अपने पहाड़ गैर के गुलजार हो गए ! ये भी हमारे राह के दिवार हो गए !! फल पक चुका है शाख पे गर्मी की धुप में ! हम पहले नर्म पत्तों की शाख थे मगर ! बाजार में बिकी हुई चीजों की मांग है ! तजा लहू भरा था सुनहरे गुलाब में ! वो सरकशो के पाँव की जंजीर थे कभी !
खूबसूरत और भावमयी प्रस्तुति....
ReplyDeleteअहा बहुत ही अच्छा।
ReplyDeleteबहुत सुन्दर प्रस्तुति।
ReplyDeleteसटीक अभिव्यक्ति ....
ReplyDeleteबहुत ही खुबसूरत रचना....
ReplyDeleteVersha ji,Pravin ji,vandana ji,rekha ji,aur sushma ji aapka dhanyawaad jo aapne pasand kiya....main dhanya ho gaya.....akhir itni mahilao ne tarif ki hai kuch to accha hoga........
ReplyDeleteSorry Pravir bhai.......aapko chodh kar......
ReplyDelete♥
ReplyDeleteसिद्धार्थ जी
वाह बंधु ! ग़ज़ब लिखते हैं आप …
फल पक चुका है शाख़ पॅ गर्मी की धूप में
हम अपने दिल की आग में तैयार हो गए
प्यारा शे'र है सचमुच !
बधाई !
नवरात्रि पर्व की बधाई और शुभकामनाओं सहित
-राजेन्द्र स्वर्णकार
Dhanyawaad sir ji.......
ReplyDelete