Thursday, May 19, 2011

जैसा बादल वैसा सावन !!


भार विहीन हुआ हर बंधन !
देख रहा हू निर्जन दर्पण !!

जिन पत्तों पर फेका पानी !
उनमें था एक अपनापन !!


निजता की पहचान यही है !

धरम गहनतम कर्म सनातन!!


एक दूजे को ताक रहे है !


भीतर से घर बाहर आँगन!!

पहला और अंतिम सोच रहा !


कुंदन -सा मन चन्दन सा तन!!


पानी तेरा दोष नहीं है !


जैसा बादल वैसा सावन !!

3 comments:

  1. ..........दिल को छू लेने वाली प्रस्तुती

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  2. बेहतरीन प्रस्तुति..अंतिम पंक्तियाँ लाज़वाब..

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