Sunday, November 18, 2012

सपने सच नहीं होते !!!!

पिता की  कमर 
नहीं थी झुकी 
और उनके चौड़े  कन्धे पर 
खेल रहा था मैं 
गिलहरी की तरह 

मैं जा रहा था स्कूल 
पीठ पर लादे  बक्सा 
और खेल रही थी  बहिन 
मैदान में निर्भय ......
खोदी जा रही थी नीव 
 खूब गहरी ....
 एक  मकान के लिए 
ज्योंकि पिता का सपना था 
पिता के पिता का भी 
और
मजदूर  तैयार कर रहे थे गारा 
माँ पका रही थी 
धीमी आंच पर सोंधी रोटी 
उनके लिए .......
माँ खुश थी 
पिता से अधिक 
पिता खुश थे 
माँ से अधिक 
अचानक झटके से टूटी  नींद 
मैं देख रहा था सपना 
सपने में खुश थी माँ ,पिता और मैं भी 
भयभीत  हू  मैं 
सुना है ------
पिता की  कमर 
नहीं थी झुकी 
और उनके चौड़े  कन्धे पर 
खेल रहा था मैं 
गिलहरी की तरह 

मैं जा रहा था स्कूल 
पीठ पर लादे  बक्सा 
और खेल रही थी  बहिन 
मैदान में निर्भय ......
खोदी जा रही थी नीव 
 खूब गहरी ....
 एक  मकान के लिए 
ज्योंकि पिता का सपना था 
पिता के पिता का भी 
और
मजदूर  तैयार कर रहे थे गारा 
माँ पका रही थी 
धीमी आंच पर सोंधी रोटी 
उनके लिए .......
माँ खुश थी 
पिता से अधिक 
पिता खुश थे 
माँ से अधिक 
अचानक झटके से टूटी  नींद 
मैं देख रहा था सपना 
सपने में खुश थी माँ ,पिता और मैं भी 
भयभीत  हू  मैं 
सुना है ------
सपने सच नहीं होते !!!!
     सिद्धार्थ सिन्हा ,राँची 

7 comments:

  1. कोमल भावो की अभिवयक्ति......

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  2. Thanks Sushma ji bahut dino ke baad kuch likha aur wo aapko pasand aaya to lagta hai likhna safal raha......

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  3. बहुत संवेदनशील रचना .... लेकिन लगता है दो बार एक ही बात लिखी गयी है ...

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  4. भावनाओं की सुन्दर अभिव्यक्ति ...बहुत खूब सिद्धार्थ जी ...अच्छा लिखते हैं

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