आये जवाबो में हमने पहल कुछ न की थी दिल में वो सरीक हुए चुपके चुपके आँखों से उनका मुस्कुराना अनबुझ सी बातें बताना जाहिर था उनका सर्माना राज बताये चुपके चुपके...... चाहत के धागों में बंध कर खवाहिश के आकाश में उड़कर दिल की बातों में छुप छुप कर वो मुझे बतलाये चुपके चुपके आज दिल सरफ़रोश हुआ जाये फ़ना की कशिश में लुटा जाये फलक समेटने को जी चाहे मन मदहोश हुआ जाये सांसें रोकू मैं चुपके चुपके.....

Wednesday, April 28, 2010

एहसासे मोहोबत


वक़्त सुकरात मुझको बनाता रहा
मेरा फन मुझ को अमृत पिलाता रहा
उसकी पलकों से अरिज पे जो गिरा
एक सितारा बहुत झिलमिलाता रहा
साडी सचाई चुप रही और वो
सब को झूटी कहानी सुनाता रहा
ये सियासत बनी एक तवायफ का घर
कोई आता रहा कोई जाता रहा
उनकी यादो के जख्म अब तक हरे
वक़्त मरहम पर मरहम लगाता रहा
सूखे पते की मानिंद थी खावाहिसे
वक़्त झुला सा उनको झुलाता रहा
तितलियों पर तो पाबन्दी लग गयी
वक़्त फूलो से खुशबू चुराता रहा
धीरे धीरे नयी एक गजल बन गयी
कौन एहसासे मोहोबत जगाता रहा!!!!!!

Sunday, April 25, 2010

कोई भी न मिल सका


सहरा न दस्त और न गुलजार तक गए
निस्बत थी यार से तो दरेयार तक गए
समां सुकूने दिल का कोई भी न मिल सका
सौ बार हम भी दोस्तों बाजार तक गए
मुल्को की सरहदों का परिंदे को इल्म क्या
इस पार आगये कभी उसपर तक गए
था पूछना जो हाल मेरा मुझ से पूछते
बेवजह गुल के पास गए खार तक गए
"सिद्धार्थ"फिर उनकी खबर छप नहीं सकी
देने बया जो दफ्तरे अखबार तक गए!!!!!!!!

Saturday, April 24, 2010

बा दीद-ऐ-तर


अपने अंजाम से बैखौफे खतर बैठा है
काम उसको जो नहीं करने थे कर बैठा है
उसके होठो पे मेरे प्यार की सुर्खी है मगर
उसकी आँखों में किसी और का दर बैठा है
हर परिंदा नए मौसम के अजाबो से यहाँ
सहमा सहमा सा समेटे हुए पर बैठा है
क्या कहू रोने से दिल पर मेरे क्या कुछ गुजरी
नमी बुनियाद में आई तो ये घर बैठा है
मुझसे तकलीफ किसी की नहीं देखी जाती
कौन ये राह में बा दीद-ऐ-तर(आँखों में आंशु) बैठा है
हर कदम है यहाँ ऐबो की नुमाइश
किस लिए शहर में तू लेकर हुनर बैठा है

Thursday, April 22, 2010

कब आओगी ..?


कब आओगी ..?

जिंदगी से लढ़ सकता हु मै
तेरे कदमो में ला सकता हु मै ..
दूर क्षितिज तक भी मेरी नजरे है
जमीं को आंसमा से मिला सकता हु मै...
जहाँ भी जाऊ
पर तेरी निगाह रख मुझ पे
जो भी करू हासिल
तेरा हक रख मुझ पे
ना मिल सके गर जिंदगी में कभी...
तेरे दिल की सींप में
यादो के मोती संजोये रख ..

कैसे बताऊँ जानम
तुम क्या हो मेरे लिए
रेगिस्तान में भटके हुवे प्यासे की एक बूंद हो तुम
रूह से निकली हुवी सरगम हो तुम
एकांत में ली हुवी समाधी हो तुम
अक्स में समायी हुवी जान हो तुम..

क्यों नहीं आती हो मेरे पास
हमेशा के लिए ...तुम ..?

खिलौना

किस तरह यकीं दिलाऊ में
याद रखु न भूल पाऊ में
चंद लब्जो ने साथ छोड़ दिया
प्यार भला कैसे जताऊ मैं
अपनी नजरो से पूछ कर देखो
क्या बचा है जिसे छुपाऊ में
दोस्ती हो गयी है आंधी से
रोशनी किस लिए बचाऊ में
दिल है टुटा हुआ सा ऐ हम दम
क्या खिलौना तुझे थमाऊ में

मुवाफिक हो गयी

कैसी कैसी हस्तियाँ आखिर जमी में सो गयी
कैसी कैसी सूरते मिटटी की आखिर हो गयी
फिर भी पावन ही रही वो फिर भी निर्मल ही रही
सारे जग का मैल गंगा जी की लहरें धो गयी
वो मेरे बचपन के दोस्त वो मेरा दोस्ताना
जाने किस नगरी गए किस देश जाकर खो गए
देख लेना एक दिन फसले उगेगी दर्द की
दिल की धरती में मिरी आँखें जो आंसू बो गए
तुम भी आ जाओ हमारा हाल तुम भी देख लो
बदलिय आकर हाल पर रो गए
पूजते है हम उसे मंदिर की मूरत की तरह
अपनी आँखें उसके पैरो में लिपट कर सो गयी
नफरतो के मौसम की बादसाहत है दोस्त
अब जबाने भी कटारो के मुवाफिक हो गयी..........

Wednesday, April 21, 2010

कह दे गरूर मेरा है

मेरे से वजूद मेरा है कह दे गरूर मेरा है
काश!कहने की आदत ही छोड़ दी मैंने
जो हो रहा है सब नसीब मेरा है
मैंने छोड़ी थी कभी राह उस पर नहीं गया
भले ही उसपर खड़ी आज नई बस्ती थी
बुतपरस्ती मेरी फितरत थी न उसे छोड़ सका
कोई खाफिर कहे इसको भी मैं न झेल सका
अब कुछ बचा नहीं खुद पर सितम
ढाने को फिर हुयी रात और तेरे याद में दिल डूब गया.........

नयन से नीर बहता है

नयन से नीर बहता है मिलन की आस बढती है
जिगर में दर्द होता है कसम से में कहता हु

सनम से आस रखता हु चुभन दिल में होती है

आँखों की नींद उडती है होटों की प्यास बढती है

नयन तू नीर बहने दे नीर में मेरी प्रियतमा है

जमी पर गिरने दे नीर की बहती रस को
होठों से पीने दे होठों में प्रियतमा का रस है

उस रस में रसने दे नयन तू नीर बहने दे........

तुम

देखा है तुमको जब से
दिल में एक एहसास करा गयी तुम
दिल के सुने आँगन में
दस्तक दे गयी तुम
नम पलकों से कुछ कह गयी तुम
धीरे से चुपके से नम आँखों से घायल कर गयी तुम
धीरे से चुपके से मन को छु गयी तुम
धीरे से चुपके से नजरो का जाम पिला गयी तुम.......

Monday, April 19, 2010

जब भी कोई बात बिगड़ जाये

जब भी कोई बात बिगड़ जाये
वो सभी बातें याद आये
पता चलता है कौन है अपना कौन पराये
अपना हाल भी पूछने नहीं आई वो ,हम कितना कराहे
पहले कहती थी तेरे बिना मर जाउंगी प्यारे
एक पल भी नहीं कटेगा बिन तेरे सहारे
जब कोई बात बिगड़ जाये वो सभी बात याद आये
एक दिन मैं उससे मिला और पूछा
क्या कारण है जो तुमने मुझे ठुकराया
क्या मेरा साथ तुझे रास नहीं आया
काफी मस्कात के बाद मैडम का गुसा समझ में आया
अरे!मैंने तो उसका मोबाइल का रेचार्गे कूपन ही नहीं भरवाया

Sunday, April 18, 2010

रात की तीरगी.....

रात की तीरगी मिटाने के लिए
जल गया घर दिया जलाने के लिए
तेज बारिश से बच सकू कैसे
चार तिनको के आशियाने के लिए
शर्म आती है उनको जाने क्यूँ?
नाम लेकर मुझे बुलाने में
कुछ हवा की भी शरारत है
रुख से तेरा नकाब हटाने में
हाथ क्या आये जख्मे गम के सिवा
एक पत्थर से दिल लगाने में
दिल की दुनिया बदल गयी है "दोस्तों"
उनके एक बार मुस्कुराने में........

Friday, April 16, 2010

हमेशा साथ अपने हाथों की कुछ लकीर है........

रात के अँधेरे में कोई दिया जल उठे ,
तो जाने क्यूँ हम मोम सा पिघल जाते है
कल हमारे हाथों की लकीरे न बदलेंगी,
मगर जिन्दगी के जुड़े लोग बदल जाते है
कभी कभी तकलीफे बहुत बढ़ जाती है,
ऐसा लगता है न आशा है न निराशा
कुछ नजर नहीं आता है आगे ,
आये भी तो कैसे छाया है घना कोहरा...
कभी कभी बंधा बंधा सा रहता है,
अपने ही सोच के घेरे में डूबने से लगते है हम
अपने ही यादों के धुंद अँधेरे में
कोई हो न हो संग अपने,
अगर संग यादों की तस्वीर है
लोग रास्ते बदल भी ले तो क्या,
हमेशा साथ अपने हाथों की कुछ लकीर है........

खुदा की खोज

दोस्ती थी दुश्मनी थी और प्यार था

और हमारे बीच में अखबार था

हम न जिसको लाँघ पाए

प्यार अपना चीन का दिवार था

जब तलक बाए था पत्याशी था मैं

दाये बाजु आकर मैं सरकार था

देह की सीमा के भीतर थी घुटन

और बाहर जिस्म का बाजार था

जिस उजाले की हमें दरकार थी

वो उजाला रोशनी के पार था

जिस किसी ने भी खुदा की खोज की

वो दिमागी तौर पर बीमार था........

उस रात: प्रलय

वो मेरे जीवन की सबसे काली सुबह थी
उस दिन मैं नहीं गया काम पर
और मुझे डराते रहे दिन भर काले सपने
उस रात में जागता रहा और बड़बड़राता रहा
रात भर........
वैसी रात मैंने कभी देखी नहीं थी और न देखू शायद
उस रात की सुबह मेरी धमनियों का रक्त ठंढा और नीला पड़ चुका था
और ढकी हुयी मेरी लाश बर्फ की सफ़ेद चादर से
उस रात की सुबह में मर चुका था लेकिन साँस थी
की नहीं छोड़ रही थी साथ.......
उस रात की सुबह दिन भर रिसता रहा लहू मेरे बदन से
और मैं उसको पीता रहा....
उस दिन मैंने जाना अपने लहू का स्वाद की वह कितना जायेकेदार था....
उस रात की सुबह एक काला और डरावना सूरज निकला
उस रात की सुबह फुफकारती रही हवाये काले नागो सी....
उस रात की सुबह बरसते रहे आकाश से गोले
और फूटते रहे मेरे शरीर में फफोले
उस सुबह मैंने अपने ठन्डे जिस्म और रुकी हुयी साँस को देखा
उस रात मैंने अपने लहू को थराते और कापते देखा
उस रात एक पहाड़ टूट कर गिर पड़ा मेरे जिस्म पर
और उसके नीचे दबा मैं लिखते रहा कवितायेँ
उस रात भर जलते रहे वेद और ऋचाये रोती रही
उस रात मैंने एक जन्म में कई जन्मो की नरक यात्रा की........

कब तक रोएगी

लड़की रो रही है.....
कारण सब को मालूम है
मगर सब चुप है
क्यूँ की चुप हो जाएगी वो अपने आप!
कब तक रोएगी,
एक दिन.....दो दिन.....
हफ्ता.....महिना.....
कितने दिन???
नहीं!कुछ ही देर में
अपने आंसू पोछ सामान्य हो जाएगी....
और फिर से नित्य कर्म में खुद को ढाल लेगी.....!
अब पुनः:पंख फरफरा
कर उड़ानों की बात नहीं रख पायेगी वो....
बहुत कुछ कहेंगे उसके हाव भाव
मगर उन्हें अनदेखा कर दिया जायेगा........
अन्तः:चुपियां जीत नहीं पायेगी
और अपने आप हार जाएगी....
पराये की दहलीज पर.......

Wednesday, April 14, 2010

गर उनका बस चले तो

गर उनका बस चले तो
बेच देंगे आसमान
सोख लेंगे सागर
चुरा लेंगे पहाड़
पी जायेंगे नदियाँ
सिर्फ इस लिए
क्यूँ की उन्हें जड़ाने होंगे
अंगूठी में नग
घर में संगमरमर
चड़ने के को मैतिज सांत्रो और इंडिका कार
और दामादो को देना होगा
बेटियों की उचाई तक
नबे करोड़ का नगीना.....

लाश.........

आदमी की तरह आदमी नहीं थे मौजूद
लाश की तरह लाश नहीं थी
आँखें खुली हुयी थी एकटक देखती
मुह भी खुला जैसे कहने को कुछ अभी अभी
भीड़ का मुह भी खुला था
लेकिन आवाज खो गयी थी उसकी
थोरा हटकर पड़ा था चाकू
चाकू नौ इंच का था
नौ इंच के चाकू का घाव
नौ इंच का नहीं था
मुस्किल था घाव का गहरायी नापना
की घाव की उतनी नहीं होती
जितनी हथियारों की लम्बाई
नापना मुस्किल था घाव की गहराई जहा
वह थोरा हटकर पड़ा था चाकू
चाकू इस्पात का था
यक़ीनन वो आदमी भी इस्पात का था
जिसने इस्तेमाल किया था चाकू
और जिसपर किया गया था इस्तेमाल
वो इस्पात का आदमी नहीं था
आदमी इस्पात के नहीं होते
हां!जिन्दगी इस्पात की हो सकती है
कोहरा कोहरा होता जा रहा है
सब कुछ और कोहरे में धबे जैसा
ये की धबे में भी सब कुछ
पहचान लेने की षमता है आदमी के पास
बावजूद इसके गहराता जाता है धबा
कत्ल को कत्ल कहना
मुस्किल होता जा रहा है आदमी के लिए
लाश के लिए मुस्किल नहीं कुछ
तैर जाती है दरिया में लाश
और जिन्दगी डूब जाती है अक्सर तैरते तैरते.......

Tuesday, April 13, 2010

एगो बाँहि कटल भारत के . .

देहियाँ के आपन, हिस्सा , बेगान हो गइल ।
एगो बाँहि कटल भारत के, पाकिस्तान हो गइल ।।
जब, देश के, सपुतवे, एके आजा़द करौवलें ।
तब जाते-जात फिरंगी , तीर अइसन छोड़ि गइलें ।
सोनवा के ई चिरइया, लहलुहान, हो गइल ।
एगो बाँहि कटल भारत के, पाकिस्तान हो गइल ।।
मजहब, के नाव लेके, भाई - भाई, लड़ि गइलें ।
राजनीति करे वाले , एगो , चीन्हा खींच गइलें ।।
देश, बाँटे वाला , लोगवा, त महान हो गइल ।
एगो बाँहि कटल भारत के, पाकिस्तान हो गइल ।।
रिश्ता, सुधारे खातिर, किरकेटो, खेलावल गइल ।
दुन्नू ओर से शान्ती के, बसवो चलावल गइल ।।
ई देखि के, अमेरिका , परेशान हो गइल ।
एगो बाँहि कटल भारत के, पाकिस्तान हो गइल ।।
ई काश्मीर मुद्दा , भी रही ना अझुराइल ।
झगरा मिटा दी सगरो, अब प्यार के मिसाइल ।।
ई "अनूप" के कलम से, एलान, हो गइल ।
एगो बाँहि कटल भारत के, पाकिस्तान हो गइल ।।
देहियाँ के आपन, हिस्सा , बेगान हो गइल ।
एगो बाँहि कटल भारत के, पाकिस्तान हो गइल ।।
Not Mine This poem is belong to anup bhai......

Saturday, April 10, 2010

क्यूँ लगता है?

बच्चा सच्चा क्यूँ लगता है?

इतना अच्छा क्यूँ लगता है?

सूरज डूबने लगता है जब

साया लम्बा क्यूँ लगता है?

तेरा नाम लिखू तो कागज

उजला उजला क्यूँ लगता है?

तन कर चलता है जब इंसा

इतना छोटा क्यूँ लगता है?

मर जाता है मरने वाला

फिर भी जिन्दा क्यूँ लगता है ?

इतने तारो की झुरमुठ में

चाँद अकेला क्यूँ लगता है?

इतनी महंगाई की रुत में

इंसा सस्ता क्यूँ लगता है?

मुझसे खफा कहीं तुम तो नहीं ...

सुनली जो खुदा ने वो दुआ कहीं तुम तो नहीं ...
दरवाज़े पे दस्तक की सदा कहीं तुम तो नहीं ...

महसूस किया तुमको तो गीली हुई पलकें …
भीगें हुए मौसम की अदा कहीं तुम तो नहीं ..

अंजना सा हूँ मैं , कोई भी नहीं मेरा ….
किसने मुझे यूँ अपना कहा कहीं तुम तो नहीं ...

दुनिया कों बहरहाल गिले – शिकवे रहेंगे ...
दुनिया की तरह मुझसे खफा कहीं तुम तो नहीं ...

Not Mine:- I like it

फिर किसी दिन..

फिर किसी दिन
मेरी, ये कविता पूरी होगी
मिलने पर कुछ छंदों के
नहीं अधूरी होगी
हाँ! पर फिर किसी दिन......

फिर किसी दिन
इसमें, अपनों की ही बाते होंगी
जाने कितनी मुद्दत के बाद
शब्दों की बरसाते होंगी
हाँ! पर फिर किसी दिन....

फिर किसी दिन
देखो, कोरा कागज़ त्यौहार मनायेगा
होली के रंग की बात नहीं
श्याम रंग तो पायेगा
हाँ! पर फिर किसी दिन....

फिर किसी दिन
चौखट पर, हलकी सी धुप बिखरेगी
बन के गीत मेरी ये कविता
फिर होंठों पर निखरेगी
हाँ! पर फिर किसी दिन....

फिर किसी दिन
तुम भी, यूँ ही गुन्गुनायोगे
लेकिन गीत मेरा ही मुझे सुनने को
शायद तरस जायोगे
हाँ! पर फिर किसी दिन..

Thursday, April 8, 2010

पत्थर

घास और फूल से खेलता बच्चा

कलकल छल छल पानी को छेड़ता बच्चा

स्तन का दुध पीता बच्चा

धीरे धीरे इस पत्थर की दुनिया में

पत्थर होता जा रहा है

दुःख पत्थर का,सुख पत्थर का

और गढ़ता जा रहा है

सबोरोज पत्थर का इतिहास

बालू के दुह पर

खड़ी है मेरे देश की छोटी बच्ची

सोच रही है

की किस आलीसान बिल्डिंग में

नानी मिलेगी !!!!!!!!

उसे क्या पता इस सहर में होती दुनिया में

की नानियाँ जिन्दा है अब भी

घरो को पत्थर से गढ़ते हुए !!!!!!!!!!!!

आज से तेरा गुलाबो की तरफ जाना मना

आज से तेरा गुलाबो की तरफ जाना मना
इस हवा का उस तरफ की खुसबू लाना मना
डाल से तोड़े गए हो हुकुम है हँसते रहो
धुप में रहना पड़ेगा और मुरझाना मना
पाँव की एड़ी तलक अंगुली जानी चाहिए
पाँव में कोई बिवाई है तो सहलाना मना
इस धुएं पर ठितुराते हाथ गर्माते रहो
इस अलाव में सुलगती आग धधकाना मना
मेरे घर में रोशनी का चर्चा जुर्म है
मेरी चाट पर चांदिनी का गौर फरमाना मना
कैद में है बुलबुल मेरी सयैद की ताकीद है
आज से रोना मना आज से गाना मना.......

मेरी नजर......

न जाने किसे धुन्धती है मेरी नजर
खामोश है लब मगर बोलती है नजर
वफ़ा की उम्मीद किस से रखु
पल भर में तो बदल जाती है नजर
अपने पराये लगते है कभी
और कभी पराये अपने
नहीं जानता किसे खोजती है मेरी नजर
इस धरा के रंगहीन रिश्तो से बेखबर
केवल सून्य को निहारती है मेरी नजर......

"महताब"

दिल क्या चीज है जानम ये जान तुम्हारी है
तेरी बाहों में दम निकले हसरत ये हमारी है
इन्जार तेरा करते करते आँखें थक सी गयी है
आओगे वापस लौट कर सोचकर ये उम्र गुजारी है
जाये कहा जहा में कोई नहीं है मीत अपना
"महताब" भी छिप गया बादल में
ये रात अन्धयारी है
जब भी आँख खोलू सामने हो तेरा चेहरा
दिल के आईने में तस्वीर तुम्हारी है
तेरी यादों में पलभर दूर रहा नहीं कभी
साथ रहेंगे उमरभर तमन्ना ये हमारी है
कैसे करू इजहार मोहोब्बत का तुझसे
दिल क्या चीज है जानम ये जान तुम्हारी है!!!!!

इल्ज़ाम

जिस वक़्त भरे घर में तन्हा मुझे पाया है भूली हुयी यादों नें जी भर कर रुलाया है इस धुप के जंगल में जाऊ भी कहा जाऊ सूरज से शिकायत क्या दुश्मन मेरा साया है मैं अपने चरागों की किरण को भी तरसता हू आंधी में जिन्हें मैंने भुझने से बचाया है दुनिया के मिटाने से मिटते है कही रिश्ते वो आज भी है अपना कहने को पराया है वो रात वो तन्हाई एक अंजुमन है आई फिर याद मुझे आई फिर उसने बुलाया है जीने का हमें अंदाज आया है न आएगा ये सच है की जीने का इल्ज़ाम उठाया है.!!!!!!!!!!

तेरा दिल चुरा लिया मैंने .......

अपने मन को मना लिया मैंने

जिन्दगी से निभा लिया मैंने

एक खुश्बू सी तेरी याद आई

एक पल मुस्कुरा लिया मैंने

प्यास तडपी तो पी लिया आँशु

भूख में गम को खा लिया मैंने

दर्द का गीत एक तडपता सा

प्यार में गुनगुना लिया मैंने

मुझपर इल्जाम है ज़माने का क्यूँ?

तेरा दिल चुरा लिया मैंने .......

ओ मेरे सुन्दर अतीत....

अचानक, इतने दिनों बाद,
क्यों आ गए तुम,
कल मेरे सपने मे?
माना की तुम मेरे यादो मे संचित हो,
माना की तुम मेरे जीवन-परयन्त प्रजवलित
भावों के मधुर-दीप हो
मेरी यादो मे सांसो मे रचे-बसे हो
एक नि:शेस व मधुर अस्तित्व हो !
फिर भी
क्या मिल जाता है
बाहर आकर मेरे मनो मस्तिस्क को झकझोरने से?
क्या तुम भूल जाते हो की मेरा एक वर्तमान जीवन भी है जहाँ मैं स्वंय हूँ
मेरा प्रिये जीवनसाथी है,
मेरा प्यारा दुलारा पुत्र है,
जिनसे मुझे पृथक नहीं अपितु
जिनमे मुझे रमे रहना है
तुम यह मत भूलो की
चाहे तुम कितनी भी सर पटक लो
अब तुम्हे अतीत बनकर ही रहना है!
अतः व्यर्थ है अन्त: के ग़र से
यादो के संचित कोष से बाहर आना
और करना प्रयास मुझे परेशान करने का
अब तो तुम्हारी हमारी भलाई इसी मे है की
तुम यथास्थान बने रहो (विस्वास रखो की तुम्हारा मेरे अन्त: मे स्थित
वह स्थान कभी छिनेगा नहीं तुमसे)
और मुझे अपने वर्तमान मे जीनो दो !

कोई मुंतिजर होता!!!!!!

जिन्दगी के खाको में रंग भर गए होते
काश मेरी आँखों के खवाब मर गए होते
दर-ब-दर भटकना नसीब है अपना
तू अगर सदा देता हम ठहर गए होते
फिर हवा ने शाखों को बेलिबास कर डाला
जख्म पिछले मौसम के कुछ तो भर गए होते
खुद को जोड़े रखा है शायिरी में
शायिरी न होती जो हम बिखर गए होते
इन उदास रातों की सुरमई थकन लेकर
कोई मुंतिजर होता हम भी घर गए होते.......

Wednesday, April 7, 2010

फिर एक तमन्ना जी लें हम !

आओ
फिर एक तमन्ना जी लें हम !

कुछ ख्वाब सजा लें खुशियों के
कुछ तकदीरें सीधी कर दें
धरती से फलक तक जा पहुंचे
उम्मीद की एक सीढ़ी कर दें ...

मुस्कान बाँट दें होठों को
सारे अश्कों को पी लें हम

आओ !
फिर एक तमन्ना जी लें हम !

फिर आज सहारा दें
टूटी आशाओं को
विचलित कर दें
इस जग की परिभाषाओं को
दें छाँव झुलसते
बोझ उठाते बचपन को
फिर फुलवारी कर दें
इस मन के आँगन को

प्रेम-वृष्टि में भीगें,हो लें गीले हम
आओ
फिर एक तमन्ना जी लें हम !

तन्हा

सब से छुपा कर दर्द को वो मुस्कुरा दिया
उसकी हसी ने तो आज मुझे भी रुला दिया
लहजे से उठ रहा था दर्द का धुआ
चेहरा बता रहा था की कुछ गवा दिया
आवाज में ठहराव था आँखों में नमी थी
और कह रहा था की मैंने सब कुछ गवा दिया
जाने क्या उस को लोगो से थी शिकायत
तन्हाई के देस में खुद को बसा लिया
खुद भी वो हम से बीचर कर अधुरा सा हो गया
मुझको भी इतने लोगो में तन्हा बना दिया.......

पागल II

कागज कागज हर्फ़ सजाया करता है
तन्हाई में सहर बसाया करता है
कैसा पागल शख्स है सारी सारी रात
दीवारों को दर्द सुनाया करता है
रो देता है अपने आप अपने ही बातो पर
फिर खुद को अपने आप हँसाया करता है....

वो अजनबी

एक अजनबी से एक दिन मुलाकात हुयी
दिल के कोने में एक अनकही एहसास जगी
कभी सोचा न था की जिन्दगी कब इतनी हसीन हुई
सपनो ने अंगराई ली रातें मेरी रंगीन हुई
एक अजनबी से एक दिन मुलाकात हुई
मन के समंदर में हलचल हुई
खवाबो की हकीक़त से मुलाकात हुई....
रूह से जिस्म से पहचान हुई
चांदनी की रात से बात हुई
अब वो अजनबी नहीं
मुझे मंजिल से मुलाकात हुई......

Tuesday, April 6, 2010

एक दबी हुई आवाज़...........

रात के सन्नाटे में
आता है कोई शख्स
हो जाता है
सृजन में मग्न
वह
भी
निर्वस्त्र
मै भी नग्न

दो छोटे साये और भी
निद्रालीन
बिस्तर
पर ........

रख चला जाता है
शख्स कुछ मेरे हाथ पर
जाने
मेरा
मेहनताना
या फ़र्ज़ सात फेरे का

मेरे और शख्स का
बस रात
का
नाता है
शायद इसीलिए वह
मेरा शौहर कहलाता है ?????????

साये
और
शख्स का
रिश्ता क्या
पता नहीं
पर, मै कोई... व...ेश्या नहीं !!!!!!!
मै
तो
एक दबी हुई आवाज़ हूँ ............