Tuesday, June 21, 2011

बाबूजी !!


घर की बुनियादें,दीवारे,बामो -दर थे बाबूजी !

सबको बांधे रखने वाला खास हुनर थे बाबूजी !!

तीन मुहोल्ला में उन जैसी कद-काठी का कोई ना था!


अच्छे -खासे,ऊँचे पुरे कदावर थे बाबूजी!!


अब तो उस सूने माथे पर कोरेपन की चादर है !


अम्माजी की सारी सज धज,सब जेवर थे बाबूजी!!


भीतर से खालिश जस्बाती और ऊपर से ठेठ पिता!


अलग,अनूठा,अनबूझा सा एक तेवर थे बाबूजी!!


कभी बड़ा सा हाथ खर्च थे,कभी हथेली की सूजन!


मेरे मन का आधा साहस,आधा डर थे बाबूजी!!

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