Wednesday, September 7, 2011

सपना

बारह फुट की खोली में बैठकर वो
सपना देखती है !

एक खुले -खुले आँगन का
हरे भरे पेड़ों पर
चेह्चाहती चिडियो का!


पतियों के बीच से छन -छन कर आती धुप में,
झुला झूलते उसके
भोला और गुड्डी
चहचहा रहे है पछियों की तरह !


तंग कोठरी के अँधेरे में भी
देख रही है उनके धुप से उजले मुखड़े !


हासिये से प्याज काटते उसके हाथ
झुला दे रहे है ,सपने में
बच्चो की किलकारी सुनते हुए
हाथ चूल्हे में लकडिया सुलगाते है !


चरमराता धुवाँ पल भर में
भर जाता है ,बारह फुट की खोली में
खांसी से त्रस्त भोला
खांस उठता है जोर से !


गुडिया उसको चुप कराते हुए
अपने आंसू पोछती है की तभी वो
कढाई में छोकती है सब्जी!


छोंक के धुएं में
धुंधला जाती है आँखें उसकी
और धुंधला जाता है

आँखों के पानी में तिरता सपना उसका
खुले आँगन और हरे-भरे पेड़ो का
पानी में धुंधला कर बह जाता है
तिरिस्कृत अपयश सा !!!!


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