Monday, August 30, 2010

प्रभु मुझे क्यूँ छोड़ा अकेला????

एक रात,एक आदमी ने एक सपना देखा
उसने देखा की वो सागर तट पर प्रभु के साथ चल रहा है
गगन में चमक उठे उसके जीवन प्रसंग
और हर प्रसंग में उसने देखे
रेट पर पदचिन्ह के दो युगल
एक उसका अपना और दूसरा था प्रभु सवर्सक्तिमान का!
जब उसकी आँखों के सामने से अंतिम दृश्य गुजरा
तो उसने पाया अनेक बार के प्रसंगों में रेत पर अंकित है
केवल एक जोड़ी पदचिन्ह ,
और यही वो प्रसंग थे जब उसके जीवन में सबसे जयादा उद्दासी थी
सबसे ज्यादा था दुःख!!!!
उसने प्रभु से पूछा,प्रभू
तुमे तो सदा मेरे साथ चलने का वादा किया था
फिर संकट के हर समय रेत पर पदचिन्ह का एक जोड़ा क्यूँ है?
जब मुझको तुम्हारी सबसे जयादा जरुरत थी
तब ही तुमने छोड़ दिया मुझे अकेला???
प्रभू ने उतर दिया,मेरे प्यारे -प्यारे बेटे
मैं तो तुम्हे इतना प्यार करता हु
कभी भी चोदुंगा नहीं अकेला !
जब तुम कस्ट और संकट के समय में थे,
तब रेत पर पर पदचिन्ह का
का एक ही जोड़ा इसलिए अंकित हुआ
क्यूंकि मैं तुमको गोद में उठाये हुए था!!!!!!!!!

Saturday, August 28, 2010

पहला प्यार रेलगाड़ी में

पहली पहली बार, हुआ प्यार, रेलगाड़ी में
पहली पहली बार, किया इन्तजार, रेलगाड़ी में

वो आये नज़रे मिलाये, लड़खडाए और शर्माए
उनकी इसी अदा पर, मिटा मैं यार, रेलगाड़ी में

भीड़ में एक मुझको, मुस्कुराकर जब देखा
मिला दिल को तब, बहुत करार, रेलगाड़ी में

उनका छूना, टकराना, सिमटना और मचलना
इस खेल ने कर दिया, बेकरार, रेलगाड़ी में

काटी किसी और ने चिकोटी, मिली सजा मुझे
बिना कुछ किये ही, बना गुनहगार, रेलगाड़ी में

ये खेल मोहब्बत के यूँ ही संग संग चलते रहे
यूँ ही ख़त्म हुआ, सफ़र खुशगवार, रेलगाड़ी में

Friday, August 27, 2010

अब मैं सूरज को डूबने नहीं दूंगा


अब मैं सूरज को डूबने नहीं दूंगा
देखो,मैंने कंधे चौड़े कर लिए है !!
मुठिया मजबूत कर ली है!
और ढलान पर एड़ियाँ जमाकर
खड़े होना मैंने सीख लिया है !

घबराओ मत
मैं छीतिज पर जा रहा हु!
सूरज ठीक जब पहाड़ी से लुदकने लगेगा !
मैं कंधे अड़ा दूंगा ! देखना वो वोही ठहरा होगा!
अब मैं सूरज को डूबने नहीं दूंगा!!!
मैंने सुना है उसके रथ में तुम हो
तुम्हे में उतार लाना चाहता हू
तुम जो स्वाधीनता की प्रतिमा हो

तुम जो साहस की मूर्ति हो
तुम जो धरती का सुख हो
तुम जो कालातीत प्यार हो
तुम जो मेरी धमनियों का प्रवाह हो
तुम जो मेरी चेतना का विस्तार हो
तुम्हे में उस रथ पर उतार लाना चाहता हू !!!
रथ के घोड़े,आग उगलते रहे
अब पहिये तस से मस नहीं होंगे !
मैंने अपने कंधे चौड़े कर लिए है !
कौन रोकेगा तुम्हे?
मैंने धरती बड़ी कर ली है
अन्न की सुनहरी बालियों से मैं तुम्हे सजाऊंगा
मैंने सीना खोल लिया है
प्यार के गीतों में मैं तुमको गाऊंगा
मैंने दृष्टी बड़ी कर ली है

हर आँखों में तुम्हे सपनो सा लाऊंगा!

सूरज जायेगा भी तो कहा ?

उसे यही रहना होगा
यही
हमारी सांसो में
हमारे रगों में
हमारे संकल्प में
तुम उदास मत होवो
अब मैं किसी भी सूरज को डूबने नहीं दूंगा
!!!!!!!

Thursday, August 26, 2010

पास आने तो दो


इन हवाओ को कुछ गुनगुनाने तो दो
चाँद को दो घडी मुस्कुराने तो दो!!!
दो घडी की मुलाकात काफी नहीं
इस तरह रातों को नींद आती नहीं
रात को भोर का गीत गाने तो दो....
चाँद सा आप का यह दमकता बदन
फूलो की गंध जैसा महकता ये मन
प्यार के वादों को रंग लाने तो दो....
ये शर्म हया क्यूँ?ये संकोच क्यूँ?
प्रियतम की बाहों से परहेज क्यूँ?
दो पल को जरा भूल जाने दो
मेरे कंधे पर सर अपना रख दीजिये

धडकनों की जुबान कुछ समझ लीजिये
होटो को होटो के पास आने तो दो
चाँद को दो घडी मुस्कुराने तो दो.........

Tuesday, August 24, 2010

चोट


माँ की तर्जनी पकड़ कर
नन्हा पांव अकड़ कर
चल पड़ा
उत्साह बढ़ा होगा
कुछ दूर चला होगा
की रस्ते के पत्थर से टकरा गया
उंगली छुट गयी सर चकरा गया
अरुण वर्ण मुख चन्द्र से
करुण किलकारी निकल गयी

नवनिर्मित लहू बाहर छलक पड़ा
माँ का चेहरा सिकुर्ड़ने लगा
वात्सल्य उमर्दने लगा
और,
आँख से आंसू ढुलक पड़ा
ऐसा लगा जैसे
सिर्फ मासूम अस्तित्व को ही नहीं
अपितु नवोद ममत्व को भी कही चोट लग गयी....
और ममता की दुनिया मोम सी पिघल गयी.........

बस,आप नहीं होती है !!!!!!!!!!!!

हँसी खनकती तो है आपकी मेरे चारो तरफ
बस,आप नहीं होती है !!!!
नज़ारे देखता तो हू आपके हर पल......
बस,आप नहीं होती है!!!!!
महकता तो है घर मेरा खुसबू से आपकी
बस,आप नहीं होती है !!!!!!!!!!
जलाता तो हू दिए अरमानो के हर शाम
बस,आप नहीं होती है !!!!!!!!
सजती तो है राहे मेरी दुओं से आपकी हर बार
बस,आप नहीं होती है !!!
लिखता तो हू आपका नाम आपके हाथो पर अनेक बार.....
बस,आप नहीं होती है !!!!!!!!!!!!

Monday, August 23, 2010

राखी भेजी तो जरुर होगी


बहना ने मुझे राखी भेजी तो जरुर होगी
नहीं भेजी है तो बहिन निश्चित मजबूर होगी!
कही ऐसा तो नहीं टिकट ना मिला उसे
डाक वाला लाल डिब्बा निकट ना मिला उसे!
जीजा परदेस बहन गम से जो चूर होगी
बहना ने मुझे राखी भेजी तो जरुर होगी!!!
बहना है भी तो नाजुक-सी,कोमल सी,
पड़ी हो बीमार कही ताप से हो बोझिल सी!
होगी बेहाल तभी तो याद मेरी दूर होगी
बहना ने मुझे राखी भेजी तो जरुर होगी!!!
पहली गाडी से क्यूँ ना बहना के घर जाऊं
बाद दूजी बात करू पहले राखी बनदौं !!
देख मुझे भुचाक्की हो खुश भरपूर होगी
बहना ने मुझे राखी तो जरुर भेजी होगी !!!
भूल कोई हुयी होगी बहना से जल्दी में
डाटा ना हो उसे कही सास ने,ननदी ने !
मुझे भी दे डांट गाली मुझे तो मंजूर होगी
बहना ने मुझे राखी तो जरुर भेजी होगी!!!!

Saturday, August 14, 2010

मेरे खवाबो के वतन.......


मेरे खवाबो के वतन.......
यही तोहफा है यही नजराना
मैं जो आवारा नजर लाया हु
रंग में तेरे मिलाने के लिए
कतरा-ऐ-खून-ऐ-जिगर लाया हु
ऐ गुलाबो के वतन
पहले कब आया हु कुछ याद नहीं
लेकिन आया था कसम खाता हु
फूल तो फूल है काटों पे तेरे
अपने होटों के निशान पाता हु
मेरे खवाबो के वतन
चूम लेने दे मुझे अपने हाथ अपने
जिन से तोड़ी कई जंजीरे
तुने बदला है मासियत का मिजाज
तुने लिखी है नयी तकदीरे
इन्कलाबो के वतन
फूल के बाद नए फूल खिले
कभी खाली न हो दामन तेरा
रोशनी रोशनी तेरी राहे
चांदनी चांदनी आंगन तेरा
माह्ताबो के वतन...........
सवतन्त्र दिवस की हार्दिक बधाई.....