Monday, July 30, 2012

चुप भी रहते है तो.........

चुप भी रहते है तो एक तर्ज-ए -बया रखते है ,
हम वो कतरा है जो दरिया की जुबा रखते है !

लोग होते है वोही दुनिया में साहसी 
साथ अपने जो चिरागों का धुआ रखते है !  

सब से छुटा है तेरा साथ ,तेरे दीवाने 
मोम के शहर में धागों की दुकान रखते है !

इश्क की जंग में सब हारे हुए शहजादे  
चांदनी,धुल,हवा ,उजड़े मका रखते है !

दोस्तों,आग का,पानी से पता देते है 
सिर्फ आंसू है जो दर्द का पता रखते है !

कितने बेदर्द है इस शहर के रहने वाले 
दर्द होता है जहा हाथ वहा रखते है !

हमको सीने से लगा ले हमें मायूस न कर 
जिन्दगी हम जो तेरा बहमो-गुमान रखते है !

पार कर देते है जो लोग दुःख का दरिया 
वक़्त की रेत पर गजलो के निशा रखते है !!!

Tuesday, July 24, 2012

मगर तुम नहीं थे....!!!

दरख्तों के दरमियाँ  
सूरज की आहट हुयी 
और फैलती चली गयी 
धुप की एक विशाल चादर 
कलियों से शरमाकर 
अपनी घूँघट 
उतार फैका 
धुप की तपिश  
अपने शबाब पर थी 
माथे पर पसीने की बुँदे 
दरवाजे और खिडकियों पर 
खस के परदे 
आँखों पर धुप का चश्मा 
सभी कुछ था 
मगर तुम नहीं थे....!!!

सावन की दबिश  के साथ 
पहली फुहारों में 
नदी -नाले उफान पर थे 
मौसम के साथ ही 
अन्तेर्मन भींग चुका था 
सड़के सुनसान 
और गलियों की जवानी 
नदारत थी 
आसमान पर अलसाये बादल थे 
प्याले में रखी चाय 
अभी तक गर्म थी 
पुराणी यादों को तजा करती 
ऍफ़. एम् बंद की स्वरलहरियां थी 
मगर तुम नहीं थे......!!!

सदियों के ख़त आये 
सूरज के गुलाबी होते ही 
धुप की चादर
कही खो गयी 
अलसाये बादलो का 
फिर पता नहीं चला 
कहा गए
लोग तरसते रहे 
अंजुरी भर धुप के लिए 
और धुप थी की 
ठन्डे बादलो से 
छन  कर आ रही थी 
पैरो में उनी मौजे थे 
हाथो में ग्लास था 
कार्डिगन ,गलाबंद 
और दस्ताने 
सभी कुछ था 
मगर तुम नहीं थे....!!!

Thursday, July 19, 2012

प्रेम की नजर


तुमने डाली है प्रेम की ऐसी नजर ,


की मेरा गीत निखरने लगा है !


भवन जीवन का बन गया था खंडहर 


की तेरे इशारे से फिर सवरने लगा है !


सब दिशाओं में मच रहा था बवंडर 


तेरी हूक से सब कुछ ठहरने लगा है !


मैं गिर गया था घोर तमस में 


तेरी वाणी से पथ जिलमिलाने लगा है !


चल दिया था मैं भी बनने सिकंदर 


भीतर प्रेम का ज्योत जलने लाना है !


मेरा दिल बन गया उदासी का समंदर 


तुने गुदगुदाया तो रोम रोम महकने लगा है !


दुखो ने बनाया था मौत का तलबगार इस कदर 


बने जो नील कंठ तुम,दिल फिर जीने को मचल रहा है !!!

Tuesday, July 17, 2012

नदी नहाती है !

हुयी सुख  कर जो कांटा थी 
अब अधियाती है 
बड़ी किरपा  की अरे राम जी 
नदी नहाती है !

गीले हुए रेत के कपडे 
सजल हुए तटबंद 
छल-छल करके हरे हो गए 
कल के सब सम्बन्ध 
अपना सुख -दुख लहर लहर से
बनते जाती है !
बड़ी किरपा की अरे राम जी 
नदी नहाती है !

शुरू हो गयी वोही कहानी 
होठ लगे हिलने 
अपनी गागर ले कर चल दी 
सागर से मिलने !
सुनती नहीं किसी की 
बात बनाती है !
बड़ी किरपा की अरे राम जी 
नदी नहाती है !

खूब सताया सूखे जेठ ने 
तरस नहीं आया 
तब इस पर क्या गुजरी 
सागर जान नहीं पाया 
कोई शिकवा नहीं ,प्यार का 
धर्म निभाती है!!!
बड़ी किरपा की अरे राम जी 
नदी नहाती है !!!!!
          

Thursday, July 12, 2012

छाता और महकता हुआ गुलाब


बहुत  दिनों से इच्छा थी 
की  तुम्हारे लिए     
खरीद  दू 
एक कामचलाऊ  मगर  
सस्ता सा छाता           
चिल्चाती धुप के बीच 
तुम्हे आना जाना पड़ता है 
जिसकी वजह से 
पसीने से भींग कर 
कुम्हला जाता है  
तुम्हारा गुलाबी चेहरा 














































आज दोपहर में जब 
तुम स्टैंड पर खड़ी थी 
कर रही थी इन्तजार 
बस का 
और सूरज नोच रहा था 
तुम्हारा बदन 
तब मैं यही सब सोच रहा था 
की अचानक एक काली बदली 
भटकती हुयी सी आई जाने कहा से 
और छाता बनकर तन गयी 
तुम्हारे उपर 
मैं बहुत खुश था 
की मेरी इच्छा पूरी हो गयी 
तुम भी तो खुश थी बहुत 
जैसे महक उठा हो 
गुलाब कोई !!!!!

Friday, July 6, 2012

पहचान

वो गाव  की पगडण्डी                                   
वो पछियों का कलरव 
वो चहलकदमी करते घर आँगन में नन्हे -से-मेमने 
खुले आसमान में सितारों के बीच 
तन्हा चाँद आज भी उदास सा है जब से मैंने देखा है उसे  गाव में 
घर के चबूतरे  पर पर खड़े होकर ........
गाव की सोंधी खुशबु का एहसास...... 
पता नहीं,कहा...खो -सा गया?

सब कुछ पीछे छुट -सा गया है....आज 
गाव का एहसास दम तोड़ने लगा है अब,
गाव की पक्की सड़के ...पक्के मकान ,
मोबाइल के गगनचुम्बी टावर 
मोटरसाइकिल के   धुओं से अब ,
गाव की पहचान ही बदल सी गयी है आज......!