अब नयी सुबह लानी है अभी....
एक सुबह की तलाश में हम कितने अँधेरे पाएंगे कब तक आँखें मूंद कर हम हकीकत से मुह मोड़ पाएंगे गरीबो के लहू क्यूँ बहते है हक मांगने के एवज में जो दिए जला सकते नहीं किस हक से घर जलाते है क्यूँ खेत उजाड़े जाते है क्यूँ आवाज दबाई जाती है क्यूँ मसीहा ही कातिल बने वो भरोसा के काबिल कैसे रहे जुल्म की हुकूमत और नहीं सितम की सियासत मिटानी है अभी रात की गुलामी बहुत हुई अब नयी सुबह लानी है अभी....
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