Sunday, May 30, 2010

मन की व्यथा


मन की व्यथा किसे कहू?
यहाँ चाहते है सब ही कहना
और सुनना कोई नहीं!
तो क्या बटेगा दुःख दर्द
फिर क्यूँ कहू,किसे कहू
अपने मन की व्यथा !!
सुना है कहने से
ख़ुशी दुगनी
और
दुःख होता है आधा
समय के साथ
लोगो ने भी ली है करवट
अब देखा है दुःख को दुगना
और ख़ुशी को आधा करते
फिर क्यूँ कहू,किससे कहू...
अपने मन की व्यथा !!!!
ना कहने में घुटन है
और कहने में समस्या
ऐसे में क्या करू,किस से कहू
अपने मन की व्यथा !!!!
एक ही प्रभु है
जो सुनता है सभी की
और कहता कुछ भी नहीं जानता है
सुनना किसी को नहीं
हे प्रभु,
तुम से ही कहूँगा
अपने हिर्दय की व्यथा!!!!
और तुम्हारी सुनना भी चाहूँगा!!!!!!

Saturday, May 29, 2010

बहुरानी

अंग्रेजी हर घर में विद्यमान हो गयी है
"बहुरानी"सी हिंदी मेहमान हो गयी है!
हर चितवन में,बस जाती है
अपने मधुर सभावो के कारण
हर जबान में रम जाती है
देख ज़माने की फ़ितरत गुमनाम हो गयी है
"बहुरानी" सी हिंदी मेहमान हो गयी है
हिंदी है,सौगात हमारी
घर-बाहर तक बात हमारी
फिर क्यूँ लिखने में सकुचाना
पढ़ी लिखी यह जाति हमारी
स्वर-संगीत सायोजित ले,रसखान होगई है!
"बहुरानी"सी हिंदी मेहमान हो गयी है!!
बाबु से साहेब तक कहना ,
काम काज हिंदी में करना
इसमें है पहचान हमारी,
कभी ना इससे वंचित
हिंदी हम हिन्दुस्तानियों की शान हो गयी है!
"बहुरानी" सी हिंदी मेहमान हो गयी है!!!!!!!!

आज है

कल भी
आज था
कल नहीं!
कल भी आज होगा
कल नहीं!
आज था
आज है
आज होगा!!!!!

लेना -देना


मैं वोही तो दे पाउँगा जो मुझे मिल रहा है इस तप्त पर्यावरण में कहा से लाऊ प्रेममय शीतल गीत और स्नेह्हिल भाव! उगाये जो जग ने कक्टूस,बबूल,और गुलाब कोई नंगा खड़ा है और कोई ओढ़े शबाब! कहा से लाऊ कीचड़ में खिले कमलो का प्रांजल भाव! इस धरा के पीपल,बरगद,नीम ही नहीं खो रहे अपितु ,जमीं भी खो रही है..... ये निचित मानिये हमें वोही मिलेगा जो हम बो रहे है...

पहले- पहल


पहला शब्द
पहली बात
पहला वाकया
पहली मुलाकात
पहला प्यार माँ का
और मेरी पहली नजर माँ के पैरो में
लगे आलते पर
पहली गुमान सुन्दरता की
पहली लड़की का स्पर्श गुलाब सा
पहला दोस्त विकलांग
पहली पढाई करहा के किनारे झोपडी में
पहले -पहल
करते करते
पहला- पहला ना रहा
जहा पहले सी पहल थी........

सदमा


किसी से कभी दिल लगाया ना था
मोहोब्बत का सदमा यूँ तो आया ना था
हसीनो के रोने पर ना हँसते थे हम
कभी एक आंसू बहाया ना था
कोई भी हूर हो या परी अपना सर
किसी जगह पर झुकाया ना था
सायाह(काली)गेसुओ की तम्मना रही
मगर दिल को हमने फसाया ना था
ज़माने में वो कौन था जोहरा-बस(बेदर्दी)
के सिने से जिसने लगाया ना था
बसर की सदा ऐश-ओ-इशरत में उम्र
कभी रंज हमने यूँ तहराया ना था
मगर एक झलक ने हमें खो दिया
ये सदमा तो हमने टेहराया ना था

Friday, May 28, 2010

मेरा अक्स


सोचा था मिलूंगा उससे कुछ बातें करूंगा
ये ख्वाब मेरा आँखों मैं भरा,आँखों मैं रह गया
एक पल अनदेखा अनजाना सा
मिला था किसी मोड़ पर , मिलकर खो गया
मिटटी में हाथ सानकर एक बच्चा मेरे गाँव में
खिलोने का घर मेरा बनाते बनाते सो गया
दो दिनों की जिंदगी है कहते सब लोग हैं
एक दिन तुझे महसूस किया एक दिन तू खो गया
हो सके तो दोस्त मेरे दो चार कदम मेरे साथ चल
चलते चलते अक्स भी मेरा मुझसे जुदा हो गया ................................

Sunday, May 9, 2010

माँ तो माँ है।


माँ

कमर झुक गई

माँ बूढ़ी हो गई

प्यार वैसा ही है

याद है

कैसे रोया बचपन में सुबक-सुबककर

माँ ने पोंछे आँसू

खुरदरी हथेलियों से

कहानी सुनाते-सुनाते

चुपड़ा ढेर सारा प्यार गालों पर

सुबह-सुबह रोटी पर रखा ताज़ा मक्*खन

रात में सुनाई

सोने के लिए लोरियाँ

इस उम्र में भी

थकी नहीं

माँ तो माँ है।

Saturday, May 8, 2010

एजिअत(himmat)


बातों बातों में बिचरने का इशारा कर के
खुद भी रोया वो बहुत हम से किनारा कर के
सोचता हु तन्हाई में अंजामे खलुश
फिर उसी जुर्म--मोहोब्बत को दोबारा कर के
जगमगा दी तारे सहर के गलियों में मैंने
अपने अश्कको को पलकों पर सितारा कर के
देख लेते है चलो हौसला दिल का
और कुछ तेरे साथ गुजारा कर के
एक ही सहर में रहना मगर मिलना नहीं
देखते है ये एजिअत भी गवारा कर के...

Friday, May 7, 2010

"मेरा पहला प्यार"

"मेरा पहला प्यार"

वो दिन भी क्या हसीं थे जब हम तुम दोनों करीब थे...
हज़ारों खिल उठी थी कलियाँ तेरे मेरे दिल करीब थे...

जहाँ का डर ना रुसवाई का ना डर था खुदा से कोई...
वो कैसा इश्क का जूनून था वो कैसा मेरा हबीब था...

अजीब वो ज़िन्दगी थी अजीब थी वो लड़ाइया...
घडी भर में वो रूठना दो पल में वो मनाना...

वो कैसा बचपन था वो कैसा बचपन का प्यार था...
वो कैसा चुलबुला यार था वो कैसा मेरा प्यार था...

वो याद आते है दिन मुझे वो जो मेरा पहला प्यार था...
ना वो प्यार है ना वो बचपना है..

याद आया अब तो ये ख्याल था...
वो कैसा मेरा प्यार था वो कैसा मेरा यार था...

Thursday, May 6, 2010

मिलते है अजनबी से !!!!!!!


अच्छे दिनों में हम से मिलते थे जो ख़ुशी से
गर्दिश के दिनों में मिलते है अजनबी से
इस आइना-ऐ-दिल को रख कर करीब अपने
झाका तो डर गया मैं अपनी ही तीरगी से
फूलो से जो उबा कलियों को नोच डाला
पूछो कभी किसी भी कुचली हुयी कली से
उड़ते कभी ये कितने जो झुण्ड पछियों के
डर कर हुए है गायब वो अब के आदमी से
गर्दिश के दिन गए अब आये है अच्छे दिन तो
देखा खड़े है फिर से कुछ लोग मतलबी से
इजहारे इश्क ज्यूँ ही मैंने किया उससे
मुद कर मुझे न देखा उसने उस घडी से

Saturday, May 1, 2010

I carry your heart with me



I carry your heart with me I carry it in my heart and i'm never without it anywhere i go, you go, my dear and whatever is done, by only me, is your doing, my darling I fear no fear for you are my fate, my sweet I want no world for beautiful, you are my world my true . . it's you or whatever a moon has always meant and whatever a sun will always sing is you here is the deepest secret nobody knows here is the root of the root and the bud of the bud and the sky of the tree called life which grows higher and higher than the soul can hope or mind can hide and this is the wonder that is keeping the stars apart . I carry your heart I carry it in my heart....