Friday, February 24, 2012

ढाबे में लड़का


ढाबे में लड़का            

मेज बजाकर 

मैंने पानी के लिए पुकारा 

ढाबे के एक कोने से दुसरे कोने तक 

दौढ़ते थके-थके से उदास लडको में से एक ने    

पानी भरा गिलास मेज पर पटका  

मेरा धयान गिलास थामे उसकी अँगुलियों पर गया 

इन नन्ही अंगुलियाँ में तो एक रंगीन पेंसिल होनी चहिये 

और फिर बहुत सारे बच्चे हुडदंग मचाते 

पृथ्वी के नक़्शे में रंग भरते मुझे दिखे 

और बेहताशा मुझे अपना बेटा याद आगया 

रुलाई की हद्द तक !



फिर मुझे रुका ना गया वह 

पीछे से कोई चिलाया 

"साला !कर दिया ना ग्राहक ख़राब!

लड़के पर हाथ उठाता मालिक चीख रहा था 

मैं शर्मिंदा था 

मेरी भावना उस  बच्चे के लिए महँगी पड़ी!   


4 comments:

  1. कल शनिवार 25/02/2012 को आपकी यह पोस्ट नयी पुरानी हलचल पर लिंक की जा रही हैं.आपके सुझावों का स्वागत है .

    धन्यवाद!

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  2. बहुत ही मार्मिक कविता।

    सादर

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  3. कोमल भावो की और मर्मस्पर्शी.. अभिवयक्ति .......

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  4. काश बच्चों को उनका जीवन मिले..

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