Thursday, June 9, 2011
अपराध बोध
वो दृश्य मुझे भुलाये नहीं भूलता
विस्मित हुयी थी तुम कुछ देर को मुझसे
ऑफिस की उल्झंनो की वयस्तता में
कोई पांच साल की थी जब तुम
याद आई जब,लपक कर मैं निकला
पहुँच तुम्हारे स्कूल बदहवासी में
दूर तक सन्नाटे की रेत थी
फैली हुयी
आकाश पर स्याह बादलो का
साया था !
चाहरदीवारी के अन्दर दिखी तुम
बरगद के पेड़ के नीचे गोल
चबूतरे पर खुद में लिपटी हुयी
निरीह खरगोश -सी बैठी
नन्ही हथेलियों में गालो को छुपाये
निगाहे बड़े गेट पर जमाई हुयी उदास
इन्तजार करती पल-पल मेरे आने का
मुस्कुरायी छन् भर को मुझे देख कर
ठिठकी!
फिर दौड़ पड़ी गिरते पड़ते ,बदहवास
नाजुक कंधो पर बस्ते का बोझ लिए
चिपक गयी मुझसे आँखों में बरसात लिए
देखता रहा कोहरे भरी आँखों से तुम्हे
अपराध बोध से दबा हुआ चुपचाप मैं!!!!
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
bahut hi gahri baat likh di ... ye apraadhbodh ek majboori hai aaj ...
ReplyDeletebahut sundar....siddharth
ReplyDelete