Thursday, June 23, 2011

धनी भिखारिन

मिर्दल मुस्कान ओढ़े
हाथ फैलाती है
खोटे सिक्के
खुश होकर झनझनाती है
...मय्सर नहीं जिसे
किरण की एक बूंद
ओस मल-मलकर

वो रोज नहाती है

प्रकाश-पुंज की सहचरी

अँधेरे में मूह छुपाती है
बेगानी गीत हर पल गुनगुनाती है
खोटे सिक्के
खुश होकर झनझनाती है
आस ही तो डोर है जो
टूटती नहीं
हर दिन कटोरादान लिए
आ खड़ी हो जाती है
मृदुल मुस्कान ओढ़े
हाथ फैलाती है !!!!

8 comments:

  1. बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति ...टेक्स्ट का फॉन्ट बहुत छोटा है ..इसे बड़ा कर लें ..पढ़ने में आसानी होगी ..

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  2. बहुत सुंदर....
    फांट बड़ा जरूर कर लें आसानी होगी पढ़ने में....

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  3. आस नहीं टूटी है,
    प्यास नहीं टूटी है।

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  4. बहुत सुन्दर भाव समन्वय्।

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  5. बहुत सुन्दर ..अभावों में भी मृदुल मुस्कान ..अति सुन्दर रचना...

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  6. Aap sabhi ka koti koti dhanyawaad jo aapne rachna par samay diya aur saraha.......

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