Sunday, July 31, 2011

इंसान का दिल


जब भी मैं इस शहर में कमरे से मैं बाहर निकला !

मेरे स्वागत में हरेक जेब से खंजर निकला !!

तितलियों -फूलो का लगता था जहा पर मेला !


प्यार का गाव वो बारूद का दफ्तर निकला !!


डूब कर जिसमें उबर पाया ना मैं जीवनभर !


एक आंसू का वो कतरा तो समंदर निकला !!


मेरे होठो पर दुआ,उसकी जुबान पर गाली !


जिसके अन्दर जो छिपा था वो निकला !!


जिन्दगी भर मैं जिसे देखकर इतराता रहा !


मेरा सबकुछ वो मिटटी की धरोहर निकला !!


क्या अजब चीज है
इंसान का दिल भी "सिद्धार्थ" !

मोम निकला ये कभी तो कभी पत्थर निकला !!

9 comments:

  1. हृदय धीरे धीरे कड़ा न होता यदि राह में पत्थर न मिलते।

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  2. बहुत सुन्दर भावाभिव्यक्ति.......शानदार |

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  3. बहुत बढ़िया।
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    कल 01/08/2011 को आपकी एक पोस्ट नयी पुरानी हलचल पर लिंक की जा रही हैं.आपके सुझावों का स्वागत है .
    धन्यवाद!

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  4. कल 02/08/2011 को आपकी एक पोस्ट नयी पुरानी हलचल पर लिंक की जा रही हैं.आपके सुझावों का स्वागत है .
    धन्यवाद!
    माफ कीजयेगा पिछले कमेन्ट मे तारीख गलत हो गयी थी

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    1. अरे भाई साहब ज़रा check to कीजिए कि किसकी कविता है ये जो सिद्धार्थ जी ने अपने नाम से छाप दी...कवि गोपालदास नीरज की...
      हद है कोई व्यक्ति ऐसा कैसे कर सकता है

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  5. क्या लिखते हैं वाह! गज़ब!

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  6. चोरी करने मे महारत हासिल है लोगो को

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    1. और वो भी नीरज जी की कविता को as it is छाप दिया हद है

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