Friday, December 24, 2010

स्वेटर

स्वेटर
जाने कितनी सर्दिया
समां गयी होंगी
उस स्वेटर में
बरसो पहले बनाया था
उसने कभी मेरे लिए
जाने कितनी बार
फंदों में उन के
उलझी होंगी अंगुलियाँ
भूले- बिसरे दिनों की
यादो को समेटे हुए
अतीत के पन्नो पर
वर्तमान ने कुछ लिखा
आज फिर शायद
चलचित्र की भांति
द्र्य्श मचलने लगे
वीरान पड़ी आँखों में
बस यही तो एक
रह गयी है उसकी
निशानी पास मेरे,
उम्र के तकाजे ने
उड़ा दिया है रंग
मेरी तरह उसका भी
फिर भी रखा है
संभाल कर उसको
आने वाली सर्दियों के लिए!!!!

1 comment:

  1. स्वेटर से जुडी यादें ....दृश्य सही कर लें

    अच्छी अभिव्यक्ति

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