इबादत के बाद सर उठाया
तुम्हारा ही चेहरा नजर आया
चाहा खुदा का शुक्रिया कहू
होठ अपने आप मुस्कुराया
न चाहत है मजबूरी की
ना जिन्दगी है जरुरी सी
क्यूँ प्यार को इतना प्यार किया
की प्यार को तुमपर प्यार आया
आँखें बंद की तो खवाब तुम्हारा आया
होठ खुले तो नाम तुम्हारा आया
जाने क्या हुआ है इस दिल को
बीमार सा रहने लगा है तुम से मिल कर
जहा नजर जाये तुम्हारा ही चेहरा झिलमिलाये
जहा देखू तुम हो,जहा सोचु तुम हो
महसूस करू तुम हो तुम, सिर्फ तुम सिर्फ तुम.......
क्या बात है सर!
ReplyDeleteबहुत अच्छी लगी यह कविता.
सादर
कोमल सी नज़्म
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