Saturday, September 24, 2011

दिल की आग

अपने पहाड़ गैर के गुलजार हो गए !

ये भी हमारे राह के दिवार हो गए !!

फल पक चुका है शाख पे गर्मी की धुप में !

हम अपने दिल की आग में तैयार हो गए !!

हम पहले नर्म पत्तों की शाख थे मगर !

काटे गए है इतने के तलवार हो गए !!

बाजार में बिकी हुई चीजों की मांग है !

हम इसलिए खुद अपने खरीदार हो गए!!

तजा लहू भरा था सुनहरे गुलाब में !

इनकार करने वाले गुनाहगार हो गए!!

वो सरकशो के पाँव की जंजीर थे कभी !

अब बुजदिलो के हाथ में तलवार हो गए !!

9 comments:

  1. खूबसूरत और भावमयी प्रस्तुति....

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  2. बहुत सुन्दर प्रस्तुति।

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  3. सटीक अभिव्यक्ति ....

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  4. बहुत ही खुबसूरत रचना....

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  5. Versha ji,Pravin ji,vandana ji,rekha ji,aur sushma ji aapka dhanyawaad jo aapne pasand kiya....main dhanya ho gaya.....akhir itni mahilao ne tarif ki hai kuch to accha hoga........

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  6. Sorry Pravir bhai.......aapko chodh kar......

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  7. सिद्धार्थ जी
    वाह बंधु ! ग़ज़ब लिखते हैं आप …

    फल पक चुका है शाख़ पॅ गर्मी की धूप में
    हम अपने दिल की आग में तैयार हो गए

    प्यारा शे'र है सचमुच !
    बधाई !


    नवरात्रि पर्व की बधाई और शुभकामनाओं सहित
    -राजेन्द्र स्वर्णकार

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