धनी भिखारिन
मिर्दल मुस्कान ओढ़े
हाथ फैलाती है
खोटे सिक्के
खुश होकर झनझनाती है
...मय्सर नहीं जिसे
किरण की एक बूंद
ओस मल-मलकर
वो रोज नहाती है
प्रकाश-पुंज की सहचरी
अँधेरे में मूह छुपाती है
बेगानी गीत हर पल गुनगुनाती है
खोटे सिक्के
खुश होकर झनझनाती है
आस ही तो डोर है जो
टूटती नहीं
हर दिन कटोरादान लिए
आ खड़ी हो जाती है
मृदुल मुस्कान ओढ़े
हाथ फैलाती है !!!!
बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति ...टेक्स्ट का फॉन्ट बहुत छोटा है ..इसे बड़ा कर लें ..पढ़ने में आसानी होगी ..
ReplyDeleteबहुत सुंदर....
ReplyDeleteफांट बड़ा जरूर कर लें आसानी होगी पढ़ने में....
amazing
ReplyDeleteआस नहीं टूटी है,
ReplyDeleteप्यास नहीं टूटी है।
बहुत सुन्दर भाव समन्वय्।
ReplyDeletebahut prabhavi chitr paish kiya hai rachna dwara.
ReplyDeleteबहुत सुन्दर ..अभावों में भी मृदुल मुस्कान ..अति सुन्दर रचना...
ReplyDeleteAap sabhi ka koti koti dhanyawaad jo aapne rachna par samay diya aur saraha.......
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