Saturday, February 19, 2011

पिता


पिता का केवल चेहरा था हँसमुख

लेकिन पिता को खुल कर हँसते हुए

देखा नहीं किसी ने कभी



नीव की ईट की तरह

भार साधे पूरे घर का अपने ऊपर

अडिंग खड़े रहे पिता....



आये अपार भूकंप

चक्रवात अनगिनत

गगन से गाज की तरह गिरती रही विपदाओ

में झुका नहीं पिता का ललाट


कभी बहिन की फीस कम पड़ी

तो पिता ने शेव करवाना बंद रखा पूरे दो महीने

कई बार तो मेरी मटरगस्ती के लिए भी

पिता ने रख दिए मेरी जेब में कुछ रुपये

जो बाद में पता लगा की लिए थे उन्होंने किसी से उधार



पिता कम बोलते थे या कहे

की लगभग नहीं बोलते थे

आज सोचता हूँ

उनके भीतर

कितना मचा रहता था घमासान

जिससे झुझते हुए

खर्च हो रही थी उनके दिल की हर धड़कन



माँ को देखा है हमने कई बार

पिता की छाती पर सर धरे उसे अनकते हुए



माँ की उदास साँसों में

पिता की अतृप्त इच्छाओ का ज्वार

सर पटकता कहारता था बेआवाज


यह एक सहमत था दोनों का

जिसे जाना मैंने

पिता बनने के बाद!!!

Sunday, February 6, 2011

तौफिक

जिन्दा रहने के लिए ये तौफिक उठाये रखना !
दर्द की आंच को मुट्ठी में दबाये रखना !!

ये भी होता है किसी घोर तपस्या जैसा !
तेज आंधी में चरागों को जलाये रखना !!

गैर-मुमकिन तो नहीं,फिर भी बहुत मुश्किल है !
कागजी फूल पे तितली को बैठाये रखना !!

मोमबती को बुझा देगी अगर उठ आई !
तुम हवा को जरा बातो में लगाये रखना !!

कोई आहट कोई दस्तक,किसी चिड़िया की चहक !
घर की सुनसान हवेली में सजाये रखना !!

कितना मुश्किल है ये मासूम परिंदों के लिए !
खुद को चलाक शिकारी से बचाए रखना !!!