रात का पहर था
सुनसान सा शहर था
ठिठुर रही थी चांदनी
ठण्ड का कहर था
बस तुम थी
बस मै था
सीप में ज्यों मोती सी थी
दूरियां बस उतनी सी थी
गर्म साँसों की धधक से
लहू में लावा भभक रहा था
बस तुम थी
बस मै था
नजरे फिर दो ऎसी मिली
सागर में कोई नदी मिली
मदहोश वो शमां था
आगोश में जहां था
बस तुम थी
बस मै था
काँधे पर से जब जुल्फ हटा
लगा जैसे कोइ छटा घटा
मानो कोइ सरगम बजी
जब लबो का स्पर्श हुआ
बस तुम थी
बस मै था
सिमट गयी सब दूरियां
कमरे में एक भंवर था
कली कोइ ऐसे खिली
रात गया ठहर सा
बस तुम थी
बस मै था
फिर ना जाने क्या हुआ
जुगनुओं के शोरगुल में
प्यार के कौतहुल में
एक दोनों ऐसे हुए
तुम बस तुम ना रही
मै बस मै ना रहा...--*--*--*--*--*---*--*--
बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति .....
ReplyDeleteबहुत ही सुन्दर...
ReplyDeleteपेम की सुन्दर प्रस्तुति।
ReplyDeletebehad sundarta se prem ki abhivykti ko ukera hai aapne.......abhar
ReplyDeleteAap sabhi ka dhanyawaad jo aapne rachna par samay diya aur comment bhi.....aage bhi aapka aasirwaad chahunga.....
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