मैं कवि नहीं
न ही कविता लिखना मेरा पेशा है
फिर भी लिखता हु कभी कभी
लिखता हू
जब अपनी पीड़ा को
सबके सामने बया नहीं कर पता
लिखता हू
जब अपने आत्मसमान को
तिल तिल मरते देखता हू
जब हर काम के लिए मुझे
बाबुओं की जी हजुरी करनी पड़ती है
लिखता हू
जब सरकारी विभाग में
मेरे अक्सर झगडे हो जाते है
अपने काम करवाने के लिए
ऐसा नहीं ,की मैं बतामिज नहीं
बल्कि इसलिए
की उन्हें ही नहीं एहसास
उनके पद से जुड़े कर्त्तव्य का
फिर भी मैं लिखता हू
पर मैं कवि नहीं
दरअसल मैं विद्रोही हु
और मुझे अभी अभी एहसास हुआ है
अपनी नयी पहचान का
यह देख कर
की बेईमान लोग अब
मुझसे खौफ्फ़ खाने लगे है
और मुझ जैसे विद्रोही की
संख्या बढ़ने लगी है
मन को कहना है आवश्यक..
ReplyDeleteThanks Praveen Bhai,After long time........
Deleteशुक्र है ख़ुदा का कोई और भी है सकता है जो कहता ............
ReplyDeleteVivha rani Shrivastava ji aapka bhi sukriya.......
Deleteमन की बातों को
ReplyDeleteसहज शब्दों में व्यक्त किया है...
सुन्दर...
:-)
Reena Maurya ji aapka bhi sukriya ki aapne rachna ko pasand kiya......
Deleteअपने सच पर कायम रहे ...
ReplyDeleteThanks Anju ji for your comment
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