Sunday, February 19, 2012

महफूज

वो जरा सी बात पर पे बरसो के याराने गए !
लेकिन इतना तो हुआ कुछ लोग पहचाने गए!!

मैं इसे शोहरत कहू या अपनी रुसवाई कहू !
मुझसे पहले उस गली में मेरे अफसाने गए !!

वहशते कुछ इस कदर अपना मुकदर हो गयी !
हम जहा पहुंचे हमारे साथ वीराने गए !!

यूँ तो वो मेरी रगे-ए-जा से भी थे नजदीक तर !
आंसुओं की धुंध में लेकिन न पहचाने गए  !!

अब भी उन यादों की खुशबू जेहन में महफूज है !
बारह हम जिनसे गुलजारों को महकाने गए !!

1 comment:

  1. पहली दो पंक्तियों ने तो मन हर लिया..

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