दोस्तों बहुत दिनों के बाद फिर से एक कविता लिखी है आपके असीरवाद के लिए पेश कर रहा हु:)
क्या रेशम क्या कड़ी
बरगद के नीचे सारे
रिश्ते छायावादी
गाज गिरी छप्पर पर
टूटे पुस्तैनी ताले
आपस में समधी है
पाँव सभी छाले वाले
अंधकार में एक जात है
पूरी आबादी
सबको सुर में बांध रहा है
संकट हीरामन
घूम रहा कुंडली मिलाता
दुःख नाई बाह्मण
लाचारी की बलिहारी है
जोड़ी जुड़वाँ दी
मन मिलाकर मीनार हुए थे
फाकामस्ती में
चार टका आते ही पड़ी
दरार गिरिस्थी में
भोज हुआ तो छुट गयी
पूजा परसादी
बहुत प्रभावी अभिव्यक्ति..
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