Sunday, March 27, 2011

जरुरत नहीं रही !!

खंडहर बचे हुए है, इमारत नहीं रही !
अच्छा हुआ की सर पर कोई छत नहीं रही!!

कैसी मशाले लेकर चले तीरगी में आप !

जो रौशनी थी वो भी सलामत नहीं रही !!

हमने तमाम उम्र अकेले सफ़र किया !
हम पर किसी खुदा की इनायत नहीं रही!!

मेरे चमन में कोई नशेमन नहीं रहा !
या यूँ कहो की बर्क(बिजली) की दहशत नहीं रही !!

हिम्मत से सच कहो तो बुरा मानते है लोग !
रो रो कर बात कहने की आदत नहीं रही !!

सीने में जिन्दगी के अलामत(चिन्ह्ह) है अभी !
गो जिन्दगी की कोई जरुरत नहीं रही !!


6 comments:

  1. bhai acha hai bahut ache sidhart ji badhai .

    jab bhi hamne chaha samjhe zindgi ke maine,

    ye hame hardam lagi be vajah be maine..

    pl visit my link at ashokjauhari.blogspot.com

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  2. ek se ek chubhate aur sahee jagah par nishama sadhte aapke sher aapke swabhav ka pratibimb hai jaisa ki aapne profile me likha bhee hai....

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  3. चर्चा मंच के साप्ताहिक काव्य मंच पर आपकी प्रस्तुति मंगलवार 29 -03 - 2011
    को ली गयी है ..नीचे दिए लिंक पर कृपया अपनी प्रतिक्रिया दे कर अपने सुझावों से अवगत कराएँ ...शुक्रिया ..

    http://charchamanch.blogspot.com/

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  4. बेहतरीन प्रस्‍तुति ।

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  5. sidhharth ji ye dushyant kumar ji ki gazal hai
    kripya karke lekhak ka nam bhi de jab uski rachna likhe

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