खंडहर बचे हुए है, इमारत नहीं रही !
अच्छा हुआ की सर पर कोई छत नहीं रही!!
कैसी मशाले लेकर चले तीरगी में आप !
जो रौशनी थी वो भी सलामत नहीं रही !!
हमने तमाम उम्र अकेले सफ़र किया !
हम पर किसी खुदा की इनायत नहीं रही!!
मेरे चमन में कोई नशेमन नहीं रहा !
या यूँ कहो की बर्क(बिजली) की दहशत नहीं रही !!
हिम्मत से सच कहो तो बुरा मानते है लोग !
रो रो कर बात कहने की आदत नहीं रही !!
सीने में जिन्दगी के अलामत(चिन्ह्ह) है अभी !
गो जिन्दगी की कोई जरुरत नहीं रही !!
अच्छा हुआ की सर पर कोई छत नहीं रही!!
कैसी मशाले लेकर चले तीरगी में आप !
जो रौशनी थी वो भी सलामत नहीं रही !!
हमने तमाम उम्र अकेले सफ़र किया !
हम पर किसी खुदा की इनायत नहीं रही!!
मेरे चमन में कोई नशेमन नहीं रहा !
या यूँ कहो की बर्क(बिजली) की दहशत नहीं रही !!
हिम्मत से सच कहो तो बुरा मानते है लोग !
रो रो कर बात कहने की आदत नहीं रही !!
सीने में जिन्दगी के अलामत(चिन्ह्ह) है अभी !
गो जिन्दगी की कोई जरुरत नहीं रही !!
bhai acha hai bahut ache sidhart ji badhai .
ReplyDeletejab bhi hamne chaha samjhe zindgi ke maine,
ye hame hardam lagi be vajah be maine..
pl visit my link at ashokjauhari.blogspot.com
ek se ek chubhate aur sahee jagah par nishama sadhte aapke sher aapke swabhav ka pratibimb hai jaisa ki aapne profile me likha bhee hai....
ReplyDeleteचर्चा मंच के साप्ताहिक काव्य मंच पर आपकी प्रस्तुति मंगलवार 29 -03 - 2011
ReplyDeleteको ली गयी है ..नीचे दिए लिंक पर कृपया अपनी प्रतिक्रिया दे कर अपने सुझावों से अवगत कराएँ ...शुक्रिया ..
http://charchamanch.blogspot.com/
ro rokar kahi baat ki ahmiyat bhi nahi
ReplyDeleteबेहतरीन प्रस्तुति ।
ReplyDeletesidhharth ji ye dushyant kumar ji ki gazal hai
ReplyDeletekripya karke lekhak ka nam bhi de jab uski rachna likhe