Sunday, July 31, 2011

इंसान का दिल


जब भी मैं इस शहर में कमरे से मैं बाहर निकला !

मेरे स्वागत में हरेक जेब से खंजर निकला !!

तितलियों -फूलो का लगता था जहा पर मेला !


प्यार का गाव वो बारूद का दफ्तर निकला !!


डूब कर जिसमें उबर पाया ना मैं जीवनभर !


एक आंसू का वो कतरा तो समंदर निकला !!


मेरे होठो पर दुआ,उसकी जुबान पर गाली !


जिसके अन्दर जो छिपा था वो निकला !!


जिन्दगी भर मैं जिसे देखकर इतराता रहा !


मेरा सबकुछ वो मिटटी की धरोहर निकला !!


क्या अजब चीज है
इंसान का दिल भी "सिद्धार्थ" !

मोम निकला ये कभी तो कभी पत्थर निकला !!

पलक-तूलिका

मन की चौखट लांघ गया
कर जीवन-पथ मे छांह गया
अनदेखे कोमल तंतु से
को उलझी लटें संवार गया

एक ऐसी सरस बयार चली
अंतस को सुना मल्हार चली
तेरे बोलों की बांसुरिया
प्राणों मे सुर संचार चली

तन बजने लगा मंजीरा सा
मन मतवाला हुआ मीरा सा
दिन-रैन नेह की होली ने
जीवन रंग दिया अबीरा सा

मैना मनकी बोले भोली
रग-रग मे करती ठिठोली
पलकों की झुकी तूलिका ने
तन-मन मे रंग दी रंगोली

Thursday, July 28, 2011

हिसाब

अब अपनी रूह के छालो का कुछ "हिसाब" करू !

मैं चाहता था चरागों को आफताब करू !!

बुतों से मुझको इजाजत अगर कभी मिल जाये !

तो शहर भर के खुदाओ को बेनकाब करू !!


मैं करवटों के नए जाएके लिखू शब् भर !

ये इश्क है तो कहा जिन्दगी अजाब करू !!


है मेरे चारो तरफ भीड़ गुंगो बहरो की !

किसे खातिब बनाऊँ किसे ख़िताब करू !!



उस आदमी को बस एक धुन सवार रहती है !

बहुत हासिल है ये दुनिया इससे ख़राब करू !!

ये जिन्दगी जो मुझे कर्ज़दार करती रही !

कही अकेले में मिल जाये तो हिसाब करू!!!!!

Monday, July 25, 2011

गोहरबार(मोती का पानी)

जहा कतरे को तरसाया गया हू !

वोही डूबा हुआ पाया गया हू !!

बला(मुसीबत) काफी ना थी एक जिन्दगी की !

दुबारा याद फ़रमाया गया हू !!

सुपुर्द--ख़ाक(दफनाना) ही करना है मुझको !

तो फिर काहे को नहलाया गया हू !!

गोहरबार(मोती का पानी) हू मैं !

मगर आँखों से बरसाया गया हू !!

"सिद्धार्थ"अहले जब कब मानते है !

बड़े जोरो से मनवाया गया हू !!

Saturday, July 9, 2011

जुबान

जुबान हिलाओ तो हो जाये फैसला दिल का !
अब आ चुका है लबो पर मुआमला दिल का !!


किसी से क्या हो तपिश में मुकाबिला दिल का !
जिगर को आँख दिखाता है अबला दिल का !!


कसूर तेरी निगाह का है ,क्या खता उसकी !
लगावातो ने बढाया है हौसला दिल का !!


शबाब आते ही ऐ काश मौत भी आती !
उभारता है इसी सिन में वल्बाला दिल का !!


हमारी आँख में भी अश्क -ऐ-गम ऐसे है !
की जिसके आगे भरे पानी अबला दिल का !!


कुछ और भी तुझे ऐ"सिद्धार्थ"बात आती है !
वोही बुतों की शिकायत वोही गिला दिल का !!

Thursday, July 7, 2011

कमी ढूंढते रहे !!

हम उनके नाचने में कमी ढूंढते रहे !
वे मेरे अंगने में कमी ढूंढते रहे !!

चेहरे पर अपने एतबार इतना था हमे !
हम अपने आईने में कमी ढूंढते रहे !!

अपनी कमाई जिनके बीच बांटता रहा !
वो मेरे बाँटने में कमी ढूंढते रहे !!

जिनके पालने में झूल-झूल कर बड़े हुए !
फिर अपने पालने में कमी ढूंढते रहे !!

बेटी का हाथ थाम लिया बिन दहेज़ के !
सब लोग पाहुन(बेटी का पति)में कमी ढूंढते रहे !!

वो प्यार के सिखा गए हम को मायने !
हम उनके मायने में कमी ढूंढते रहे !!