अपने हाथ पोछ दिए
और बच्ची धीरे धीरे फूल में बदलने लगी
उसकी मुस्कराहट अब
फूल की मुस्कान थी
जो खुशबू बन कर
उड़ रही थी चारो और
उड़ते उड़ते वो खुशबू
जो असल में मुस्कराहट थी
उस नन्ही बच्ची की
एक चिड़िया में बदल गयी
जो फुदकने लगी यहाँ- वहा
अब इस मुस्कराहट के पंख थे
और आवाज भी
अब इससे हर कोई सुन सकता था !
चिड़िया बन कर मुस्कराहट
उड़ने लगी खुले आकाश में
हवा बही हर दिशा में
बहते बहते हवा बदल गयी नदी में
मुस्कराहट अब बह रही थी नदी में
मुस्कुराहट अब बह रही थी नदी बन कर
कही शांत,कही उफान पर
आखिरकार नदी मिल गयी समुन्दर में
और मुस्कराहट फैल गयी पूरी पृथ्वी पर
बच्ची की मुस्कुराहट
अब पृथ्वी की मुस्कुराहट थी!!!!!
वाह वाह बहुत ही सुन्दर रचना…………दिल को भा गयी।
ReplyDeleteबहुत खूबसूरत ... धरती की मुस्कान बनी रहे
ReplyDeleteइसी के सहारे टिका है जीवन का अस्तित्व
ReplyDeleteबहुत ही खुबसूरत रचना...
ReplyDeleteबहुत खुबसूरत रचना ........धरती यों ही मुस्कुराती रहे ..
ReplyDeleteआपकी किसी नयी -पुरानी पोस्ट की हल चल कल 11 - 08 - 2011 को यहाँ भी है
ReplyDeleteनयी पुरानी हल चल में आज- समंदर इतना खारा क्यों है -
बच्चे की मुस्कराहट- सी ही प्यारी कविता !
ReplyDeletebacche kee muskuraahat si sundar aur nadi ki tarah bahati hui kavita...
ReplyDeletebahut sundar...
वाह! क्या सुन्दर मुस्कराहट है जो आपकी लेखनी
ReplyDeleteसे उत्सर्जित हो ब्लॉग जगत में फैल गई है.
सुन्दर अनुपम प्रस्तुति के लिए आभार,
समय मिलने पर मेरे ब्लॉग पर भी आईयेगा.