Monday, June 13, 2011

मैं उजाला हू


चाँद तारे आँख में दिन रात रखता हू

मैं उजाला हू अपनी पहचान रखता हू

सामने मेरे अँधेरा टिक नहीं सकता

आतशी हू दहकते अरमान रखता हू

भीतरी किरणों को बाहर बाटने वाले

दीप-जुगनू तक का भी मैं मान रखता हू

मैं समंदर की तरह सहकर सभी कुछ चुप

ओट में हर बूंद की तूफान रखता हू

मैं हवा की कैद में घर को नहीं रखता

दर खुला दिल का खुला दालान रखता हू

गोत्र्र-मजहब जातियों मैं नहीं बटता

सिर्फ अपनी सोच में इंसान रखता हू

एक सा हू देखता हू मैं यहाँ सबको

है सभी में 'एक ही वो' ये धयान रखता हू

2 comments:

  1. गोत्र्र-मजहब जातियों मैं नहीं बटता

    सिर्फ अपनी सोच में इंसान रखता हू

    बहुत खूबसूरत ...

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  2. बहुत अच्छा लिखा है सर!

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    कल 15/06/2011 को आपकी एक पोस्ट नयी-पुरानी हलचल पर लिंक की जा रही है.
    आपके सुझावों का हार्दिक स्वागत है .

    धन्यवाद!
    नयी-पुरानी हलचल

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