प्यार सच्चा था,महकता रहा चन्दन की तरह !!
तुझको पहचान लिया है तुझे पा भी लूँगा
इस जनम और मिले गर इसी जीवन की तरह !!
जब कोई कैसे,पहुँच पायेगा तेरे गम तक ,
मुस्कराहट की रिदा (चादर) डाल दी चिलमन की तरह !!
कोई तहरीर नहीं है जिसे पढ़ ले कोई
जिन्दगी हो गयी है बेदम सी उलझन की तरह !!
जैसे धरती की किसी शेह से तावालुक ही नहीं
हो गया है प्यार मुकदस (पवित्र) तेरे दामन की तरह !!
शाम जब रात की महफ़िल में कदम रखती है
भरती है मांग में सिंदूर किसी सुहागन की तरह !!
मुस्कुराते हो मगर सोच लो इतना ऐ " दोस्तों"
सूद लेती है म्सरत्त(ख़ुशी) भी महाजन की तरह !!!
बढ़िया प्रस्तुति... वाह
ReplyDeletebadiya gazal.
ReplyDelete