Friday, December 3, 2010

अधुरा चाँद

बिछड़ कर मुझसे कभी तूने ये भी सोचा है !
अधुरा चाँद भी कितना उदास लगता है !!

ये वस्ल का लम्हा है इसे राएगा ना समझ !
के इसके बाद वोही दूरियों का सहरा है !!

कुछ और देर ना झड़ता उदासियों का शजर !
किसे खबर तेरे साये में कौन बैठा है !!

ये रख रखाव मुहोब्बत सीखा गयी उसको !
वो रूठ कर भी मुझे मुस्कुरा कर मिलता है !!

मैं किस तरह तुझे देखू नजर झिझकती है !
तेरा बदन है की आईना का दरिया है !!!

2 comments:

  1. बहुत खूब ,... अच्छी नज़्म है ... गहराई लिए ...

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