Tuesday, September 25, 2012

प्रयास

कल रात मेरे मन में एक विचार कौधा उसको मैंने शब्द दे दिए और देखा तो कविता जैसा 
कुछ का निर्माण हो गया....आप मित्रो से निवेदन है इसको पढ़े और बताये क्या ये कविता है?है तो 
कैसा है .......आपका मैं सदा आभारी रहूँगा...............

           प्रयास 

जनता बहुत उदास है ,
कोई नेता आसपास है !

यहाँ बड़े बड़े पुजारी है 
मंदिरों में उगी घास है !

हसने का राज बस इतना सा 
पडोसी जरा उदास है !

कल दोस्त के घर जश्न  था, 
आज मेरे घर उपवास है !

देव उतरे धरती पर 
स्वर्ग में उलास है !

आदमियों के बाजार में ,
मुझे बिकने का अभ्यास है !

सच ने ठगा हमेशा से ,
अब झूट का प्रयास है !

एक एहसास

एक घुटन

जो समय के साथ साथ 

बढती जा रही है 

नित नए कडवे अनुभव 

अपने अन्दर समेटे हुए 

ये मन न जाने कब तक 

दिन ब दिन 

इसके बढ़ने को सहता जायेगा 

एक तालाब की तरह शांत सा 

ऊपर से दिखने में 

जिसमें कभी लहरें नहीं उठती 

कभी तूफान नहीं आता 

किसी के शरारत का कंकर 

थोड़ी देर के लिए हिला गया 

बैचैन कर गया 

और 

इन बैचेनियों का दर्द सहते हुए 

फिर भी शांत 

बहुत चुभती है इसकी शान्ति 

घुटन भरी शांति 

न जाने कब लहरें उठेंगी 

इन तालाब में 

और बाहर आएगा इसका दर्द 

इसकी घुटन 

जो दे इनको वास्तविक शांति 

लहरों 

मत बनो सागर की बपोती 

जानो 

की इन्तजार में है तुम्हारे 

एक तालाब भी !!!




Saturday, September 15, 2012

मैं कवि नहीं

मैं कवि नहीं 
न ही कविता लिखना मेरा पेशा  है 
फिर भी लिखता हु कभी कभी 
लिखता हू  
जब अपनी पीड़ा को 
सबके सामने बया नहीं कर पता 
लिखता हू
जब अपने आत्मसमान को 
तिल तिल मरते देखता हू  
जब हर काम के लिए मुझे 
बाबुओं की जी हजुरी करनी पड़ती है 
लिखता हू 
जब सरकारी विभाग  में 
मेरे अक्सर झगडे हो जाते है 
अपने काम करवाने के लिए 
ऐसा नहीं ,की मैं बतामिज नहीं 
बल्कि इसलिए 
की उन्हें ही नहीं एहसास 
उनके पद से जुड़े कर्त्तव्य का 
फिर भी मैं लिखता हू
पर मैं कवि नहीं 
दरअसल मैं विद्रोही हु 
और मुझे अभी अभी एहसास हुआ है 
अपनी नयी पहचान का 
यह देख कर 
की बेईमान लोग अब 
मुझसे खौफ्फ़  खाने  लगे है 
और मुझ जैसे विद्रोही की 
संख्या बढ़ने लगी है 

Tuesday, September 11, 2012

रेत की सहेली


                         

हाथ से फिसलती रेत से
पूछा मैंने एक बार- 
कौन है तेरी सहेली?

मुस्कुराकर रेत ने कहा ,
वोही जो संग तुम्हारे गाती है 
उलझा कर तुम्हे गीतों में 
धीरे  से फिसल जाती है !"

मुझमें उसमें फर्क है इतना 
मैं हकीकत वो एक सपना !
मेरी फिसलन दिखती है  
महसूस भी हो जाती है !"

'....पर वो निगोड़ी देकर एहसास ,
सफ़र के साथ 
फिसलन हाथो से 
न जाने कहा खो जाती है ,
मत पूछ उसका नाम 
"जिन्दगी" कहलाती है !!!!!'